Search ई-पेपर ई-पेपर WhatsApp

क्या संसद का विशेष सत्र जरूरी? जानिए परंपरा, विपक्ष की मांग और सरकार का रुख

By
On:

Parliament Special Session: पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद दुनिया में गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों से भारत की एकजुटता का अच्छा संदेश गया है लेकिन अब देश के अंदर सियासी दांवपेंच शुरू हो गया है। कांग्रेस के नेतृत्व में 16 विपक्षी दलों ने यहां कांस्टीट्यूशन क्लब में बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। पत्र पर विपक्ष के 200 सांसदों के हस्ताक्षर का दावा किया गया है। विपक्ष की मांग है कि गत 40 दिनों में जो कुछ घटा है, उसके बारे दुनिया के साथ संसद के जरिए देश के लोगों के साथ भी चर्चा जरूरी है। उधर, सरकारी सूत्रों ने कहा है कि सामने मानसून सत्र आ रहा है तो विशेष सत्र की मांग का कोई औचित्य नहीं है। मानसून सत्र में विपक्ष के पास सवाल करने का मौका होगा और जवाब दिए जाएंगे। मानसून सत्र जुलाई में तय है।

सीडीएस के खुलास के बाद जरूरी हुआ सत्रः कांग्रेस

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट में कहा कि 10 मई को ही लोकसभा और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष ने प्रधानमंत्री को संसद का विशेष सत्र बुलाने के लिए पत्र लिखा था। दो दिन पहले सिंगापुर में सीडीएस अनिल चौहान ने जो खुलासे किए हैं, उसके बाद यह सत्र और भी आवश्यक और तात्कालिक हो गया है। रमेश ने कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के ऑपरेशन सिंदूर को रोकने के लिए व्यापारिक दबाव का इस्तेमाल करने के दावे ओर पहलगाम आतंकी हमले के आरोपी गिरफ्त से दूर रहने जैसे सवालों के जवाब जरूरी हैं।

विपक्ष की मांग औचित्यहीनः सरकार

सरकारी सूत्रों का कहना है कि जुलाई में संसद का मानसून सत्र प्रस्तावित है तो वहां विपक्ष को सवाल पूछने का भरपूर मौका मिलेगा। जो भी सवाल खड़े होंगे, सरकार जवाब देगी। ऐसे में मानसून सत्र से पहले विशेष सत्र बुलाने की मांग उचित नहीं है। सरकार इस मांग पर विचार भी नहीं कर रही है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत कह चुके हैं कि सरकार के पास छिपाने को कुछ नहीं है। संसद सत्र में जवाब दिए जाएंगे।

इन सवालों का जवाब चाहता है विपक्ष

-ऑपरेशन सिंदूर के दौरान किन परिस्थितियों में हुआ सीजफायर, अमेरिका ने श्रेय लेने की क्यों कोशिश की?
-ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंकवाद से निपटने की हमारी रणनीति क्या होनी चाहिए?
-क्या हम पाकिस्तान को दुनिया में कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने में सफल हो पाए?

इन दलों के सांसदों ने की मांग

कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, शिवसेना (उबाठा), राष्ट्रीय जनता दल, नेशनल कांफ्रेंस, माकपा, आईयूएमएल, भाकपा, आरएसपी, झामुमो, भाकपा (माले) (लिबरेशन) सहित 16 अन्य दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री को लिखे इस पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।

विशेष सत्र की परंपरा नहीं, सिर्फ 1962 में हुआ

अतीत में देखें तो युद्ध या सीमा पर संघर्ष को लेकर संसद के विशेष सत्र की कोई परंपरा नहीं है। सिर्फ 1962 में चीन से युद्ध के बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद का विशेष सत्र बुलाकर विपक्ष के सवालों के जवाब दिए थे। इसके बाद पाकिस्तान से 1965 व1971 के युद्ध और 1999 में करगिल संघर्ष के बाद विशेष सत्र नहीं बुलाए गए।

78 साल में हुए 10 विशेष सत्र

14-15 अगस्त 1947: देश की आजादी और अंग्रेजाें से सत्ता हस्तांतरण
8-9 नवंबर 1962 – भारत-चीन युद्ध के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा पर चर्चा
14-15 अगस्त 1972 – स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ पर
9 अगस्त 1992 – ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की 50वीं वर्षगांठ पर
5 14-15 अगस्त 1997 – आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर
22-24 जुलाई 2008 – यूपीए सरकार के खिलाफ विश्वास मत पर
13 मई 2012 – संसद की पहली बैठक की 60वीं वर्षगांठ पर
26-27 नवंबर 2015 – बाबा साहेब आंबेडकर की 125वीं जयंती पर
9 30 जून 2017 – जीएसटी की शुरुआत पर
10 18-22 सितंबर 2023 – नए संसद भवन में महिलाओं के आरक्षण से जुड़ा 106वां संविधान संशोधन पारित करने के लिए विशेष सत्र

For Feedback - feedback@example.com
Home Icon Home E-Paper Icon E-Paper Facebook Icon Facebook Google News Icon Google News