नहीं पड़ेगी तालाब की जरुरत
Makhane Ki Kheti – मखाना, जिसे कमल के बीज के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन है। इसकी खेती सदियों से भारत में की जा रही है, लेकिन पारंपरिक रूप से इसकी खेती सिर्फ तालाबों में ही होती थी।
यह तकनीक बिहार कृषि विश्वविद्यालय, दरभंगा और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई है। इस तकनीक के तहत, मखाने की खेती खेतों में भी की जा सकेगी।
नई तकनीक के क्या हैं फायदे? | Makhane Ki Kheti
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तालाब की आवश्यकता नहीं: इस तकनीक का उपयोग करके, किसानों को मखाने की खेती के लिए तालाबों की आवश्यकता नहीं होगी। इससे पानी की बचत होगी और सूखे वाले क्षेत्रों में भी मखाने की खेती की जा सकेगी।
उत्पादन में वृद्धि: वैज्ञानिकों का दावा है कि इस तकनीक का उपयोग करके मखाने के उत्पादन में 30-40% तक की वृद्धि की जा सकती है।
कम लागत: खेतों में मखाने की खेती करने में तालाबों में मखाने की खेती करने की तुलना में कम लागत आती है।
रोगों का कम खतरा: खेतों में मखाने की खेती में तालाबों में मखाने की खेती की तुलना में बीमारियों का खतरा कम होता है।
कैसे करें खेतों में मखाने की खेती?
खेतों में मखाने की खेती करने के लिए, किसानों को निम्नलिखित चरणों का पालन करना होगा | Makhane Ki Kheti
भूमि की तैयारी: मखाने की खेती के लिए, मिट्टी का pH 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए और उसमें पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद डालना चाहिए।
बुवाई: मखाने की बुवाई मार्च-अप्रैल या सितंबर-अक्टूबर में की जा सकती है। बुवाई के लिए, मखाने के बीजों को 24 घंटे के लिए पानी में भिगोकर रखा जाता है और फिर उन्हें मिट्टी में 5-10 सेंटीमीटर की गहराई पर बोया जाता है।
सिंचाई: मखाने के पौधों को नियमित रूप से सिंचाई की आवश्यकता होती है। मिट्टी को हमेशा नम रखना चाहिए, लेकिन जलभराव नहीं होने देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण: खेतों में खरपतवारों को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे मखाने के पौधों की वृद्धि को बाधित कर सकते हैं।
रोग और कीट नियंत्रण: मखाने के पौधे कुछ रोगों और कीटों से प्रभावित हो सकते हैं। किसानों को इन रोगों और कीटों का समय पर नियंत्रण करना चाहिए।
कटाई: मखाने की फसल कटाई के लिए तैयार होने में 4-5 महीने लगते हैं। कटाई के बाद, मखाने के बीजों को धूप में सुखाया जाता है और फिर उन्हें भंडारण के लिए तैयार किया जाता है।
यह नई तकनीक मखाने की खेती को बढ़ावा देने और किसानों की आय में वृद्धि करने में मददगार साबित हो सकती है।
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