पांडुरना जिले में मनाया जाने वाला Gotmaar Mela
Gotmaar Mela पांढुर्णा में फिर शुरू होगा पत्थरों से खेला जाने वाला खूनी खेल, जानिए इसके पीछे की प्रेम कहानी। मध्य प्रदेश के पांडुरना जिले में पोल उत्सव के बाद आयोजित किया जाने वाला गोटमार मेला एक अत्यंत खतरनाक खेल है।
इसमें लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। प्रशासन इस मेले में पूरी तरह से व्यवस्था करता है। इस बार यह मेला 3 सितंबर से आयोजित किया जाएगा। तो आइए जानते हैं इस मेले के बारे में।
दोनों ओर से पत्थरों की बारिश। Gotmaar Mela
यह मेला जाम नदी पर आयोजित किया जाता है। इस नदी के एक तरफ सावरगांव के लोग रहते हैं और दूसरी तरफ पांडुरना के लोग रहते हैं। दोनों एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। इस खेल में अब तक कई लोग घायल हो चुके हैं और कई लोगों की जान भी जा चुकी है। प्रशासन भी इस मेले को रोक नहीं पाया है। प्रशासन ने एक बार इस खेल में पत्थर की जगह रबर का गेंद का इंतजाम किया था लेकिन लोगों ने फिर से पत्थरों से खेलना शुरू कर दिया था।
Gotmaar Mela की कहानी
गोटमार मेला पांडुरना, मध्य प्रदेश में मनाया जाने वाला एक अनूठा और विवादस्पद उत्सव है। इस मेले के बारे में कई किंवदंतियाँ हैं। इन किंवदंतियों में से एक के अनुसार, कई साल पहले पांडुरना का एक युवक पड़ोसी सावरगांव की एक लड़की से प्यार करता था। लड़की का परिवार उनकी शादी के लिए तैयार नहीं था। इसके बाद युवक ने अमावस्या की सुबह सावरगांव से पांडुरना लड़की के साथ भाग जाने की कोशिश की।
रास्ते में जाम नदी पार करते समय सावरगांव के लोगों को इस बात का पता चला। उन्होंने इसे अपने अपमान के रूप में लिया और लड़के पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ, जैसे ही युवक के परिवार को यह खबर मिली, वे भी लड़के को बचाने के लिए पत्थर फेंकना शुरू कर दिया।
दोनों प्रेमी मर गए Gotmaar Mela
पत्थरों की बारिश के कारण जाम नदी में ये दोनों प्रेमी मर गए। सावरगांव और पांडुरना के लोग जगत् जननी माँ चंडिका के बड़े भक्त थे। इसलिए दोनों प्रेमियों की मृत्यु के बाद दोनों पक्षों के लोगों ने इसे अपने अपमान के रूप में लिया और शवों को किले पर स्थित माँ चंडिका के दरबार में ले जाकर पूजा-अर्चना करने के बाद उनका अंतिम संस्कार किया।
माँ चंडिका की पूजा Gotmaar Mela
इस घटना की याद में माँ चंडिका की पूजा करके गोटमार मेला मनाने की परंपरा है। आज भी इस मेले में लोग पत्थर फेंकते हैं, जो इस खूनी घटना की याद दिलाता है। हालांकि, इस प्रथा की आलोचना भी की जाती है, और कई लोग इसे अमानवीय और हिंसक मानते हैं। लेकिन अब तक इस मेले का आयोजन नहीं रुका है। इस मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
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