दुनिया की यह पहली कथा है जिसे हाईवे पर बैठकर लोग सुन रहे
बैतूल – Duniya Ki Pehli Katha – संसार में ऐसा कोई नहीं जन्मा जिसको भगवान ने एक मौका नहीं दिया हो। पाप से बचने के लिए, पुण्य, सदकर्म की ओर बढऩे के लिए सभी को एक मौका मिलता है। एक मौका बाबा महादेव ने अपने को भी दिया है। भगवान का भजन करने के लिए। यदि इस मौके को भी हम छोड़ दें तो फिर हमारा मानव देह पाना बेकार है। गुरु के चरणाबिंद में जब हम जाते हैं। सद्गुरू के पास जब हम पहुंचते हैं तो गुरु ज्ञान के अमृत से विषय के अमृत को काट देता है। क्योंकि वासना, तृष्णा, काम के भाव के जो विषय होते है गुरु उसे ज्ञान से काट देते हैं।
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कुंआ है परात्मा का चरणामृत
कुंआ, सरोवर, हैण्डपंप, नदियां, कुंड में एक अंतर है। नदी, समुद्र आपके पास आता है और कुंए के पास हमें जाना पड़ता है। कुआं परमात्मा का चरणामृत, भगवान का भजन, भगवत नाम का स्मरण और कीर्तिन है। इसके लिए हमें परात्मा के चरणों में जाकर बैठना पड़ेगा। क्योंकि यहां से जो बल मिलेगा वह हमारी जिंदगी सवार देगा। उक्त प्रवचन पं. प्रदीप मिश्रा ने कोसमी क्षेत्र में माँ ताप्ती श्री शिवपुराण समिति के तत्वावधान में चल रही श्री शिवमहापुराण कथा के दौरान दिए।
लोग हाईवे पर सुन रहे कथा(Duniya Ki Pehli Katha)
पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि शायद यह दुनिया की पहली श्री शिवमहापुराण कथा होगी जिसमें लोग हाईवे पर बैठकर कथा सुन रहे हैं। यह लोग मौन है और कथा सुन रहे हैं। सभी अपने-अपने साधन से यहां पहुंचे हैं। जिसको जगह मिल गई वह पंडाल में बैठ गया लेकिन जिसे जगह नहीं मिली वह भोपाल-नागपुर हाईवे पर बैठकर ही कथा सुन रहा है। यह परात्मा की ही कृपा है। ऐसी कथा सुनने वाले मैं कभी नहीं देखे। लाखों की संख्या में आप लोग यहां पहुंचकर कथा श्रवण कर रहे हो यह भोलेनाथ की कृपा ही है। सत्ता, वैभव की गर्मी खत्म हो जाती है लेकिन भजन की गर्मी सदा बनी रहती है। आप लोग महादेव की कृपा से ही यहां तक पहुंचे हो।
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देख लेता है परमात्मा हमें
पं. प्रदीप मिश्रा ने उदाहरण देते हुए कहा कि एक व्यक्ति शंकर जी के मंदिर में जाकर प्रतिदिन दीया लगाता था। तर्क करने वाले ने कहा कहां जा रहे हो? उसने कहा दीया लगाने के लिए? तर्क करने वाले ने पूछा उससे क्या होता है? इसमें ज्योति कहां से आई बताओ? व्यक्ति दीए को देखा और दीए में फूंक मार दी। इसके बाद उसने तर्क करने वाले ने पूछा दीया क्यों बुझाया? व्यक्ति ने कहा तुम ये बताओ ज्योति बुझी तो कहां गई? तर्क करने वाला वह भी सोच में पड़ गया कि ज्योति को जलाने और बुझाने वाला परमात्मा वही है। हम परात्मा को नहीं देख पाते हैं लेकिन परमात्मा हमें देख लेता है। उसकी चौबीस घंटे दृष्टि हम पर रहती है।
संसार नहीं भगवान को प्रसन्न करो(Duniya Ki Pehli Katha)
यदि हम संसार को प्रसन्न करने में लगे रहेंगे तो कुछ भी हासिल नहीं होगा। लेकिन यदि तुम भगवान को प्रसन्न करोगे तो संसार अपने आप तुम्हारा हो जाएगा। इसलिए जितना हो सके भगवान को प्रसन्न करने में लगे रहो। एक भगवान ही है जो कि आपकी सभी प्रकार के दुख-तकलीफों को मात्र एक लोटा जल चढ़ाने से दूर कर सकता है। इसलिए जितना हो सके भगवान को प्रसन्न करने, उसे रिझाने का प्रयास करो। संसार में उलझकर अपना समय बर्बाद मत करो।
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पल-पल में रंग बदलता है इंसान
इंसान को हम काम होता है तो हाथ जोडक़र बात करता है लेकिन काम हो जाने के बाद उसका व्यवहार बदल जाता है। वहीं यदि हम कोयल की बात करें तो उसे भी दुख-तकलीफ सभी होती है बावजूद इसके वह अपनी बोली नहीं बदलती। लेकिन सिर्फ इंसान ही ऐसा है जो कि काम निकल जाने के बाद अपना रंग इस कदर बदलता है कि कहा नहीं जा सकता है। पल-पल में बदलने वाला सिर्फ इंसान का ही व्यवहार होता है। पंडित जी ने कहा कि सुख हो चाहे दुख हमेशा एक जैसे बने रहे।