Betul Congress – 46 कांग्रेसियों ने हिलाई सरकार?

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जिले में जंबो कार्यकारिणी के बावजूद गायब रहे पदाधिकारी

Betul Congressचुनाव हारने के बाद गत दिवस जिला कांग्रेस संगठन द्वारा सांसदों के निलंबन के विरोध में प्रदर्शन आयोजित किया था। जिसमें जिला कांग्रेस के एक गुट की अनुपस्थिति चर्चा का विषय रही। 2018 के चुनाव में जिले की पांच से चार सीट जीतने वाली कांग्रेस का 2023 के विधानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया है और कांग्रेसियों को हार का बड़ा सदमा लगा है। इस सदमे का असर चुनाव हारने के बाद कांग्रेसियों के हुए पहले प्रदर्शन में भी दिखाई दिया। 2018 के चुनाव में जीते चार विधायकों में से तीन गायब नजर आए।

46 कांग्रेसियों ने प्रदर्शन में लिया भाग | Betul Congress

जिला कांग्रेस संगठन द्वारा इस प्रदर्शन का आयोजन किया गया था जिसमें जिला कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील शर्मा, पूर्व विधायक निलय डागा, प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री समीर खान के अलावा कोई बड़ा नाम शामिल नहीं हुआ। जबकि जिले में प्रदेश कांग्रेस की ओर से लगभग 10 पदाधिकारी नियुक्ति किए गए थे। जिसमें प्रदेश कांग्रेस महामंत्री निशा बांगरे, प्रदेश कांग्रेस सचिव किरण झरबड़े सारनी, प्रदेश कांग्रेस सचिव मनोज आर्य चिचोली, प्रदेश कांग्रेस सचिव तिरूपति एरूलु सारनी, सरफराज यूथ कांग्रेस प्रदेश सचिव बैतूल, राहुल परते यूथ कांग्रेस प्रदेश सचिव बैतूल, राहुल छत्रपाल यूथ कांग्रेस प्रदेश सचिव भैंसदेही, स्पेंसर लाल जिला संगठन मंत्री शामिल हैं जो इस प्रदर्शन से दूर रहे।

22 दिसंबर को प्रकाशित खबर 

एक सैकड़ा पदाधिकारी रहते हैं शहर में

बताया जा रहा है कि जिला कांग्रेस संगठन में लगभग एक सैकड़ा पदाधिकारी भी ऐसे हैं जो बैतूल नगर पालिका सीमा के अंदर ही निवास करते हैं जिनमें से अधिकांश जिला उपाध्यक्ष, जिला कोषाध्यक्ष, जिला महामंत्री एवं जिला सचिव तथा कार्यकारिणी सदस्य भी शामिल है। इस जंबो संगठन के बावजूद गत दिवस हुए पहले प्रदर्शन में मुट्टी भर पदाधिकारी ही कलेक्ट्रेट में ज्ञापन देते समय दिखाई दिए। वैसे ही यह कहावत आम है कि चढ़ते सूरज को ही सभी प्रणाम करते हैं। कांग्रेसियों को भी मालूम है कि अब पांच साल तक सिर्फ इंतजार ही करना है।

निष्क्रिय पदाधिकारी के भरोसे ऐसे जीतेंगे चुनाव? | Betul Congress

कांग्रेस में पदों की बंदरबांट आम बात है लेकिन इनमें से 90 प्रतिशत पदाधिकारी सिर्फ पद मिलने के बाद लेटर पेड छपाने तक सीमित रहते हैं। राजनैतिक समीक्षकों का कहना है कि इन निष्क्रिय पदाधिकारी के रहते कांग्रेस आने वाले सहकारिता चुनाव और लोकसभा चुनाव में जीत का स्वाद चख पाना संभव नहीं लग रहा है।