लहसुन की खेती: यह एक नगदी फसल है। इसमें विटामिन सी, फॉस्फोरस तथा कुछ अन्य प्रमुख पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं। इसका उपयोग अचार, चटनी व मसाले के रूप में किया जाता है। इसमें औषधिगुण भी पाया जाता है। लहसुन एक कन्दवाली मसाला फसल है। इसमें एलसिन नामक तत्व पाया जाता है जिसके कारण इसकी एक खास गंध एवं तीखा स्वादहोता है। लहसुन की एक गाठ में कई कलियों पाई जाती है जिन्हें अलग करके एवं छीलकर कच्चा एवं पकाकर स्वाद एवंऔषधीय तथा मसाला प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। इसका इस्तेमाल गले तथा पेट सम्बन्धी बीमारियों मेंहोता है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखेस्वाद और गंध के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे ऐलसन ए• ऐजोइन इत्यादि। इस कहावत के रूप में बहुत आम है एक सेब एक दिन डॉक्टर को दूर करता है इसी तरह एक लहसुनकी कली एक दिन डॉक्टर को दूर करता है यह एक नकदी फसल है तथा इसमें कुछ अन्य प्रमुख पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं।। इसका उपयोग आचार, चटनी, मसाले तथा सब्जियों में किया जाता है। लहसुन का उपयोग इसकी सुगन्ध तथा स्वाद केकारण लगभग हर प्रकार की सब्जियों एवं माँस के विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। इसका उपयोग हाई ब्लड प्रेशर, पेटके विकारों, पाचन विकृतियों, फेफड़े के लिये, कैंसर व गठिया की बीमारी, नपुंसकता तथा खून की बीमारी के लिए होता हैइसमें एण्टीबैक्टीरिया तथा एण्टी कैंसर गुणों के कारण बीमारियों में प्रयोग में लाया जाता है।
लहसुन की खेती करने से होगा दुगुना मुनाफा Cultivation of garlic will double profit
![](https://khabarwani.com/wp-content/uploads/2022/10/maxresdefault-81-1024x576.jpg)
लहसुन की खेती करने से होगा दुगुना मुनाफा,जाने लहसुन की खेती कैसे करे और कैसे कमाए दुगुना मुनाफा
लहसुन की खेती के लिए मौसम और जलवायु Weather and Climate for Garlic Cultivation
लहसुन की खेती कई प्रकार की जलवायु में की जा सकती है। तथापि बहुत गर्म या ठंडे मौसम में इसकी खेती नहीं की जा सकती है। बल्बों के गठन के लिए लघु दिन बहुत ही अनुकूल होते है। इसे 1000-1300 मीटर समुद्र तल की ऊंचाई पर अच्छी तरह से उगाया जा सकता है।
लहसुन की खेती के लिए भूमि तथा जलवायु Land and climate for cultivation of garlic
लहसुन की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है लेकिन उपजाऊ दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो उपयुक्त रहती है। अत्यधिक गर्म या ठण्डा मौसम इसकी खेती के लिये अनुकूल नहीं होता है। वैसे इसकी खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में की जा सकती है। लहसुन की खेती मध्यम काली से चिकनी बलुई मिट्टी, जिसमें पोटाष की काफी अच्छी मात्रा हो अच्छी मानी गई है। लहसुन जमीन के नीचे तैयार होने वाली फसल हैं, जिसकी जडें जमीन से अधिकतम 20-25 सें.मी. तक जाती है।कन्दीय फसल होने के कारण भुरभुरी तथा जल निकास वाली भूमि उत्ताम मानी जाती है। बलुई दोमट भूमि सर्वोत्ताम होती है। अन्य भूमि में भी उगाई जा सकती हैं। लहसुन की खेती के लिए भारी मृदा उपयुक्त नहीं होती है, क्योंकि इसमें जल निकास उपयुक्त नहीं होने के कारण कन्दों का समुचित विकास नहीं हो पाते तथा कंद छोटे रह जाते है, इस कारण भारी मृदा में लहसुन नहीं लगाना चाहिए।भूमि का पीएच मान 5.8-6.5 के मध्य होना चाहिए।
