कांग्रेस में पूर्णकालिक और कार्यवाहक के बीच शीतयुद्ध
बैतूल -Political News – तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर बताओ कुल कितने तीतर…अपने जमाने की प्रसिद्ध पहेली थी। ठीक ऐसी ही स्थिति जिले में कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की हो रही है।
राष्ट्रीय स्तर पर कांगे्रस अपने सबसे बुरे समय से गुजर रही है। एक दिन भी ऐसा नहीं जा रहा है कि जब कोई प्रमुख, प्रतिष्ठित और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पार्टी छोड़ नहीं रहा हो। कांगे्रस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा क्या हुई? दावेदार और गुटीय समीकरण के अंतर्गत कांग्रेस पर कब्जा करने का ख्वाब देखने वाले गांधी परिवार का विरोध करने के लिए खुलकर सामने आ रहे हैं। लेकिन आम कांग्रेसजनों का मानना है कि कांग्रेस अध्यक्ष तो गांधी परिवार से ही बनेगा। कांग्रेस में कार्यवाहक अध्यक्ष बनाए जाने की परंपरा अर्जुन सिंह के समय से चल रही है। जो धीरे-धीरे जिला स्तर से होते हुए ब्लाक स्तर तक पहुंच गई है। अब जो जिले का बड़ा नेता अपने समर्थक को जिलाध्यक्ष नहीं निर्वाचित करवा पाता है। वह पीछे के रस्ते से कार्यवाहक अध्यक्ष बनवाकर अपनी राजनीति करने का मौका ढंूढ लेता है। बस यहीं पर कांग्रेस की गुटबाजी में और वृद्धि होने लगती है।
कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर कई बार टूटी है लेकिन 1978 में इंदिरा गांधी ने जब कांग्रेस का विभाजन करवाकर अखिल भारतीय कांग्रेस (इंदिरा) बनाई तब से बैतूल जिले में पहली बार जिला कांग्रेस में कार्यवाहक जिलाध्यक्ष की नियुक्ति हुई है। वह भी उस समय जब जिले में पूर्णकालिक कांग्रेस अध्यक्ष सुनील शर्मा सफलतापूर्वक कांग्रेस संगठन का संचालन कर रहे थे। और उनके कार्यकाल के दौरान वर्षों बाद जिले में 5 में से 4 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के विधायक बने।
सुनील शर्मा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। और कई गंभीर दावेदारों के दावों के बावजूद मई 2018 में कमलनाथ ने सुनील शर्मा पर भरोसा किया और उन्हें जिला कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी। और पिछले साढ़े चार वर्षों में सुनील शर्मा ने कांग्रेस के जिला संगठन से लेकर मंडलम तक सैकड़ों उपेक्षित और सक्रिय कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां दिलवाकर संगठन को मजबूत किया।
जिला कांग्रेस अध्यक्ष सुनील शर्मा को कमलनाथ ने नियुक्त किया था। और इसलिए वे जिले में कमलनाथ के एक अन्य समर्थक मुलताई विधायक सुखदेव पांसे के साथ राजनैतिक ट्यूनिंग बनाकर चले। इसलिए सुनील शर्मा निर्विघ्र रूप से संगठन में काम करते रहे। लेकिन राजनैतिक समीक्षकों का ऐसा मानना है कि जैसे ही सुनील शर्मा ने जिले में कांग्रेस के गुटीय समीकरण में दूसरे गुट को महत्व देना शुरू किया वैसे ही विधायक सुखदेव पांसे ने सुनील शर्मा के पर कतरने के अभियान के चलते जिला कांग्रेस संगठन में जिला कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में हेमंत वागद्रे की नियुक्ति में महत्वपूर्ण निभाई।
अब जिले में जिला कांग्रेस संगठन में दो-दो अध्यक्ष हो गए है। इसलिए कांग्रेस में गुटबाजी और बढ़ती दिखाई दे रही है। और अब तो ऐसा हो रहा है कि जहां जिला कांग्रेस अध्यक्ष कांग्रेस के एक कार्यक्रम में जा रहे हैं तो वहां कार्यवाहक अध्यक्ष की अनुपस्थित दिख रही है। वहीं जिन कार्यक्रम में कार्यवाहक अध्यक्ष पहुंच रहे हैं तो वहां पूर्णकालिक जिला कांग्रेस अध्यक्ष दिखाई नहीं दे रहे हैं। इसको लेकर कांग्रेस का आम कार्यकर्ता पेसोपेश में है कि वह कांग्रेस के किस कार्यक्रम में जाए और किसने में नहीं?