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Strange : जानिए आखिर क्यों खुशी-खुशी ग्रामीण सहते हैं कोड़े का दर्द

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मान्यता है कि ऐसा करने से दूर हो जाते हैं सभी दुख-दर्द

धामनगांव – ग्राम धामनगांव में चैत्र के पर्व पर रेणुका सिद्ध पीठ पर मां रेणुका की मन्नत पूरी करने भगत पांच दिनों तक बनते हैं और चैत्र की तीज पर काली मां का खप्पर हाथ में लेकर नृत्य करते हैं। चैत्र के दिन नाड़ा गाड़ा खिंचकर मन्नत पूरी की जाती है।


सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा

सैकड़ों साल पुरानी परंपरा आज भी निभाई जा रही है। इस परंपरा पर यकीन करना मुश्किल है। यहां लोग बीमारी दूर करने के लिए देवी से मन्नत मांगते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर नाड़ा-गाड़ा परंपरा निभाते हैं। इस परंपरा के तहत लोग मन्नत पूरी होने पर अपने शरीर को साधू रूप में वेष धारण कर शरीर में हल्दी का लेप पांव घुंघरू गले में माला पहन कर नग्न पांव भरे दोपहर में तपती धूप में नाचते हैं और पांच दिनों तक ब्रम्हचर्य का पालन कर जमीन पर ही सोते हैं। चैत्र की तीज को माता के बने भगत मन्नत पूरी करने के लिए पांच बैलगाड़ी अकेला ही खिंचता है।

पापों से मुक्ति के लिए सहते हैं कोड़े

वहीं सैकड़ों साल से चली आ रही परंपरा के अनुसार भक्तों द्वारा बैलगाड़ा खिंचने पर गाड़ा की रक्षा करने के लिए माता के भक्तों के पास रस्सी से बने चाबुक भी होते हैं। पुरानी परम्परा के अनुसार कहा जाता है कि शरीर के दु:ख दर्द और सभी पापों से मुक्ति के लिए लोग माता के बैलगाड़ी पर चढ़ते हैं और भक्तों के हाथों से कोड़े खाते हैं।

इस अनोखी परम्परा में हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। इस भव्य आयोजन में ना तो व्यवस्था के लिए प्रशासन मौजूद होता और नहीं पुलिस बल। जबकि इस तरह की अनोखी परम्परा के चलते बड़ी घटनाएं भी हो सकती है।

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