Politics On Liquor – चुनाव के पहले शराब पर गर्मायी राजनीति, हर मुख्यमंत्री ने बदली शराब नीति

Politics On Liquorभोपाल भाजपा में साइडलाइन हो गई मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती प्रदेश में 8 महीने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले प्रदेश की भाजपा सरकार की शराब नीति को लेकर सरकार को घेरने का कोई अवसर नहीं छोड़ रही हैं।

इसे भाजपा की आतंरिक गुटीय राजनीति से भी जोड़ा जा रहा है। क्योंकि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के बीच पार्टी के भीतर राजनैतिक प्रतिद्वंदिता सार्वजनिक होती रही है।

राजनैतिक समीक्षकों का मानना है कि अब विधानसभा चुनाव के पहले सरकार और पार्टी पर दबाव बनाने और अपनी राजनैतिक हैसियत बढ़ाने के लिए उमा भारती शराब नीति को मुद्दा बनाए हुए हैं।

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14 हजार करोड़ राजस्व का रखा लक्ष्य | Politics On Liquor

मध्यप्रदेश सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में शराब से 14 हजार करोड़ से अधिक का राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा है। नई शराब नीति भी जल्द आने वाली है। दूसरी ओर प्रदेश में शराब के खिलाफ मोर्चा खोले बैठीं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती चेतावनी दे रही हैं कि यदि नीति में उनके सुझाव शामिल नहीं किए तो परिणाम भुगतने होंगे।

लेकिन कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के मुख्यमंत्रित्व और भाजपा के शिवराज सिंह चौहान ने भी शराब से प्रदेश का राजस्व बढ़ाने के लिए हर बार शराब नीति में परिवर्तन किया है लेकिन किसी ने भी शराब बंदी पर सार्वजनिक रूप से अपनी और अपनी पार्टी की स्थिति स्पष्ट नहीं की।  

दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में ऐसी थी व्यवस्था

1993 से 2003 के बीच कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे उस समय जिले वार केंद्रीयकृत व्यवस्था (मोनोपॉली) थी। जिला अधिकारी के विवेक पर था कि वह जिसे चाहे जिले का ठेका सौंप देता था। फिर वह 10 प्रतिशत, 5 प्रतिशत या 3 प्रतिशत… घटाकर दे या बढ़ाकर दे।

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उमा भारती के समय दुकानों के समूह | Politics On Liquor

2003 के बाद कुछ समय तक भाजपा नेत्री उमा भारती मुख्यमंत्री थीं। उस समय शराब नीति में परिवर्तन कर हर जिले में दुकानों के समूह बनाए गए। हर समूह में तीन-चार दुकानें रखी गईं। इन समूहों को लाटरी के जरिए ठेके दिए गए।

2005 से 2018 तक थे शिवराज मुख्यमंत्री

2005 से लगातार 2018 तक नए विधानसभा चुनाव होने तक शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री थे उस दौरान जिलों की शराब दुकानों का पुनर्गठन किया गया। हर समूह में एक-दो दुकानें ऐसी रखी जो ज्यादा चलती हों। नई शॉप खोलीं। ऑन-ऑफ व्यवस्था की। ऑन मतलब अहातों के साथ और ऑफ बिना अहातों के।

जिले में रेवेन्यू 100 करोड़ है तो 80 करोड़ से कम यानी 80त्न राजस्व से कम पर रिन्यूवल नहीं करने का नियम बना। ये बाद में 70त्न हुआ। यह पूरा नहीं होने पर पूरे जिले का टेंडर किया। एमआरपी व एमएसपी में 20त्न अंतर किया।

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कमलनाथ के 15 महीने में नई पालिसी | Politics On Liquor

दिसम्बर 2018 में कांग्रेस नेता कमलनाथ मुख्यमंत्री बने और उन्होंने कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय शासन के दौरान शराब नीति फिर लागू करी। 16 महानगर व बड़े जिलों में केंद्रीयकृत व्यवस्था की। जिले का ठेका एक व्यक्ति, एक फर्म को दिया। बाकी जिलों में कुछ राशि बढ़ाकर रिन्युवल से टेंडर कराए।

फिर आए शिवराज सिंह

2020 मार्च के दौरान अचानक कमलनाथ सरकार गिरी और शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बन गए। उन्होंने आते से ही शराब नीति में फिर परिवर्तन किया और दोबारा फुटकर समूह में टेंडर व्यस्था जारी करवाई। पहली बार 85 प्रतिशत खपत जरूरी। कंपोजिट पॉलिसी लाए। देसी में विदेशी, विदेशी में देसी शराब बिकने लगी। पहले वैट जोडक़र एमएसपी बनती थी, अब एमएसपी बनाकर वैट जोड़ रहे। पहली बार समूह 60 प्रतिशत घटकर गए।

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चुनाव के पहले फिर बदल सकती है शराब नीति | Politics On Liquor

85 प्रतिशत शराब की खपत का जरूरी नियम बन रहा है जो अनावश्यक है। वैट 10त्न एमएसपी से जुड़ा रहेगा। एमआरपी और एमएसपी के बीच का अंतर बढ़ेगा या नहीं, स्पष्ट नहीं। ठेकेदारों का प्रॉफिट कैसे बढ़ेगा यह साफ नहीं किया। यह भी साफ नहीं है कि कोरोना काल में हुए आबकारी के बकायादारों को वर्ष 2023-24 की टेंडर प्रक्रिया के लिए पात्र माना जाएगा या नहीं। पात्रता नहीं मिली तो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा प्रभावित होगी।

Source – Internet

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