Cheapest DryFruit Market: महंगाई के इस दौर में काजू खरीदना सबके लिए आसान नहीं है लेकिन आज हम आपको एक ऐसी MP Cheapest DryFruit Market के बारे में बताने जा रहे है जहां से आप आलू प्याज के भाव में काजू और बादाम खरीद सकते है।
Cheapest DryFruit Market: काजू सेहत के लिए बहुत गुणकारी है. इसे हर कोई पसंद करता है. पर महंगाई के इस दौर में इसे खरीद पाना इतना आसान नहीं. क्योंकि मार्केट में यह आपको 800 या 1000 रुपये प्रति किलो के भाव से मिलता है. अमीर लोग तो फिर भी खरीद लेते हैं पर गरीबों और मध्यम वर्गीय लोगों के लिए इसे खरीद पाना मुश्किल होता है. पर शायद आपको नहीं पता होगा कि 1000 रुपये किलो बिकने वाला काजू भारत के ही एक जिले में कौड़ियों के भाव बिकता है. Cheapest DryFruit Market आपको यह जानकर हैरानी हो रही होगी, लेकिन इस शहर में काजू आलू-प्याज के भाव में आपको मिल जाएगा.
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कहा है Cheapest DryFruit Market
आप सोच रहे होंगे कि भारत में ऐसा कौन सा शहर होगा. अगर इतना सस्ता होता तो हमें इतना महंगा क्यों मिलता है. आपका सवाल वाजिब है पर बता दें कि यह शहर है झारखंड का जामताड़ा. यहां मात्र 30 से 40 रुपये किलो में काजू मिल जाता है. आखिर इतना सस्ता होने की वजह क्या है. तो बता दें कि झारखंड में हर साल हजारों टन काजू की पैदावार होती है. यहां सड़क किनारे महिलाएं 20 से 30 रुपये किलो काजू बेचती नजर आएंगी.
जामताड़ा के नाला गांव में करीब 50 एकड़ जमीन पर काजू की खेती की जाती है. इसे झारखंड की काजू नगरी कहा जाता है. यहां जो काजू का बागान है, झारखंड में ऐसा कहीं भी नहीं है. यहां बड़े-बड़े बागान हैं. जहां काम करने वाले लोग बहुत ही सस्ते दाम पर ड्रायफ्रूट्स को बेच देते हैं. यहां के किसानों के पास खेती करने के लिए ज्यादा सुविधाएं नहीं हैं, लेकिन फिर भी किसान इस खेती से खुश हैं. जिला प्रशासन और वन विभाग ने इस वर्ष करीब 50 हजार काजू का पौधा लगाने की योजना बनाई है. -Cheapest DryFruit Market
औने पौने दाम पर बेच देते किसान
पहली बार काजू का फल आया तो गांव वाले देखकर गदगद हो उठे. बागान से काजू चुनकर घर लाते और एकत्र कर सड़क किनारे औने-पौने दाम में बेच देते. चूंकि इलाके में कोई प्रोसेसिंग प्लांट नहीं था, इसलिए फलों से काजू निकालना उनके लिए संभव भी नहीं था. बंगाल के व्यापारियों को इसकी सूचना मिली तो इसे थोक भाव में खरीदकर ले जाने लगे. व्यापारी तो प्रोसेसिंग के बाद अधिक मुनाफा कमा लेते हैं, लेकिन ग्रामीणों को इसकी कोई उचित कीमत नहीं मिल पाती है.
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