जानें सरसों की खेती में ध्यान देने वाली जरूरी बातें
इस बार रबी की कमाई का सीजन चल रहा है। किसान अपने खतों में रब्बी निराश की बुबाई के काम में लगे हैं। कई किसान गेहूं सरसों के बुवाई कर रहे हैं। वहीं कई किसान इसकी बुवाई कर चुके हैं। ऐसे में किसानों को सरसों की खेती में ध्यान रखने वाली बातें भी जरूरी हैं ताकि फसल को नुकसान से बचा जा सके और बेहतर उत्पादन मिल सके। आज हम किसानों को सरसों की बुवाई से लेकर चराई तक के दौरान ध्यान रखने वाली खास चीजों की जानकारी दे रहे हैं।
सरसो की खेती में इन बातो का रखे ध्यान उपज हो सकती है इससे दो गुनी।
सरसों की खेती के लिए कैसे करें भूमि का चुनाव (सरसों की खेती)
सरसों की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट या बलुई भूमि सबसे अच्छी मानी जाती है। यदि पानी के अनुमान की जड़ व्यवस्था न हो तो प्रत्येक वर्ष सरसों की फसल का निर्धारण से पहले ढेचा को हरी खाद के रूप में उगाना चाहिए। ढैंचा फसल को हरी खाद के रूप में निर्धारित करने से सूक्ष्म के स्वास्थ्य में जैविक, रसायन और भौतिक सुधार होते हैं, जलधारण क्षमता बढ़ती जा रही है। ढैंचा की पलटाई कर खेत में जमाने से हरा, पोटाश, गंधक, कैलिशियम, मैग्नीशियम, जस्ता, ताबा, लोहा आदि सभी प्रकार के पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। अच्छी तरह के लिए जमीन का पी.एच.मान. 7.0 होना चाहिए। अत्यधिक संबद्ध एवं यौगिक इसकी खेती संभव नहीं होती है। हालांकि पात्रता भूमि में संभव नहीं इसकी खेती की जा सकती है। जहाँ ज़मानत दावा है वहाँ प्रति वर्ष जिप्सम/पायराइट 5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। जिप्सम की आवश्यकता सूक्ष्म पी.एच. मान के अनुसार विशेषण हो सकता है। जिप्सम/पायराइट को मई-जून में ज़मीन में मिला देना चाहिए।
सरसों की खेती के लिए उन्नत संभावनाओं के बीजों का चयन करें
सरसो की खेती के लिए उन्नत प्रजातियों के बीजों का चयन करना चाहिए। हमेशा प्रमाणिक बीज ही हड्डी चाहिए। सरसों के बहुत सी समझ में आता है कि जो अधिक उत्पादक हैं और उनमें तेल की मात्रा भी अधिक होती है। आप इसमें से अपने राज्य के लिए अनुपयुक्त दुर्घटना का चुनाव कर सकते हैं।
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बेहतर अनुमान और फसल को बीज जनित बीमारियों से बचाने के लिए बीजोपचार करना अति आवश्यक है। सरसों की कटौती को श्वेत किट्ट एवं मृदुरोमिल आसिता से बचाव हेतु मेटालेक्जिल (एप्रन एस डी-35) 6 ग्राम औषधि से उपचार करना चाहिए। उसी समय तना सड़न या तना गलन रोग से बचाव कारण कार्बेंडाजिम 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार करना चाहिए। बीजों का उपचार करने के बाद छाया में उसे सूखा लेना चाहिए। इसके बाद ही खेत में बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
सरसों की फसल में कितनी मात्रा में खाद व खाद का उपयोग करें
सरसों का बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए रसायन विज्ञान के साथ केचुंआ की खाद, गोबर या कम्पोस्ट खाद का भी उपयोग किया जाना चाहिए। सिंचित क्षेत्रों के लिए अच्छी साडी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर या केचुंआ की जमा 25 क्विंटल/प्रति हेक्टर बुवाई के पूर्व खेत में जुताई के समय खेत में अच्छी तरह मिली हुई प्रविष्टि दी जानी चाहिए। बरानी क्षेत्रों में देशी खाद (गोबर या कम्पोस्ट) 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से बारिश के पहले खेत में डालने की जरूरत है और बारिश के मौसम मे खेत की तैयारी के समय खेत में मिलाना चाहिए। राई-सरसों से संभावनाओं का अनुमान लगाने के लिए रासायनिक दृश्यों का संतुलित मात्रा में उपयोग करने से अनुमान पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। मानकों का प्रयोग सूक्ष्म परीक्षण के आधार पर करना अधिक अच्छा रहता है। राई-सरसों को नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश जैसे प्राथमिक तत्वों के अलावा गंधव तत्वों की आवश्यकता अन्य संबद्धता की तुलना में अधिक होती है।
असिंचित और सिंचित क्षेत्रों में कितनी मात्रा में रिकॉर्ड करें का प्रयोग
असिंचित ओर सिंचित क्षेत्रों के लिए उवर्रक देने की मात्रा अलग-अलग निर्धारित की गई है। जो इस प्रकार से हैं-
असिंचित संकेत में सरसों की कमाई के लिए 40 किलो नत्रजन, 20 किलो स्फुर, 10 किलो पोटश और 15 किलोग्राम गंधक का प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए।
वहीं सिंचित क्षेत्रों में 100 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम स्फुर, 25 किलोग्राम पोटाश और 40 किलोग्राम सघन प्रति हेक्टेयर के दर से उपयोग किया जाना चाहिए।
गंधक की कमी से सरसों की मात्रा कम होती है और तेल की मात्रा
बता दें कि जिन क्षेत्रों की मिट्टी में गंधक तत्व की कमी होती है, वहां इसके कारण परिणामी उत्पादन में कमी हो जाती है और तेल की मात्रा में भी कमी आती है। इसके लिए 30-40 किलोग्राम गंधक तत्व प्रति हेक्टेयर दर से जरूर देना चाहिए। इसका निरीक्षण अमोनियम पूर्ववर्ती, सुपर फास्फेट, अमोनियम फास्फेट सर्वोच्च आदि प्रमाणपत्रों के उपयोग से किया जा सकता है। इन मानकों के उपलब्ध न होने पर जिप्सम या पायराइट्स के रूप में गंधक दिया जा सकता है।
सरसों की सफलता में कब करें सिंचाई
सही समय पर सिंचाई करने से सरसों के उत्पादन में 25-50 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। इस परिणाम में 1-2 सिंचाई करने से लाभ होता है। सरसों की बुवाई बिना पलेवा दिए गए तो 30-35 दिनों में पहली सिंचाई बुआई के लिए करनी चाहिए। इसके बाद अगर मौसम शुष्क रहे अर्थात पानी नहीं बरसे तो बुवाई के 60-70 दिनों के राज्य पर जिस समय फली का विकास या फली में दाना भर रहा हो सिंचाई को अनिवार्य करना चाहिए।
सरसों की सफलता का कैसे करें प्रभाव व अनुरूपता से
सरसों की सफलता में चितकबरा (पेंटेड बग) कीट का प्रकोप अधिक होता है। यह चितकबरा कीट प्रांरभिक अवस्था की परिणाम के छोटे-दादों को अधिक नुकसान पहुँचाते है। ये कीट अटकने से दोनों अवस्थाओं में अटकने से रस चूसते हैं जिससे समझौता मर जाता है। यह सरसों के बुवाई के समय और उसके कपड़ों के समय में अधिक नुकसान पहुंचाती है। यह