बुखार के मामलों में तेजी से हो रही बढ़ोतरी
Increase: अस्पतालों में भरे पड़े डेंगू, चिकनगुनिया के मरीज इस बार बुखार के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, और डेंगू, चिकनगुनिया, वायरल और लेम फीवर (लंगड़ा बुखार) जैसे विभिन्न प्रकार के बुखारों के लक्षण एक जैसे होने के कारण डॉक्टरों को भी बिना टेस्ट के बुखार की सही पहचान करना मुश्किल हो रहा है। मरीजों को प्राथमिक उपचार के बाद टेस्ट कराने की सलाह दी जा रही है ताकि बुखार का सही प्रकार पता चल सके और उसके अनुसार उपचार किया जा सके।इस बार बुखार से पूरी तरह स्वस्थ होने में 8 से 15 दिन का समय लग रहा है, और लगभग एक महीने तक कमजोरी रह सकती है। बीएमसी (भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर) में प्रतिदिन 50 से अधिक डेंगू संदिग्ध मरीज आ रहे हैं, और इस समय ज्यादातर अस्पताल भरे हुए हैं।डेंगू की पुष्टि के लिए मुख्य रूप से दो प्रकार के टेस्ट किए जा रहे हैं:
एलाइजा टेस्ट – यह डेंगू वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी की पहचान करता है।
डेंगू एनएस1 टेस्ट – यह डेंगू वायरस के गैर-संरचनात्मक प्रोटीन 1 (एनएस1) की पहचान करता है, और इसे बुखार के शुरुआती सात दिनों में किया जा सकता है।डॉक्टरों के अनुसार, कई मरीजों में डेंगू के लक्षण चिकनगुनिया और वायरल बुखार जैसे मिलते-जुलते हैं, इसलिए टेस्ट की आवश्यकता पड़ रही है। साथ ही, कुछ मरीजों में घुटनों में असहनीय दर्द के लक्षण देखे जा रहे हैं, जो लेम फीवर का संकेत हो सकता है। ऐसे मामलों में डेंगू, चिकनगुनिया, और टायफाइड टेस्ट नेगेटिव आने पर लेम फीवर मानकर इलाज किया जा रहा है।डेंगू के संदर्भ में, सरकारी रिकॉर्ड में केवल एलाइजा टेस्ट से पुष्टि किए गए केस ही मान्य होते हैं, जबकि कई लोग एनएस1 टेस्ट के आधार पर इलाज करवा रहे हैं, इसलिए सरकारी रिकॉर्ड में केवल 64 मरीजों को ही डेंगू मरीज माना गया है।
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