मुलताई(राकेश अग्रवाल) – जिले में अपनी अलग ऐतिहासिक पहचान रखने वाला मुलताई के पास स्थित शेरगढ़ का किला रख-रखाव के अभाव एवं उपेक्षा के कारण पर्यटन की संभावना होने के बावजूद अपनी पहचान खो रहा है। पुरातत्व विभाग सहित पंचायत की लापरवाही से फिलहाल यहां पहुंचने वाले दूर-दूर से आए पर्यटकों को निराशा हाथ लगती है।

किले में उग आई बड़ी-बड़ी झाडियों से किले के अंदर जाना मुश्किल हो गया है। खजाने की खोज में लोगों ने इस किले को पूरी तरह से खोद दिया है। किले में जगह-जगह गहरे गड्ढे हैं। किवदंती है कि इस किले में सोना और चांदी दबा हुआ है। इसी के चलते रातों में इस किले में लोग खुदाई करते हैं। प्राकृतिक दृष्टि से भी यह स्थान अपनी विशेषता रखता है। किले के आसपास वर्धा नदी सहित छोटी-बड़ी पहाडियां हैं। बारिश के दिनों में हरी-भरी वादियां इसे और खूबसूरत बनाती हैं। इसके बावजूद शासन प्रशासन द्वारा इसे उपेक्षित किया गया है।
शेरसिंह बनाया, मुस्लिम शासकों ने किया कब्जा
शेरगढ़ का किला गोंड राजा शेरसिंह द्वारा बनाया गया था, लेकिन बाद में इस पर मुस्लिम शासक द्वारा कब्जा कर लिया गया था। इसलिए यहां मंदिर एवं मजार दोनों स्थित है। प्रकृति के बीच में वर्धा नदी की कल-कल एवं प्रकृति के बीच मंदिर सहित सहित अन्य ऐतिहासिक स्थल किले को पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाते हैं। मां ताप्ती की नगरी में आने वाले लोगो के लिए भी यह एक घूमने का स्थान हो सकता है।
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