Political Analysis – लाखों वोटों से जीतने का रिकार्ड भाजपा के नाम

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1996 से निरंतर भाजपा का कब्जा

Political Analysisबैतूल बैतूल लोकसभा सीट के रूप में पहला चुनाव 1952 में हुआ था। और 1952 से 2009 तक यह सीट अनारक्षित रही। लेकिन 2009 के बाद नए परिसीमन के चलते यह सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। भाजपा 1996 से ही निरंतर इस सीट पर विजय प्राप्त कर रही है। वहीं इन 23 वर्षों में कांग्रेस उम्मीदवार बदलती रही लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई। कांग्रेस ने इन 23 वर्षों में बाहरी से लेकर स्थानीय नेताओं पर दांव चलाया इसके बावजूद चार बार भाजपा के उम्मीदवार एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से चुनाव जीते। वहीं 3 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीतने के रिकार्ड भी भाजपा के दो उम्मीदवारों के नाम दर्ज हो गया है।

1 लाख से अधिक वोटों से जीते खण्डेलवाल

1996 में भाजपा ने पहली बार नए उम्मीदवार के रूप में कर सलाहकार विजय खण्डेलवाल पर दांव लगाया और पहला ही चुनाव वे कांग्रेस के तत्कालिन केंद्रीय मंत्री एवं भोपाल के रहने वाले असलम शेर खान से 1 लाख 12 हजार 76 वोटों के बड़े अंतर से चुनाव जीते। 1998 में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे पूर्व मंत्री डॉ. अशोक साबले को 39666 वोटों से हराने के बाद 1999 के चुनाव में कांग्रेस के एक और दिग्गज पूर्व सांसद भोपाल निवासी गुफराने आजम को 64472 वोटों से हराया। अपने जीवन का अंतिम चुनाव 2004 में लडऩे वाले विजय खण्डेलवाल ने चिचोली निवासी कांग्रेस नेता राजेंद्र जायसवाल 1लाख 57 हजार 540 वोटों से पराजित कर 1952 से 2004 तक के बीच सबसे बड़ी जीत का रिकार्ड कायम किया।

3 लाख से जीत का रिकार्ड ज्योति के नाम

2009 में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित बैतूल, हरदा, हरसूद संसदीय सीट से भाजपा की टिकट पर अपने जीवन का पहला बड़ा चुनाव लडऩे वाली श्रीमती ज्योति धुर्वे ने कांग्रेस के सरपंच स्तर के आदिवासी नेता ओझाराम इवने को 97 हजार 917 वोटों से हराया था। वहीं अगले 2014 के चुनाव में ज्योति धुर्वे ने कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं मध्यप्रदेश आदिवासी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष एवं हरदा जिले के रहवासी अजय शाह को 3 लाख 28 हजार 614 वोटों के बड़े अंतर से पराजित कर फिर एक बार 1952 से 2014 के बीच सबसे बड़ी जीत का रिकार्ड बना लिया।

डीडी ने तोड़ा ज्योति धुर्वे का रिकार्ड

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दो बार की जीती ज्योति धुर्वे की टिकट काटकर शिक्षक रहे दुर्गादास उइके को चुनाव मैदान में उतार दिया। दुर्गादास उइके अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रहे थे। उनके सामने कांग्रेस ने भोपाल में रहकर छात्र राजनीति करने वाले रामू टेकाम को टिकट दी। रामू टेकाम का भी यह पहला चुनाव था। लेकिन दुर्गादास उइके बैतूल जिले के संसदीय इतिहास के 71 वर्षों के सभी रिकार्ड ध्वस्त करते हुए रामू टेकाम को 3 लाख 60 हजार 241 वोटों के बड़े अंतर से पराजित किया।