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जिस नदी के जल को नीम करौली बाबा ने बना दिया घी, विवेकानंद भी उसके किनारे लगा चुके ध्यान

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उत्तराखंड के नैनीताल का कैंची धाम आज देशभर में आस्था का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है. हर साल लाखों श्रद्धालु यहां बाबा नीम करौली बाबा के दर्शन और उनके चमत्कारों की अनुभूति के लिए पहुंचते हैं. बाबा के जीवन से जुड़ी कई चमत्कारी कथाएं लोगों के बीच आज भी जीवित हैं. ऐसी ही एक कहानी उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी से जुड़ी है, जो आज भी कैंची धाम के पास बहती है और रहस्य, श्रद्धा और शांति का प्रतीक मानी जाती है.

कहते हैं कि एक बार कैंची धाम में 15 जून को होने वाले वार्षिक भंडारे के दौरान अचानक घी की भारी कमी हो गई. भक्तों में चिंता का माहौल था क्योंकि प्रसाद के लिए घी अनिवार्य था. आसपास के क्षेत्रों से घी मंगाने की कोशिशें नाकाम रहीं. तब बाबा नीम करौली ने शिप्रा नदी से जल लाने का आदेश दिया. भक्तों ने जैसे ही नदी से जल लाकर बाबा के सामने रखा, बाबा ने उस जल को आशीर्वाद देते हुए कहा “अब यह घी है, जाओ और इससे प्रसाद बनाओ.” आश्चर्य की बात यह थी कि वह जल सचमुच घी में बदल गया. उसी घी से मालपुए बनाए गए और भंडारा सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ. भंडारे के बाद बाबा ने कहा कि जितना घी हमने शिप्रा से लिया था उतना घी वापिस शिप्रा को देकर आओ, जिसके बाद घी को शिप्रा नदी में वापस डाल दिया गया.

मोक्षदायिनी, पाप नाशिनी

यह चमत्कार शिप्रा नदी की धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता को और भी बढ़ा देता है. भवाली से होकर बहने वाली यह शिप्रा नदी एक उत्तरवाहिनी नदी है, यानी यह दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है. भारत में अधिकतर नदियां उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं, इसलिए उत्तरवाहिनी नदियों को अत्यंत पवित्र और दुर्लभ माना जाता है. स्कंद पुराण के मानसखंड में इस नदी का विशेष उल्लेख मिलता है और इसे मोक्षदायिनी तथा पाप नाशिनी कहा गया है.

सदियों बाद भी उतनी पवित्र

शिप्रा कल्याण समिति के अध्यक्ष जगदीश नेगी बताते हैं कि इस नदी का उद्गम भवाली के श्यामखेत स्थित देवदार और चीड़ के जंगलों से होता है. भवाली शहर के लिए यह नदी जीवनरेखा है. कहा जाता है कि बाबा नीम करौली अक्सर शिप्रा नदी के किनारे एक पत्थर पर बैठकर साधना किया करते थे. स्वामी विवेकानंद ने भी उत्तराखंड यात्रा के दौरान इसी नदी के तट पर ध्यान लगाया था. आज भी यह नदी श्रद्धालुओं के लिए उतनी ही पवित्र है जितनी सदियों पहले थी. इसे केवल एक नदी नहीं, बल्कि आस्था और चमत्कार की धारा के रूप में देखा जाता है, जिसे बचाए रखना सबकी जिम्मेदारी है.

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