जाने लहसुन की खेती कैसे करे और कैसे कमाए दुगुना मुनाफा Know how to cultivate garlic and how to earn double profit
![](https://khabarwani.com/wp-content/uploads/2022/10/garlicrow5405L.jpg)
लहसुन की खेती के लिए खेत की तैयारी Field preparation for garlic cultivation
खेत की अच्छी तरह से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिये तथा खरपतवार निकाल समतल कर लेवें। इसके लिये दो गहरी जुताई तथा इसके बाद हैरो चलाना चाहिये। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से 15-20 से.मी. गहरी जुताई करनी चाहिए। इसके पष्चात् दो-तीन बार कल्टीव्हेटर चलाना चाहिए, जिससे ढेले टूट जाए और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। दूब या मौथा आदि खरपतवारों को जड़ सहित निकाल कर जला देना चाहिए।खेत में 20-25 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद डाल कर उसे हैरो से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। अच्छी तरह तैयार खेत में भूमि के प्रकार, मौसम, वर्षा की मात्रा आदि को ध्यान में रखते हुए समतल क्यारियाँ बनाकर प्याज की रोपाई किया जाता है।ज्यादातर, समतल क्यारियाँ 1.5-2.0 मी. चौड़े और 4-6 मी. लम्बे बनते है। लेकिन समतल क्यारियाँ खरीफ या बारसात के मौसम के लिए उपयुक्त नहीं होते है। इस मौसम के लिए ऊंचे मेड़ बनाने चाहिए ताकी पानी की निकासी हो सके।
लहसुन बोने के लिए बीज दर और बुवाई का समय Seed rate and sowing time for planting garlic
लहसुन के लिए 400-500 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होती है। लहसुन की खेती रबी और गर्मी के दिनों में की जाती हैं। अगस्त-नवम्बर तक इसे लगाया जा सकता है।
जाने लहसुन की खेती कैसे करे और कैसे कमाए दुगुना मुनाफा Know how to cultivate garlic and how to earn double profit
![](https://khabarwani.com/wp-content/uploads/2022/10/1258048-garlic-benifits.webp)
लहसुन की उन्नत किस्म Advanced Variety of Garlic
गोदावारी :- यह किस्म जामनगर संग्रहण से चयन द्वारा विकसित है बल्ब आकार में मध्यम और गुलाबी रंग का होता है। प्रति बल्ब 25-30 कलियॉ होती है। यह किस्म माहू के लिए सहनषील हैं। अवधि 130-140 दिन है। औसत उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।
श्वेता :- बल्ब का आकार मध्यम व सफेद रंग होता हैं। प्रति बल्ब 20-25 कलियॉ होती है। अवधि 120-130 दिन हैं। औसत उपज 130 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
भीमा ओमेरी :- रबी मौसम के लिए उपयुक्त सफेद कंद 120-135 दिन में परिपक्कता, औसत उपज 10-12 टन/हे., उपज क्षमता 14 टन/हे., 6-8 माह तक भण्डारण योग्य।यमुना सफेद, लावा, मलेवा व अन्य स्थानीय आर जी एल-1 किस्म स्थानीय किस्मों से अधिक उपज देती है।सके अलाव फवारी, राजली गादी जी-451, सलेक्षन-2, सलेक्षन-10 किस्मे भी बहुत पापुलर है।
लहसुन की बुवाई sowing garlic
कलियॉ का चयन लहसुन के रोपण लिए महत्वपूर्ण हैं। बीज लहसुन बल्ब से अलग-अलग कलियॉ बोने से पहले अलग कर लें, लेकिन लंबे समय से पहले नहीं। बड़ी कलियॉ रोपण के लिए चयनित किया जाना चाहिए। छोटे, रोगग्रस्त और क्षतिग्रस्त कलियॉ का चयन नहीं करना चाहिए।
कलियॉ को कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिषत की घोल से उपचारित करना चाहिए जिससे कवकजनित रोगों के प्रभाव को कम किया जा सके। लहसुन के लिए बीज दर 400-500 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती हैं। चयनित कलियॉ 10 से.मी. दुरी पर कलियॉ लगाई जानी चाहिए।
