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23 साल की लड़की ने बताया उत्तर कोरिया का सच, स्कूल बने हैं यातना गृह

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उत्तर कोरिया की बंद दुनिया से एक बार फिर ऐसा सच सामने आया है, जिसने वहां के स्कूलों हकीकत का पर्दाफाश कर दिया है. देश से भागी 23 साल की बेला सियो ने उत्तर कोरिया के स्कूलों की भयावह तस्वीर पेश की है. इस जगह बच्चों को न सिर्फ शारीरिक श्रम करने के लिए मजबूर किया जाता है, बल्कि किम जोंग-उन की पूजा भी अनिवार्य होती है. यहां शिक्षा की आड़ में बच्चों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है.

बेला ने बताया कि उत्तर कोरियाई स्कूलों में पढ़ाई का मतलब होता है, किम परिवार का गुणगान. एक दिन में सात पीरियड्स होते हैं, जिनमें दो से तीन पीरियड सिर्फ किम जोंग-उन और उनके पूर्वजों की ‘क्रांतिकारी जीवनी’ पढ़ने के लिए तय होते हैं. बच्चों का मूल्यांकन भी इन्हीं विषयों पर आधारित होता है, चाहे वे गणित, विज्ञान या किसी और विषय में अच्छे क्यों न हों. हर दिन की शुरुआत किम परिवार की तस्वीरें साफ करने और वफादारी के गीत गाने से होती है.

बच्चों से करवाई जाती है मजदूरी
स्कूल की पढ़ाई खत्म होते ही बच्चों के लिए असली संघर्ष शुरू होता है. बेला के मुताबिक, बच्चों को स्कूल के मैदान को समतल करने जैसे कठिन कार्य दिए जाते हैं, जिसमें तीन से चार घंटे का शारीरिक मजदूरी करनी पड़ती है. उन्हें 25 किलो वजन वाले रेत और पत्थरों से भरे बोरे ढोने होते हैं. कड़क सर्दियों में, जब बर्फ गिरती है, तब भी छात्रों को स्कूल शुरू होने से पहले बर्फ साफ करनी पड़ती है. बेला ने बताया कि उनके गृहनगर ह्येसान में साल भर में औसतन 63 दिन बर्फबारी होती थी.

नॉर्थ कोरिया को स्कूलों की काली सच्चाई
उत्तर कोरिया भले ही खुद को मुफ्त शिक्षा देने वाला देश बताता हो, लेकिन हकीकत इससे उलट है. बेला के अनुसार, छात्रों को ‘युवा परियोजनाओं’, स्कूल आयोजनों, यहां तक कि शिक्षकों के जन्मदिन और पारिवारिक समारोहों के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं. इससे कई माता-पिता खाने तक के पैसे बचाकर बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाते हैं. बेला का कहना है कि शिक्षा के नाम पर किम जोंग की भक्ति और मजदूरी ही बच्चों का भविष्य तय करता है.

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