Shri Ram – आज ना सिर्फ समूचा देश बल्कि विश्व भी भारत की ओर टकटकी लगाए देख रहा है कि भारत देश की धड?न कहे जाने वाले मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम 550 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद 22 जनवरी को अपने घर (मंदिर) में प्रवेश करेंगे। चहुंओर माहौल उत्सव का है। जगह-जगह जय-जय श्रीराम के गगनभेदी उद्घोष सुनाई दे रहे हैं तो घरों-घर में श्रीराम लला की प्राण प्रतिष्ठा की चर्चा चल रही है। कितना सुंदर दृश्य दिखाई दे रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि समूचा वातावरण ही श्रीराममय हो गया है।
ऐसा हो भी क्यों ना? क्योंकि जिस देश में सुबह का अभिवादन ही जय श्रीराम, राम-राम से होता हो वहां पर यदि भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो निश्चित रूप से यह हर भारतीय के लिए गर्व करने वाली बात है। अरे जरा उन लोगों के बारे में भी सोचो जिन्होंने श्रीराम लला को ठण्ड, बारिश और भीषण गर्मी में वर्षों बरस तक टेंट में रहते हुए देखा। जबकि हम और आप अपने-अपने घरों में एसी-कूलर सहित गर्म बिस्तर में रह रहे हैं।
अब जरा उन लोगों के बारे में भी सोचों जिन्होंने भगवान के मंदिर बनने का सपना लिए इस मृत्युलोक को छोड़ दिया। मंदिर बनाने के लिए अपने-अपने घरों से निकले कई कारसेवक जहां गोलियों का शिकार बन गए तो कई की मौत हो गई थी। तो कुछ ने विवाह ना करने का संकल्प लेकर अपनी पूरी जवानी कुर्बान कर दी। ऐसे भी लोगों की कमी नहीं है जिन्होंने जूते-चप्पल त्याग दिए थे।
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वहीं उनका भी जिक्र करना लाजमी होगा जिन्होंने मंदिर बनने तक मौन व्रत रख रखा है। इसके अलावा अयोध्या के आसपास के सूर्यवंशी समाज के एक सैकड़ा से अधिक गांव के लोग आज भी सिर पर पगड़ी नहीं पहनते हैं क्योंकि वह ऐसा मानते हैं कि बाबर के आक्रमण से वह अयोध्या को नहीं बचा पाए थे और हार का सामना करना पड़ा था। इसी हार को उन्होंने कभी ना भूलने वाली यादें बनाकर सात पीढिय़ों से ना तो पगड़ी पहन रहे हैं और ना ही शादी-विवाह में मंडप का आयोजन होता है और ना ही वह जूते सहित कोई भी शान शौकत की सामग्री दूल्हा बनने के बाद भी नहीं पहनते हैं। यह सब सिर्फ इसलिए है कि भगवान श्रीराम का फिर से मंदिर बन जाए।
ऐसे ना जाने कितने अनगिनत लोग है जो कि अपने-अपने संकल्पों के साथ भगवान श्रीराम का मंदिर बनता और उसमें भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होते हुए अपनी आंखों से देखना चाहते हैं ताकि उनके संकल्प पूरे हो सकें। 22 जनवरी को श्रीराम मंदिर का सपना संजोए जो इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं जहां उनकी आत्मा को शांति के साथ-साथ मुक्ति मिलेगी वहीं जो जीवित है उनका संकल्प पूरा होगा। इस क्षण का सभी को बड़ी ही बेसब्री से इंतजार है।
अक्सर कहा जाता है कि जब भी कोई बड़ा काम करना हो तो सबसे पहले अपने विरोधियों को साथ ले लेना चाहिए। इससे कार्य के दौरान आने वाले विघ्र समाप्त हो जाते हैं। समुद्र का जब मंथन करने की बारी आई थी तो एक-दूसरे के धुर-विरोधी देवता और दैत्य दोनों साथ-साथ आए गए थे और रस्सी के रूप में वासुकी नाग का उपयोग किया था। देवता और दैत्यों के प्रयासों से किए गए समुद्र मंथन के बाद ही अमृत निकला था। आज भी लगभग यही स्थिति देश में निर्मित हो रही है। श्रीराम लला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर भी एक पक्ष जहां इसे देश की उपलब्धि बता रहा है तो दूसरा पक्ष इसे अपने मान-सम्मान से जोड?र देख रहा है।
आज देश में चहुंओर यह चर्चाओं का बाजार गर्म है कि शंकराचार्यों ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी बना ली है। देश के प्रधानमंत्री के मुख्य यजमान बनने से शंकराचार्यों की नाराजगी बढ़ती जा रही है। अगर ऐसा है तो यहां पर सवाल यह भी उठता है कि जब भगवान टेंट में रह रहे थे तब शंकराचार्य मठ में रह रहे थे। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीराम मंदिर का विधिवत भूमिपूजन किया। सभी शंकराचार्यों सहित प्रमुख लोगों को प्राण प्रतिष्ठा का ट्रस्ट के माध्यम से निमंत्रण भी भेजा गया। इसके बाद भी यदि प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी बनाना समझ से परे नजर आता है।
अरे भगवान श्रीराम का मंदिर तो देश में बन रहा है। सभी शंकराचार्यों को भी इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह में पूरे उत्साह के साथ शामिल होना चाहिए। वहीं श्रीराम मंदिर ट्रस्ट को भी सभी शंकराचार्यों की गरिमा का ध्यान रखते हुए कार्यक्रमों में संशोधन करना चाहिए क्योंकि आयोजन ना सिर्फ शंकराचार्य, प्रधानमंत्री और ट्रस्ट का है बल्कि यह आयोजन समूचे 140 करोड़ देशवासियों का है। मंदिर को लेकर तो मैं सिर्फ यही कहूंगा कि जब मुझमें भी राम…तुझमें भी राम हैं तो फिर किस बात का अभिमान किया जा रहा है।
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