लहसुन में खरपतवार नियंत्रण weed control in garlic
लहसुन कलियों का अंकुरण 7-8 दिनों में होता है। लेकिन खरपतवार 3-4 दिन बाद लहसुन के रोपण के उपरान्त उग जाते है। जिसका उचित प्रबंधन अति आवष्यक है। लहसुन में खरपतवार की रासायनिक प्रबंधन के लिए पेन्डिामेथेलिन 30 ई.सी. /3.5-4 मि.ली. प्र्रति लिटर पानी या ऑक्सीफलोरोफेन 25 अनुपात ई.सी. /1.52 मि.ली. प्रति लिटर पानी के साथ बुवाई से पहले या बुवाई के बाद स्प्रे किया जा सकता है।
जाने लहसुन की खेती कैसे करे और कैसे कमाए दुगुना मुनाफा Know how to cultivate garlic and how to earn double profit
लहसुन में निदाई – गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण Weeding in Garlic – Weeding and Weed Control
पहली निदाई गुडाई हाथ या खुरपी से बुवाई के एक महीने बाद किया जाना चाहिए। दूसरी निदाई-गुडाई बुवाई के दो महीने के बाद किया जाता है। बल्ब के उचित विकास के लिए निदाई-गुडाई अति आवष्यक है।
लहसुन की खेती में खाद एवं उर्वरक Fertilizers and fertilizers in garlic cultivation
गोबर की खाद या कम्पोस्ट 200-300 क्विंटल प्रति हेक्टर तथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाष क्रमष: 100,50,50 किलों प्रति हेक्टर आवष्यक है। गोबर की खाद या कम्पोस्ट, फास्फोरस तथा पोटाष की पूरी मात्रा एवं नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा भूमि के तैयारी के समय तथा नाइट्रोजन की बाकी मात्रा को दो भाग में बांटकर रोपाई के 25-30 दिन एवं 40-45 दिन में गुडाई करते समय देना चाहियें।
जाने लहसुन की खेती कैसे करे और कैसे कमाए दुगुना मुनाफा Know how to cultivate garlic and how to earn double profit
![](https://khabarwani.com/wp-content/uploads/2022/10/Garlic_1.jpg)
लहसुन में सिंचाई irrigation in garlic
पहली सिंचाई बुवाई के बाद दिया जाता है। लहसुन की फसल को शुरूआत में हल्का परन्तु कम अंतर पर पानी की आवष्यकता होती है सुखे खेत में रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई की जानी चाहिए। नयी जडें विकसत होने तक खेत में पर्याप्त नमी होना आवष्यक हैं।लहसून मे सिंचाईइसलिए रोपाई के बाद की गई सिंचाई के दो-तीन दिन बाद दूसरी सिंचाई की आवष्यकता होती है। एक बार पौधों को स्थापित हो जाने के बाद आरंभिक समय में पानी की आवष्यकता कम हो जाती हैं। परन्तु जैसे-जैसे पौधो की वृध्दि होती है। उनकी पानी की आवष्यकता बढने लगती है। पौधों में गांठ बनना आरंभ होने से कन्दों के पूर्ण विकास तक (रोपाई के 60-110 दिन तक) नियमित रूप से सिंचाई की आवष्यकता होती है। रोपाई के तुरन्त अंतराल पर एक सिंचाई की जाती हैं इसके बाद मौसम के अनुसार रबी मौसम (नवम्बर-जनवरी) में 10-12 दिन के बाद सिंचाई की जाती है फरवरी-अपै्रल माह में 7-8 दिनों के अन्तराल पर सिचांई की जानी चाहिए।
लहसुन फसल पर लगने वाली बिमारियॉ Diseases of Garlic Crop
1 लहसुन का आर्द्र गलन रोग:-
यह रोग स्केलेरोषियम राल्फसी नामक कवक से होता हैं जो कि पौधषाला में बीज अंकुरण के बाद पौधों की बढ़वार के समय प्रभावित करता हैं जिससे पौधो पीले पड़ने लगते हैं पौधों का जमीन से लगने वाला भाग सड़ने लगता हैं और फिर पौधें सूखने लगते है।
जाने लहसुन की खेती कैसे करे और कैसे कमाए दुगुना मुनाफा Know how to cultivate garlic and how to earn double profit
मुरझाये हुए पौधों के जमीन वाला भाग कवक के सफेद तन्तु विकसित होते हैं जिन पर सफेद रंग छोटी दानेदार रचना होती हैं। पौधषाला में यदि जल निकास अच्छा न हो, तो इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।
