कमलनाथ के बैतूल को गोद लेने के बाद भी हार रही कांग्रेस
Political News – बैतूल – 1980 में पहली बार छिंदवाड़ा से सांसद बनने के बाद कमलनाथ एक अपवाद छोडक़र निरंतर इस सीट से कांग्रेस की टिकट पर निर्वाचित हो रहे हैं। उस समय के कांग्रेस के सबसे पॉवरफुल नेता संजय गांधी के सहयोगी रहने के कारण पहली बार सांसद बनते ही 1980 में ही मध्यप्रदेश की राजनीति में कमलनाथ की चमक और धमक प्रदेश के सभी नेताओं पर पड़ चुकी थी। और मध्यप्रदेश के अनेक जिलों में लोकसभा और विधानसभा की टिकटों में उनका हस्तक्षेप शुरू हो गया था। और धीरे-धीरे यह दखल बढ़ता गया और मिलेनियम वर्ष आते-आते वो प्रदेश के बड़े नेताओं में गिने जाने लगे और 2018 में मुख्यमंत्री बने।
मध्यप्रदेश के दिग्गजों में शामिल हो गए कमलनाथ | Political News
1980 के दौर में प्रदेश में अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, माधवराव सिंधिया, दिग्विजय सिंह, सुभाष यादव, जमुना देवी, शिवभानु सिंह सोलंकी, सुरेश पचौरी और 2000 के बाद अजय सिंह राहुल, अरूण यादव, और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बड़े नेताओं के रूप में सक्रिय रहे। लेकिन प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में कमलनाथ ने अपने समर्थकों की संख्या बढ़ाई और धीरे-धीरे कई लोकसभा और विधानसभा सीटों पर कांग्रेस की उम्मीदवारी के लिए उनकी बात मजबूत होती गई।
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बैतूल जिले को लिया था गोद
कमलनाथ के 1980 में सांसद बनने के बाद से ही उनके जिले छिंदवाड़ा की सीमा से लगे बैतूल जिले में कांग्रेस की राजनीति में उनका दखल बड़ा और जिले की लोकसभा और विधानसभा की सीटों पर उनकी राय से कांग्रेस हाईकमान उम्मीदवार फायनल करती रही। और इसका नतीजा यह रहा कि जिले के कांग्रेसियों ने कांग्रेस जिंदाबाद के बजाए जय-जय कमलनाथ के नारे लगाना प्रारंभ कर दिए जो कि कमलनाथ को खूब पसंद आते थे। और इसी जय-जय कमलनाथ के कारण जिले में कांग्रेस के कई ऐसे नेता मजबूत होते गए जिनकी जमीन कमजोर थी। इसका खामियाजा कांग्रेस को विभिन्न चुनाव में हार के रूप में देखना पड़ा।
28 वर्षों से बैतूल सीट भाजपा के पास | Political News
1952 से बैतूल संसदीय सीट का गठन हुआ है और पहले 5 चुनाव में 1971 तक कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे। फिर 1980, 1984 और 1991 में कांग्रेस उम्मीदवार जीते लेकिन 1996 से 2023 तक हुए 8 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुइ और बताया जाता है कि इन सभी 8 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार कमलनाथ के रहमो-करम पर ही बनाए गए थे। इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राजनैतिक समीक्षक यह मान रहे हैं कि कांग्रेस किसी को भी उम्मीदवार बना दे सफलता कोसों दूर दिखाई दे रही है।
44 साल में कांग्रेस के जीते 20 विधायक
1980 में कमलनाथ के छिंदवाड़ा से सांसद बनने के बाद मध्यप्रदेश में 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं।इन 10 चुनावों में 56 उम्मीद्वार चुनाव जीते जिनमें मात्र 20 उम्मीदवार ही कांग्रेस की टिकट पर विधायक निर्वाचित हो पाए। और इन सभी 10 विधानसभा चुनाव में राजनैतिक समीक्षकों की माने तो 56 कांग्रेस के उम्मीदवारों में कमलनाथ की पसंद के 50 लोगों को टिकट मिली थी जिनमें से 20 को ही सफलता प्राप्त हुई। इन 20 कांग्रेस विधायकों में रामजी महाजन, गुरुबक्श अतुलकर, अशोक साबले, मीरा धुर्वे, सतीष चौहान, अशोक कड़वे, प्रताप सिंह, गंजन सिंह कुमरे, विनोद डागा, सुखदेव पांसे, सुनीता बेले, धरमूसिंह सिरसाम, निलय डागा, ब्रम्हा भलावी शामिल हैं। जिनमें रामजी महाजन, गुरु बक्श अतुलकर, प्रताप सिंह, सुखदेव पांसे, अशोक साबले, धरमूसिंह एक से अधिक बार चुनाव जीते हैं। इनमें से रामजी महाजन एकमात्र ऐसा नाम माना जा सकता है जो मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह की पसंद थे। और उस दौर में कमलनाथ भी अर्जुन सिंह के साथ थे।
छिंदवाड़ा के नेता को लड़वाया था बैतूल जिले से | Political News
1980 के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ने बैतूल जिले के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता से अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिए बैतूल जिले की मुलताई विधानसभा सीट से छिंदवाड़ा जिले की परासिया नगर पालिका के अध्यक्ष सुंदरलाल जायसवाल को कांग्रेस उम्मीदवार बनवा दिया था जो चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे थे। इस चुनाव में निर्दलीय मनीराम बारंगे चुनाव जीते थे और दूसरे स्थान पर भाजपा के शिवचरण अग्रवाल रहे थे। राजनैतिक समीक्षकों का मानना है कि इस तरह से बैतूल जिले की कांग्रेस को कमजोर करने में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कमलनाथ का विशेष योगदान माना जाता है।
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