
दल-बदल के बाद भी मिला महत्व
Political News – बैतूल – आजादी के बाद पिछले 70 वर्षों के दौरान जिले की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। कई नेताओं ने आसमान की बुलंदियों को छुआ तो कुछ समय बाद इनमें से कई राजनैतिक के बियाबान में गुम हो गई। सांध्य दैनिक खबरवाणी द्वारा चलाई जा रही राजनैतिक समीक्षा की श्रृंखला में आज हम उन उम्मीदवारों के बारे में बात करेंगे जो कांग्रेस से भी लड़े और भाजपा से भी लड़े। वहीं कुछ उम्मीदवार कांग्रेस तो लड़े ही इसके बाद मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी से भी चुनाव मैदान में कूद गए।
कड़वे कांग्रेस से जीते, भाजपा से हारे

मुलताई क्षेत्र के कांग्रेस नेता अशोक कड़वे को जनपद अध्यक्ष रहते हुए 1985 में पहली बार कांग्रेस ने मुलताई विधानसभा से चुनाव मैदान में उतारा और उन्होंने भाजपा के मनीराम बारंगे को 921 वोटों से पराजित कर विधायक बनने का अवसर प्राप्त किया। इसके कुछ सालों बाद अशोक कड़वे भाजपा में शामिल हो गए और उन्हें 1998 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मुलताई से प्रत्याशी बनाया लेकिन वो चुनाव हार गए । इस चुनाव में निर्दलीय सुनीलम विजयी हुए। और कांग्रेस के डॉ. पंजाबराव बोडख़े दूसरे स्थान पर रहे। बाद में अशोक कड़वे को भाजपा प्रत्याशी के रूप में जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया गया।
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कांग्रेस से जीते, सपा से हारे | Political News

1985 में कांग्रेस की टिकट पर अपने जीवन का पहला चुनाव लडऩे वाले डॉ. अशोक साबले ने भाजपा उम्मीदवार को हराकर चुनाव जीत लिया। इसके बाद 1990 में भाजपा प्रत्याशी से चुनाव हार गए लेकिन 1993 में फिर एक बार कांग्रेस की टिकट पर डॉ. साबले विधायक निर्वाचित हुए और मंत्री बनने का मौका मिला। लेकिन 1998 में कांग्रेस से टिकट ना मिलने के कारण 2003 में उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी से चुनाव मैदान में कूद गए लेकिन वो चुनाव हार गए और उनके चुनाव मैदान में कूदने से कांग्रेस प्रत्याशी को भी हार का सामना करना पड़ा था।
कांग्रेस-भाजपा दोनों से मिली हार

1993 में राजा पंवार को मुलताई विधानसभा सीट से कांग्रेस ने मैदान में उतारा। तत्कालिन जनपद अध्यक्ष राजा पंवार क्षेत्र के जुझारू नेता माने जाते रहे हैं। लेकिन उन्हें इस विधान सभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में डॉ. पंजाबराव बोडख़े निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए। इसके कुछ समय बाद राजा पंवार भाजपा में शामिल हो गए और धीरे-धीरे उनकी जिले के प्रमुख भाजपा नेताओं के रूप में पहचान बन गई। और 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इन्हें मुलताई विधानसभा सीट से चुनाव में उतारा लेकिन पुन: एक बार पराजय मिली। इसके कुछ समय बाद ही उन्हें भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष बना दिया।
कांग्रेस से हारे, भाजपा से जीते | Political News

1998 में तत्कालिन जिला पंचायत सदस्य चैतराम मानेकर को कांग्रेस ने आमला विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया लेकिन वे 600 मतों से चुनाव हार गए। इसके कुछ समय बाद वे भाजपा में शामिल हो गए और 2008 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें आमला सीट से ही चुनाव लडऩे का मौका दिया और उन्होंने रिकार्ड मतों से जीत हासिल करी। इसके बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने भाजपा की टिकट पर फिर एक बार ऐतिहासिक मतों से जीत दर्ज करी। इसके बाद 2018 के चुनाव में टिकट ना मिलने पर वे कुछ समय बाद कांग्रेस के मंच पर नजर आए। ेलेकिन बाद में वे फिर भाजपा के कार्यक्रमों में दिखने लगे।
कांग्रेस से हारे, भाजपा से बने नपाध्यक्ष

आमला विधानसभा सीट से 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े किशोर बरदे को 30 हजार मतों की लंबी हार मिली। किशोर बरदे को अंतिम क्षणों में कांग्रेस का बी फार्म हेलीकाप्टर से भेजा गया था। लेकिन चुनाव हारने के बाद राजनीति में निष्क्रिय हो गए और अचानक कुछ सालों बाद भाजपा में शामिल हो गए। 2022 के सारनी नगर पालिका के चुनाव में भाजपा के पार्षद निर्वाचित हुए और भाजपा के निर्देश पर नपाध्यक्ष बनने का मौका मिला।
कांग्रेस से जीते फिर कांग्रेस और सपा से हारे | Political News

सरकारी नौकरी छोडक़र कांग्रेस की टिकट पर घोड़ाडोंगरी विधानसभा सीट से 1993 में चुनाव लडऩे वाले प्रताप सिंह जीते फिर 1998 का चुनाव भी जीते और दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार में मंत्री बने। लेकिन 2003 और 2008 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव हार गए। 2016 के उपचुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में हार का सामना करना पड़ा। फिर 2018 में उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी से घोड़ाडोंगरी सीट से चुनाव लड़ गए लेकिन करारी हार का सामना करना पड़ा।
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