लहसून में आर्द्र गलन रोग की रोकथाम :-
बुवाई से पूर्व बीज का केप्टान (2–3 ग्राम प्रति किग्रा बीज) से उपचारित करना चाहिए।
ट्राईकोडर्मा विरिडीस प्रति किलो 4 ग्राम की दर से बीजों को उपचारित करना चाहिए।
पौधेषाला कभी भी उठी हुई क्यारियों पर तैयार करना चाहिए। इससे जलनिकास अच्छा होता है।
लहसुन का बैंगनी धब्बा रोग :-
यह रोग अल्टरनेरिया पोरी नामक कवक से होता हैं। यह रोग पौधों की किसी भी अवस्था में आ सकता है। इस रोग में पतियो या पुष्प (फूल) गुच्छा की डणिडयों पर आरंभ में छोटे, दबे हुए, बैंगनी केन्द्र वाले लंबवत सफेद धब्बे बनते है।यह धब्बे धीरे-धीरे बढने लगते हैं तथा आरंभ में धब्बे बैंगनी होते है। जो बाद में काले हो जाते है। ऐसे अनेक धब्बे बडे होकर आपस में मिल जाते है और पतियां पीली पड़कर सूख जती हैं। खरीफ मौसम में इस रोग का अधिक प्रकोप होता है।
लहसुन में बैंगनी धब्बा रोग की रोकथाम Prevention of purple spot disease in garlic:-
बुवाई से पूर्व बीजों को 2–3 ग्राम डाइथायोकार्बामेट प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
नत्रजन युक्त उर्वरकों का प्रमाण से अधिक और देर से प्रयोग नही करना चाहिए।
मेन्कोजेब 30 ग्राम या कार्बान्डाजिम 20 ग्राम या क्लोरोथलोनिल 20 गा्रम नामक कवकनाषकों को 10 लीटर पानी में घोल कर 12–15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।
लहसुन का श्याम वर्ण (काला धब्बा) यह रोग कोलेटोट्रायकम ग्लेओस्पोराइडम कवक से होता है। रोग के प्रारम्भ में पत्तिायो के बाहरी भाग पर जमीन से लगने वाले भाग में रसे चकते बनते है। जो बाद में बढ़ जाते है तथा सम्पूर्ण पतियों पर काले रंग के उभार दिखने लगते हैं। ये उभार गोलाकर होते है। इससे प्रभावित पत्तिायॉ मुरझाकर मुड़ जाती हैं तथा अंत में सुख जाती हैं। लगातार एक के बाद एक पतियॉ काली हो जाती हैं और पौधें मर जाते हैं। खरीफ के मौसम में नमी वाले वातावरण में इस रोग की शीघ्र वृध्दि होती है।
![](https://khabarwani.com/wp-content/uploads/2022/10/maxresdefault-82-1024x576.jpg)
रोकथाम :-
रोपाई से पूर्व पौधों के जड़ों को कार्बान्डाजिम 2 अनुपात में डुबाना चाहिए।
पौधषाला में बीज पतला बोना चाहिए।
मेन्कोजेब (डाईथेन एम-45) 30 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में घोल कर 12–15 दिन के अन्तराल पर अदल-बदल कर छिडकाव करना चाहिए।
लहसुन का आधार विगजल :- यह रोग फ्युजेरियम ऑक्सिस्पोरियम नामक कवक से होता हैैं। अधिक तापमान तथा अधिक आर्द्रता वाले क्षेत्राें में इस रोग का अधिक प्रकोप होता है। पौधो की कम वृध्दि तथा पंत्तिायों का पिला पड़ना, इस रोग के प्रथम लक्षण है।
रोपाई किये किए हुए पौधो की जड़ें सडने लगती है तथा पौधें आसानी से उखड़ जाते हैं रोगाग्रस्त पौधाें की जड़ें कालापन लिए हुए भूरी होने लगती है तथा पतली हो जाती है। रोग के अधिक प्रकोप में कन्द जड़ के पास सडने लगते हैं तथा मर जाते हैं।
![](https://khabarwani.com/wp-content/uploads/2022/10/564-800x445-1.webp)
रोकथाम :-
इस रोग के कारक जमीन में रहते है। इस कारण उचित फसल चक्र अपनाना आवष्यक हैं।
डायथायोकार्बामेट (2 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर ) से बीज को उपचारित कर बोना चाहिए।
गोबर की खाद के साथ खेत में ट्रायकोडर्मा विहरीडीस 5 किलो प्रति हैक्टर की दर से मिलाना चाहिए।
लहसुन फसल पर लगने वाली कीट
लहसुन का थ्रिप्स :-
