अमेरिका की टैरिफ नीति अब खुद उसी के लिए परेशानी का सबब बनती नजर आ रही है। जिस टैरिफ हथियार को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल किया था, वही अब अमेरिका के भीतर विरोध का कारण बन गया है। भारत पर लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ को लेकर अब अमेरिकी संसद में ही सवाल उठने लगे हैं।
भारत पर टैरिफ लगाने की असली वजह क्या थी?
यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करना चाहता था। इसी कड़ी में उसने भारत पर दबाव बनाया कि वह रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदना बंद करे।
भारत ने साफ शब्दों में कहा कि वह अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा। इसके बाद अमेरिका ने पहले 25% और फिर अतिरिक्त 25% टैरिफ भारत पर लगा दिया।
चीन को राहत, भारत पर सख्ती क्यों?
दिलचस्प बात यह है कि चीन पर पहले 145% टैरिफ लगाया गया था, लेकिन बातचीत के बाद उसे घटाकर 30% कर दिया गया।वहीं भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ में कोई ढील नहीं दी गई। इससे यह संदेश गया कि अमेरिका भारत पर दबाव की राजनीति कर रहा है, जो अब उलटी पड़ती दिख रही है।
अमेरिका में ही क्यों उठने लगी विरोध की आवाज?
अब खुद अमेरिका के तीन सांसद इस फैसले के खिलाफ सामने आए हैं।
कांग्रेस में मार्क वीसी, डेबोरा रॉस और राजा कृष्णमूर्ति ने भारत पर लगे अतिरिक्त 25% टैरिफ को हटाने के लिए प्रस्ताव पेश किया है।
उनका कहना है कि यह फैसला अमेरिकी जनता, कारोबार और सप्लाई चेन को नुकसान पहुंचा रहा है।
आम अमेरिकी नागरिकों पर क्या असर पड़ रहा है?
सांसदों के मुताबिक:
- टैरिफ से सामान महंगा हो रहा है
- उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है
- अमेरिकी कंपनियों का भारत से व्यापार प्रभावित हो रहा है
साथ ही, भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में हजारों नौकरियां पैदा की हैं। ऐसे में भारत से रिश्ते बिगाड़ना अमेरिका के हित में नहीं है।
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रूस के साथ भारत की नजदीकी बनी अमेरिका की चिंता
हाल ही में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा अमेरिका के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
पीएम मोदी का खुद एयरपोर्ट जाकर पुतिन का स्वागत करना और दोनों नेताओं की नजदीकी तस्वीरें अमेरिका में चर्चा का विषय बनीं।
इससे साफ हो गया कि भारत किसी के दबाव में अपनी विदेश नीति नहीं बदलेगा।





