जानें इस प्रक्रिया की क्या है खासियत
Banana Farming – टिश्यू कल्चर के माध्यम से केले की खेती एक उन्नत तकनीक है जो पुराने केला किस्मों की खेती में आने वाली कई चुनौतियों का समाधान प्रदान करती है। इस विधि से उच्च गुणवत्ता वाले, एक समान और रोग-मुक्त पौधे तैयार किए जाते हैं, जिससे केले की उपज और गुणवत्ता दोनों में सुधार होता है और किसानों को अधिक लाभ प्राप्त होता है। पिछले कुछ वर्षों में, टिश्यू कल्चर विधि से केले की उन्नत प्रजातियों के पौधे तैयार किए जा रहे हैं, जो केले की खेती में कई लाभ प्रदान करते हैं। केले की खेती करने वाले किसान टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों की रोपाई कर बेहतर लाभ कमा सकते हैं।
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});टिश्यू कल्चर की खासियत | Banana Farming
टिश्यू कल्चर से तैयार केले के पौधे स्वस्थ होते हैं और इनमें रोग नहीं होते। इन पौधों से प्राप्त फलों का आकार, प्रकार और गुणवत्ता समान होती है। टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों में फलन लगभग 60 दिन पहले हो जाता है। पहली फसल 12-14 महीनों में मिलती है, जबकि पारंपरिक पौधों में 15-16 महीनों का समय लगता है। टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों की औसत उपज 30-35 किलोग्राम प्रति पौधा तक हो सकती है। वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर 60 से 70 किलोग्राम के घौद प्राप्त किए जा सकते हैं। पहली फसल के बाद दूसरी फसल (रैटून) 8-10 महीनों में आ जाती है, जिससे 24-25 महीनों में दो फसलें ली जा सकती हैं। इन टिश्यू कल्चर किस्मों की खेती से समय और धन दोनों की बचत होती है, जिससे लाभ में वृद्धि होती है।
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ध्यान रखने वाली बात
जब आप नर्सरी से टिश्यू कल्चर पौधे खरीद रहे हों, तो इस बात का ध्यान दें कि अच्छे टिश्यू कल्चर पौधे की ऊंचाई कम से कम 30 सेमी होनी चाहिए और तने की मोटाई 5.0-6.0 सेमी होनी चाहिए। नर्सरी के पौधे में 5-6 सक्रिय स्वस्थ पत्ते और 25-30 सक्रिय जड़ें होनी चाहिए, जिनकी लंबाई 15 सेमी से अधिक होनी चाहिए। पॉली बैग की लंबाई 20.0 सेमी, व्यास 16 सेमी, और उसका वजन 700-800 ग्राम होना चाहिए।
पारंपरिक पौधों की तुलना में अधिक सशक्त | Banana Farming
सभी पौधे आनुवंशिक रूप से मूल पौधे के समान होते हैं और रोगजनकों से मुक्त होते हैं। ये पौधे पारंपरिक पौधों की तुलना में अधिक सशक्त और तेजी से विकास करने वाले होते हैं। जल्दी फल लगते हैं और अधिक उपज क्षमता के गुण होते हैं। इन्हें हाई डेंसिटी तरीके से रोपण किया जा सकता है, जिससे रासायनिक इनपुट की जरूरत कम होती है। ये पौधे सूखे और तापमान में उतार-चढ़ाव जैसे तनावों के प्रति अधिक सहनशील होते हैं। इनके नवीन और बेहतर किस्मों की तेजी से विकास की सुविधा होती है।
खेत की तैयारी
खेत की तैयारी के समय 50 सेंटीमीटर गहरा, 50 सेंटीमीटर लंबा और 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है। बरसात के मौसम शुरू होने से पहले, अर्थात जून महीने में, इन गड्ढों में 8 किलो कंपोस्ट खाद, 150-200 ग्राम नीम की खली, 250-300 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट आदि मिलाकर मिट्टी भरी जाती है। अगस्त महीने में इन गड्ढों में केले के पौधे लगाए जाते हैं। सामान्यत: रोपाई 1.6 बाई 1.6 मीटर की दूरी पर की जाती है, अर्थात लाइन से लाइन की दूरी 1.6 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 1.6 मीटर होती है। इस प्रकार, प्रति एकड़ में लगभग 1560 पौधे लगे जाते हैं।
रोपाई विधि | Banana Farming
सघन रोपाई (हाई डेंसिटी) विधि में 1.2 बाई 1.2 मीटर की दूरी पर पौधों को लगाया जाता है, जिसमें प्रति एकड़ में लगभग 2000 पौधे होते हैं। अधिक पौधे लगाने से स्वाभाविक रूप से प्रति एकड़ उपज में वृद्धि होती है। केले की खेती में भूमि की ऊर्वरता के अनुसार, प्रति पौधे को 300 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस, और 300 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। पूरी मात्रा में पोटाश को पौधरोपण के समय और फॉस्फोरस की आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए। नाइट्रोजन की पूरी मात्रा को पांच भागों में बांटकर अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, और फरवरी-अप्रैल में देनी चाहिए।
कम लागत में अधिक मुनाफा
केले की खेती में आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके किसान लागत कम कर सकते हैं और अधिक उत्पादन कर सकते हैं। टिश्यू कल्चर के माध्यम से केले की खेती एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण है जो पारंपरिक विधियों की चुनौतियों का समाधान करता है। उच्च गुणवत्ता वाले पौधे न केवल उत्पादकता बढ़ाते हैं बल्कि टिकाऊ और लाभदायक खेती में भी योगदान करते हैं।