अंतिम संस्कार: भारत के बोले जाये या उप्र के दिग्गज नेता मुलायम सिंह ने बड़ी मुश्किलों या बोलै जाये बहुत मेहनत से इतना बड़ा मुक्काम हासिल किया था जिसके मौत का शौक आज भी सभी देशवासियो को आघात करता है आइए नेता जो कभी हमारे भारत देश की धड़कन हुआ करते थे उन्होंने आज अपना दम छोड़ दिया माना जाता है किसी भी तरह हम उस व्यक्ति जैसा बनने की कोसिस करते है जिन्होंने बहुत मेहनत कर इतना बड़ा पद को सम्भाला इसी वजह से सभी कहते है न उनके जैसा कोई नेता नहीं हुआ है और नहीं होगा इतने दिद्दाज और शक्तीशाली प्रभावशाली नेता रहे हमारे मुलायम सिंह यादव राजनीति के अखाड़े में बहुत ऊंचाई हासिल की, लेकिन उनका अपने पैतृक गांव सैफई से कभी लगाव खत्म नहीं हुआ। होली, दिवाली जैसे अहम पर्वों पर वह गांव जरूर जाते थे और लोगों से उनका कनेक्ट ऐसा था कि सभी से मुलाकात करते थे और समस्याओं को सुनते थे। शायद यही वजह है कि मुलायम सिंह यादव धरतीपुत्र कहलाए। जिस गांव में जन्म लिया, उससे खभी दूर नहीं हो सके। यही नहीं अब वह उसी गांव में पंचतत्व में विलीन होने वाले हैं। इसे भी संयोग ही कहेंगे कि किशोरावस्था के दिनों में वह सैफई के जिस मेलाग्राउंड में अखाड़े में पहलवानी करते थे, वहीं उनका अंतिम संस्कार होना है। यह जमीनी व्यक्तित्व ही शायद मुलायम सिंह यादव होने का अर्थ है।
दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार में लगी मेले जैसी भीड़ Fair-like crowd at the funeral of veteran leader Mulayam Singh Yadav

दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार में लगी मेले जैसी भीड़,इतनी भीड़ के चलते उनका मुँह देखने वालो की इच्छा रह गई अधूरी
शव यात्रा में कैसा था माहौल how was the atmosphere in the funeral procession
मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया, लेकिन दूसरे दलों के नेताओं से इतना बैर भी नहीं रखा कि निजी रिश्तों में खटास आए। मुलायम सिंह यादव कठोर फैसले लेने वाले नेता था, लेकिन राजनीतिक सहयोगियों के प्रति नरम ही रहे। व्यक्तित्व ऐसा था कि हर कोई यह मानता था कि वह मुलायम सिंह यादव के करीब है। एक साथ परस्पर विरोधियों को लेकर चलना और मतभेदों के बीच भी राह निकालना उनके लिए बाएं हाथ का खेल था। यही वजह है कि भाजपा, कांग्रेस, एनसीपी समेत तमाम दलों के नेता उनके अंतिम संस्कार में उमड़े हैं। खुद होम मिनिस्टर अमित शाह अस्पताल में उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे और पीएम ने भी भावुक अंदाज में उन्हें याद किया।
इतनी भीड़ के चलते उनका मुँह देखने वालो की इच्छा रह गई अधूरी Due to such a crowd, the desire of those who see his face remained unfulfilled.

आखिरी दर्शनों के लिए लोग पेड़ों तक पर चढ़े People climbed trees to pay their last respects
सपा संस्थापक का दोपहर 3 बजे अंतिम संस्कार होना है और उससे पहले लोग अंतिम संस्कार के लिए उमड़ रहे हैं। प्रदेश और देश के तमाम बड़े नेताओं के अलावा दूर-दूर से आम लोगों का भी हुजूम उमड़ रहा है। उनके शव को मेला ग्राउंड परिसर में रखा गया है, जहां हजारों लोग जुटे हैं। सैफई में वाहनों को खड़ा करने तक की जगह नहीं बची है। गांव को जाने वाली सड़कों पर जाम की स्थिति है। यूं लगता है कि मानो हर बाइक, कार या कोई भी साधन नेताजी को श्रद्धांजलि देने वालों को ले जा रहा है। मुलायम सिंह यादव का शव जब सैफई पहुंचा तो हर आंख नम थी। नेताजी के आखिरी दर्शनों के लिए लोग पेड़ों तक पर बैठे थे ताकि देखने में परेशानी न हो। बहुत से लोग तो नेताजी के पार्थिव शरीर को ले जा रही गाड़ी को छूना भर चाहते थे। Read Also:समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता रहे मुलायम सिंह यादव का हुआ निधन,तबियत गड़बड़ी के चलते 82 साल की उम्र में ली अंतिम सासे
इतनी भीड़ के चलते उनका मुँह देखने वालो की इच्छा रह गई अधूरी

सैफई में गूंजते रहे नेताजी अमर रहें के नारे Slogans of Netaji Amar Rahe kept reverberating in Saifai
हवा में देर तक नेताजी अमर रहें, अमर रहें के नारे देर तक गूंजते रहे। मुलायम सिंह यादव की कोठी पर शव पहुंचा तो परिवार के सभी सदस्य दिन भर उनके चरणों के पास बैठे रहे। देर रात जब आजम खान बेटे संग पहुंचे तो अखिलेश यादव, डिंपल और धर्मेंद यादव समेत परिवार के सभी सदस्यों की भावनाओं का ज्वार फट पड़ा, जिसे उन्होंने दिन भर साधे रखा था। अब घड़ी नेताजी के अंतिम संस्कार की है और उससे पहले हर कोई उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देना चाहता है। सैफई में भावनाएं उफान पर हैं और बादल भी शायद धरती पुत्र के लिए गम को देखते हुए टिप-टिप बरस रहे हैं।
इतनी भीड़ के चलते उनका मुँह देखने वालो की इच्छा रह गई अधूरी

रातोंरात अंतिम संस्कार के लिए बना चबूतरा Overnight funeral platform
मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार के लिए तैयारियां किस कदर की गई है, इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि रातोंरात मेला ग्राउंड पर एक चबूतरा बना दिया गया। बारिश के बीच ही रात से ही सैकड़ों लोग लगे रहे और एक ऊंचा सा चबूतरा बना दिया गया, जिसमें अंतिम संस्कार किया जा सके। इसी ग्राउंड में कभी सैफई महोत्सव का मेला लगता था और आज वहीं पर धरतीपुत्र की विदाई का मेला लगा गया है