थ्रिप्स लहसुन का प्रमुख नुकसानदायक कीट हैं। यह कीट आकार में बहुत छोटे होते हैं अभ्रक तथा प्रौढ कीट नई पतियों का रस चूसते हैं कीड़ों के रस चुसने से पतियो पर असंख्य सफेद रंग के निषान दिखते है। अधिक प्रकोप से पतियॉ मुड़कर झुक जाती है। फसल की किसी भी अवस्था में कीडो का प्रकोप हो सकता हैं रोपाई के तुरन्त बाद इनके प्रकोप से पतियॉ मुड़ने के कारण कन्दों का पोषण नहीं होता है थ्रिप्स के द्वारा किये गये सूक्ष्म जीवों मे बैंगनी, काला सा भूरा धब्बा तथा अन्य कवको के रोगाणु पौधों मे ंप्रवेष कर जाते हैं तथा पौधो में रोग को प्रकोप भी बढता हुआ पाया गया है।
रोकथाम
लहसुन की रोपाई से पूर्व खेत में फोरेट 10 जी 4 किग्रा. प्रति एकड़ या कार्बाफ्युरॉन 3 जी 14 किग्रा. प्रति एकड़ की दर से जमीन में मिलाना चाहिए।प्रत्येक 12–15 दिन के अन्तराल पर डायमेथोयट (03) 15 मिली. मोनोक्रोटोफॉस (0.07) 20 मिली. या साइपरमीथ्रिन (10 ईसी) 5 मिली. या प्रोफेनोफॉस 10 मिली आदि दवाओं में से कोई एक दवा प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर अदल-बदल कर छिड़काव करना चाहिए। इस प्रकार कम से कम 4–5 छिड़काव की आवष्यकता होती है।
लहसुन का कटवा :- इस कीड़े की सूडियॉ (इल्ली) पौधों को नुकसान पहुंचाते है। ये पौधों के जमीन के अन्दर वाले भागो को कतरती हैं। जिससे पौधे सुखने लगते है तथा उखाड़ने पर आसानी से उखड जाते हैं। ककरिली, रेतीली या हल्की मिट्टियों में इस कीडे क़ा अधिक प्रकोप होता है।
रोकथाम :- पिछली फसल के अवषेषों को नष्ट कर देना चाहिए। रोपाई से पूर्व फोरेट 10 जी 4 किग्रा. प्रति एकड़ या कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 14 किग्रा. प्रति एकड़ की दर से खेत में डालना चाहिए। उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए।
लहसुन में दीमक :- कंकरीली, रेतीली या हल्की जमीन में दीमक से अधिक नुकसान होता है इसके अलावा फसल के अवषेष ठीक से सड़ें न हो या कच्ची गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाला हो तो भी इससे नुकसान अधिक होता हैं कई बारे खेत के बांध पर दीमक की बांबी होती है इस कारण प्याज फसल को भी नुकसान होता है। यह पौधों की जड़ तथा कन्दों को कुतरते है जिससे पौधा सूख जाता हैं।
रोकथाम :- इसका प्रकोप के लिए प्रति एकड़ 40–50 किलो हेप्टाक्लोर पाउडर जमीन में अच्छी तरह मिला दें व बाद में बांध पर दीमक की बांबीयों को नष्ट कर दें।
जाने लहसुन की खेती कैसे करे और कैसे कमाए दुगुना मुनाफा Know how to cultivate garlic and how to earn double profit
प्रमुख व्याधियां
तुलहसून मे सिंचाईलासिता एवं अंगमारी :- लहसुन की फसल इस रोग से प्रभावित होती है। तुलासिता से रोगी पौधों की पत्तियों पर सफेद सी फफूंद लग जाती है जबकि अंगमारी रोग में सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। यह धब्बे बाद में बीच से बैंगनी रंग के हो जाते है। नियंत्रण हेतु फसल पर जाईनेब या मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़कावकरना चाहिये।
कटाई, उपज एवं भण्डारण Harvesting, Harvesting and Storage
लहसुन की फसल बुवाई के 4-5 माह बाद पककर तैयार हो जाती है। जब लहसुन की पत्तियां पीली पड़ने लगे उस समय खुदाई की जानी चाहिये। इससे लगभग 100-125 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है। खुदाई करने के बाद कंदों की सूखी पत्तियां काटकर अलग कर देनी चाहियें बाद में इन्हें टोकरियों में भरकर सूखी एवं ठण्डी जगह पर भण्डारित करना चाहिये।