International Day of Older Persons: वृद्धाश्रम में बुजुर्गों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी 

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बदलते समय के साथ रिश्तों का ताना-बाना इस हद तक बिगड़ चुका

International Day of Older Persons: बदलते समय के साथ रिश्तों का ताना-बाना इस हद तक बिगड़ चुका है कि जिन माता-पिता ने अपने बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा किया, वे बच्चे कई बार उन्हें अपने साथ रखने तक से इनकार कर देते हैं। इसका परिणाम यह है कि वृद्धाश्रम (ओल्डएज होम) की संख्या तेजी से बढ़ रही है, और उनमें रहने वाले बुजुर्गों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। 

वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या:

  • मध्य प्रदेश में 2014 में केवल 10 ओल्डएज होम थे, जो अब बढ़कर 95 हो गए हैं।
  • इन वृद्धाश्रमों में रहने वाले बुजुर्गों की संख्या 1645 से बढ़कर 12,459 तक पहुंच गई है।
  • राजधानी भोपाल में ही वृद्धाश्रमों की संख्या 2 से बढ़कर 8 हो गई है।

वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों की कहानियां:

वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों की कहानियां दर्द भरी हैं, जिनमें हर एक बुजुर्ग के पास अपनी अनकही पीड़ा और त्याग की कहानी है।

  1. आसरा वृद्धाश्रम: यहाँ की प्रभारी राधा चौबे बताती हैं कि कई बुजुर्गों को उनके बेटों द्वारा घर से निकाल दिया गया, या उनका कोई परिवार ही नहीं बचा। वे अपने अंतिम दिनों में अपने बच्चों का इंतजार करते रहते हैं, लेकिन कई बार उनके बच्चे उन्हें देखने तक नहीं आते। यहां तक कि जब प्रबंधन बच्चों को सूचित करता है, तो वे यह कहकर साफ इनकार कर देते हैं कि उन्हें अब कोई मतलब नहीं है। यह देख बुजुर्ग अकेले ही दम तोड़ देते हैं।
  2. आनंद धाम वृद्धाश्रम: सचिव आरआर सुरंगे ने बताया कि कई बुजुर्गों को उनके बहू-बेटे यह कहकर छोड़ गए थे कि वे कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं, और फिर कभी लौटकर नहीं आए। जब वृद्धाश्रम के लोग उनके बताए पते पर जाते हैं, तो न बच्चे मिलते हैं और न ही उनके कोई सामान।
  3. अपना घर वृद्धाश्रम: संचालिका माधुरी मिश्रा ने बताया कि पांच बुजुर्ग महिलाएं ऐसी हैं जिनके पास अच्छी संपत्ति है, और उनके बच्चे बड़े अधिकारी हैं। लेकिन जब बुजुर्ग मां ने अपने बच्चों से मिलने की इच्छा जताई और उन्हें घर ले जाया गया, तो बच्चों ने दरवाजा तक नहीं खोला।

सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी:

इन कहानियों से स्पष्ट होता है कि समाज में बदलते मूल्यों और बढ़ती स्वार्थपरकता के चलते बुजुर्गों के प्रति जिम्मेदारी और देखभाल की भावना कम होती जा रही है। बुजुर्ग माता-पिता, जिन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा अपने बच्चों की परवरिश और उनकी देखभाल में बिताया, वे अब खुद अकेलेपन और असहायता का सामना कर रहे हैं। यह स्थिति हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हम किस तरह का समाज बना रहे हैं, जहां बुजुर्गों को इस तरह से छोड़ दिया जाता है। जरूरत है कि समाज में फिर से परिवार और रिश्तों के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी की भावना को मजबूत किया जाए, ताकि बुजुर्ग अपने अंतिम समय में सम्मानपूर्वक और स्नेह के साथ जी सकें।

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