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वक्फ संशोधन बिल पर लोकसभा में वोटिंग, पक्ष में 288 और विपक्ष में 232 वोट

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मोदी सरकार वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 को लोकसभा में पास कराने में सफल रही है. निचले सदन में बिल पर बुधवार को वोटिंग हुई. पक्ष में 288 और विपक्ष में 232 मत पड़े. बीजेपी भले ही बिल को पारित कराने में कामयाब रही, लेकिन इसमें विपक्ष की ताकत भी दिख गई. बात चाहे राज्यों के चुनाव हों या संसद में अडानी का मुद्दा…विपक्ष इनपर बिखरा हुआ था. लेकिन मुसमलानों के वक्फ वाले मुद्दे पर पूरा विपक्ष कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा. इस मुद्दे ने वो कर दिखाया है जो राहुल गांधी, अखिलेश यादव और शरद पवार हाल में हुए राज्यों में चुनाव में नहीं कर पाए थे.

शुरू से ही विपक्ष की आक्रामक बैटिंग
वक्फ संशोधन विधेयक पिछले साल आठ अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था. विपक्ष की आपत्तियों के बाद में इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया था. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बैठक में संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) द्वारा प्रस्तावित 14 संशोधनों को अपनी मंजूरी दी थी. बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली जेपीसी की रिपोर्ट विपक्षी दलों के हंगामे और वाकआउट के बीच 13 फरवरी को संसद में पेश की गई थी.

ये सब कुछ होने के बाद 2 अप्रैल को बिल को लोकसभा में पेश किया गया. जनता दल (यू) और टीडीपी के रुख के बाद ये तो साफ हो गया था कि बिल को पास कराने में बीजेपी को कोई दिक्कत नहीं आनी वाली है और हुआ भी यही. विधेयक का पारित होना बीजेपी के लिए जीत तो है ही, वहीं उसके विरोध में 232 वोट पड़ना विपक्ष का हौसला बढ़ाने वाला है, क्योंकि हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली जैसे राज्यों में हुए चुनाव में मिली हार के बाद उसका आत्मविश्वास गिरा हुआ था.

इंडिया गठबंधन की पार्टियां बिखरी हुई थीं. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस जैसे प्रमुख दल अलग-अलग रास्ते पर चल रहे थे. यहां तक कि जम्मू-कश्मीर और दिल्ली में विधानसभा चुनाव तक वे साथ में नहीं लड़े. लेकिन अब माना जा रहा है कि तस्वीर बदलेगी और 232 का आंकड़ा उसके लिए बूस्टर डोज का काम करेगा.

सबने कही एक ही बात
विपक्ष पूरे होमवर्क के साथ बुधवार को लोकसभा में उतरा. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, DMK समेत कई विपक्षी दलों ने विधेयक को असंवैधानिक और मुसलमानों की जमीन हड़पने वाला बताते हुए इसका कड़ा विरोध किया.

कांग्रेस के के. सी. वेणुगोपाल ने लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि सरकार का एकमात्र एजेंडा भारत माता को बांटना है. राष्ट्रीय जनता दल के सांसद सुधाकर सिंह ने विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि यह संशोधन विधेयक केवल एक मसौदा नहीं, बल्कि मानव अधिकारों का उल्लंघन करने का जरिया साबित होगा. उन्होंने कहा कि आज सरकार की नजर मुसलमानों की वक्फ संपत्तियों पर है, आगे अन्य धर्म के लोगों की संपत्तियों पर होगी. उन्होंने कहा कि कल बौद्ध निशाने पर होंगे और आने वाले समय में हिन्दुओं के मंदिरों को भी सरकार के इस दंश को झेलना पड़ेगा.

चर्चा में हिस्सा लेते हुए समाजवादी पार्टी के मोहिबुल्लाह ने कहा कि यह विधेयक न केवल मुसलमानों के बुनियादी अधिकारों के खिलाफ बल्कि समानता के अधिकार के खिलाफ भी है और इसे मुसलमानों की जमात कभी मंजूर नहीं करेगी. उन्होंने कहा कि मुसलमान इस मसौदा कानून को नहीं मानेंगे.

वाईएसआर कांग्रेस के पीवी मिथुन रेड्डी ने विधेयक का विरोध किया. उन्होंने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 26 में प्रदत्त अधिकारों के खिलाफ है. माकपा के के. राधाकृष्ण ने भी विधेयक का विरोध किया. आप के गुरमीत सिंह मीत हेयर ने कहा कि 11 साल से मुसलमानों के प्रति सरकार का क्या रवैया है, यह दिख रहा है. हेमंत सोरेन की पार्टी JMM के विजय कुमार हंसदाक ने भी विधेयक का विरोध किया.

ओवैसी का भी मिला साथ
कई अहम मुद्दों पर इंडिया गठबंधन से अलग राय रखने वाले ओवैसी तो शुरू से ही बिल के खिलाफ थे. उन्होंने बुधवार को लोकसभा में विधेयक का विरोध करते हुए इसके मसौदे की प्रति फाड़ दी. सदन में विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए ओवैसी ने कहा कि यह भारत के ईमान पर हमला है और मुसलमानों को अपमानित करने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा, इस विधेयक को लाकर प्रधानमंत्री मोदी ने देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह के खिलाफ जंग छेड़ दी है.

इन मुद्दों पर बिखरा हुआ था विपक्ष
विपक्ष के बिखराव का जो सबसे ताजा मुद्दा है वो परिसीमन है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन इस मुद्दे पर सरकार पर हमलावर हैं. उन्होंने हाल ही में चेन्नई में विपक्षी दलों की एक बड़ी बैठक बुलाई थी. ओडिशा और पंजाब के अलावा दक्षिणी राज्यों के कांग्रेस नेताओं ने इस बैठक में हिस्सा लिया. हालांकि हिंदी बेल्ट और महाराष्ट्र के दलों ने किनारा कस लिया. वहीं टीएमसी भी इस बैठक में शामिल नहीं हुई.

डीएमके ने इस बैठक में उत्तर की विपक्षी पार्टियों को आमंत्रित ही नहीं किया था. इसमें सपा और आरजेडी के अलावा भी कई दल शामिल थे. इसके अलावा महाराष्ट्र से शिवसेना और एनसीपी को भी शामिल नहीं किया गया. टीएमसी को मीटिंग में बुलाया गया था लेकिन टीएमसी ने बैठक में हिस्सा नहीं लिया.

इसके अलावा अडानी के मुद्दे पर भी विपक्ष एकसाथ नहीं रहा. लोकसभा के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ मुकर रही, लेकिन उसे सपा और टीएमसी का साथ नहीं मिला.

इसके अलावा इंडिया गठबंधन के नेतृत्व पर भी विपक्ष बिखरा हुआ है. टीएमसी चाहती है कि ममता बनर्जी गठबंधन को लीड करें, वहीं कांग्रेस की सोच अलग है. कुछ समय पहले ही यूपी में उपचुनाव को लेकर कांग्रेस और सपा के बीच असहज स्थिति बनी थी. महाराष्ट्र चुनाव के दौरान भी सहयोगी दलों में तालमेल की कमी होने की बात सामने आई थी. बंगाल में पहले ही कांग्रेस और TMC एक-दूसरे के विरुद्ध हैं. इसी तरह, दिल्ली में AAP और कांग्रेस में गठजोड़ नहीं है.

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