
बैतूल – BJP Ki Tyari Shuru – 2003 से लेकर 2013 तक लगातार तीन चुनाव में मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनती रही, लेकिन 2018 में आंकड़ों की बाजीगरी में कांग्रेस से कुछ पीछे रहने के कारण भाजपा की सरकार नहीं बन पाई, यह बात अलग है कि कांग्रेस के विधायकों के टूट के चलते 15 महीने बाद ही भाजपा फिर पावर में आ गई, लेकिन ऐसा लग रहा है कि जिस हिसाब से भाजपा ने संगठनात्मक एवं सत्ता के गलियारों में जिस तरह से अपनी गोटियां बैठानी शुरू की है उससे ऐसा लग रहा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में जीत के लिए भाजपा कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
आदिवासी एवं पिछड़ी जाति बाहुल्य बैतूल जिले में पांच विधानसभा सीट है जिनमें दो आदिवासी, एक अनुसूचित जाति तथा दो अनारक्षित सीटे है। भाजपा जहां संगठन में सवर्ण जाति को समायोजित कर रही है वहीं सत्ता के विभिन्न केंद्रों में अन्य जातियों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। अनारक्षित दो सीटों में मुलताई विधानसभा सीट में कुंबी और पवार जाति की जनसंख्या लगभग बराबर है वहीं बैतूल विधानसभा सीट में कुंबी, किराड़ , पवार, राठौर, क्षत्रिय सहित सभी जातियों का मतदाता वर्ग शामिल है।
पंचायत क्षेत्र में भी रखा जातीय समीकरण का ध्यान
पंचायत क्षेत्र की सबसे बड़ी संस्था जिला पंचायत में लम्बे समय से आदिवासी वर्ग को नेतृत्व मिल रहा था। 2005 से निरंतर जिला पंचायत पर भाजपा का कब्जा है। 2005 में पूर्व विधायक एवं पवार समाज से जुड़े अशोक कड़वे 5 वर्ष अध्यक्ष रहे तो अगला मौका कुंबी समाज की लता राजू महस्की को मिला। इसके बाद आदिवासी वर्ग के मंगल सिंह धुर्वे और सुरजलाल जावरकर के पास जिला पंचायत की कमान रही। इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष पद अनारक्षित था उसके बावजूद भाजपा ने 2023 विधानसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए पवार समाज के दिग्गज नेता मुलताई क्षेत्र के राजा पवार को अध्यक्ष और आदिवासी वर्ग से जुड़े हंसराज धुर्वे को उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है। राजा पवार के अध्यक्ष बनने से यह स्पष्ट हो गया है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में मुलताई विधानसभा सीट से भाजपा का उम्मीदवार पवार जाति से नहीं रहेगा और कुंबी समाज के किसी बड़े नाम को विधानसभा चुनाव में उतारा जा सकता है। इनमें पूर्व विधायक चंद्रशेखर देशमुख, मध्य प्रदेश कौशल रोजगार निर्माण मंडल के पूर्व अध्यक्ष हेमंतराव देशमुख, जिला पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष नरेश फाटे एवं जिला भाजयुमो अध्यक्ष भास्कर मगरदे में से किसी एक को अवसर दिया जा सकता है।
नगरीय निकायों में भी विभिन्न जातियों को मिला स्थान
बैतूल विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत बैतूल, बैतूलबाजार एवं आठनेर नगरपालिका एवं नगर परिषद आती है। अभी आठनेर में चुनाव शेष है। हाल ही में बैतूल और बैतूलबाजार में चुनाव प्रक्रिया पूर्ण हुई है। कुंबी बाहुल्य इस क्षेत्र में बैतूल नगरपालिका परिषद में अध्यक्ष पद पर कुंबी समाज से जुड़ी वरिष्ठ भाजपा नेत्री श्रीमती पार्वती बाई बारस्कर को अध्यक्ष एवं राठौर समाज के महेश राठौर को उपाध्यक्ष बनाया है। वहीं पीआईसी में विभिन्न जातियों के समीकरणों का ध्यान रखते हुए सभापति बनाया गया है इनमें आदिवासी वर्ग के विकास प्रधान, सवर्ण समाज से नितेश पिंटू परिहार, अन्य पिछड़ा वर्ग से रेणुका पवन यादव एवं राजेश पानकर तथा कुंबी समाज से तरूण ठाकरे, कल्पना कैलाश धोटे एवं रघुनाथ लोखंडे को विभिन्न समितियों का सभापति बनाकर बैतूल शहर में भाजपा का वोट बैंक बढ़ाने का प्रयास किया है। क्योंकि शहर में कुंबी, यादव, राठौर एवं क्षत्रिय मतदाता बड़ी संख्या में निवास करते हैं। गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में वर्षों बाद बैतूल शहर में भाजपा पिछड़ गई थी।
रूठों को मनाने का प्रयास, लेकिन दो बड़े चेहरे नदारद
बैतूल नगरपालिका परिषद में अध्यक्ष के लिए आखरी तक कल्पना धोटे का नाम चलता रहा, लेकिन एन वक्त पर पार्वती बाई बारस्कर आगे आ गई। कल्पना धोटे को नपा मेें समिति का सभापति बनाकर उनका ध्यान रखा गया है। इसी तरह से उपाध्यक्ष पद के लिए अंत तक विकास प्रधान का नाम था, लेकिन उपाध्यक्ष नहीं बन पाने के बाद इन्हें लोक निर्माण जैसी प्रमुख समिति का सभापति बना दिया गया है। इसी तरह से वरिष्ठ नेता तरूण ठाकरे एवं वरिष्ठ पार्षद नितेश परिहार को भी उपाध्यक्ष न बन पाने के कारण समिति में एक्जेस्ट किया गया है। बड़े नाम में पूर्व नपाध्यक्ष आनंद प्रजापति और पूर्व नपा उपाध्यक्ष रजनी राजेश वर्मा ही किसी बड़े पद पर नहीं दिखाई दे रही है जिसको लेकर राजनैतिक हल्कों में आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है।
कांग्रेस अध्यक्ष-अध्यक्ष खेलने में सक्रिय
एक तरफ भाजपा संगठन और सत्ता दोनों ही क्षेत्र में 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए पूरी तैयारी में है। रोज बैठकों का दौर चल रहा है। वहीं कांग्रेस में जिला स्तर पर न तो कोई तैयारी दिख रही है और ना ही कोई विजन। नाम न छापने की शर्त पर एक प्रमुख कांग्रेसी का कहना है कि अभी तो जिले में कांग्रेस अध्यक्ष-अध्यक्ष खेलने में लगी है और इसके पहले नपा चुनाव में हारने के बाद नोटिस-नोटिस खेल रही थी। कांग्रेसी एक-दूसरे को निपटाने में लगे हुए हैं जिसका असर 2023 के विधानसभा चुनाव में दिखने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
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