BJP First Candidate List 2025: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति (CEC) की अहम बैठक नई दिल्ली में संपन्न हुई। बैठक में अधिकतर सीटों पर चर्चा पूरी कर ली गई है। सूत्रों के अनुसार, इस बार टिकट काटने का बड़ा फेरबदल नहीं होगा, क्योंकि पार्टी को सरकार या विधायकों के खिलाफ कोई बड़ी एंटी-इंकम्बेंसी लहर महसूस नहीं हो रही है।
20% से ज्यादा नहीं होगा बदलाव
भाजपा सूत्रों की मानें तो इस बार उम्मीदवारों की सूची में 20% से ज्यादा बदलाव नहीं किया जाएगा। पिछले चुनाव में जिन नेताओं के टिकट कटे थे, उनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया गया था। इसलिए इस बार बड़े पैमाने पर बदलाव की संभावना बहुत कम है। पार्टी का फोकस विजयी चेहरों को दोबारा मैदान में उतारने पर रहेगा।
सामाजिक समीकरणों पर खास ध्यान
पार्टी इस बार सामाजिक समीकरणों (Social Equations) को विशेष प्राथमिकता दे रही है। जिन इलाकों में किसी जाति या वर्ग की जनसंख्या अधिक है, वहां उसी समुदाय के उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाएगी।इसके साथ ही भाजपा हर चुनाव की तरह इस बार भी 4-5 नए युवा चेहरों को टिकट दे सकती है।वहीं, जिन विधायकों का प्रदर्शन कमजोर रहा है या जिनकी जनता में पकड़ ढीली पड़ी है, उनके टिकट काटे जा सकते हैं।
उम्र होगी बड़ा फैक्टर
भाजपा इस बार उम्मीदवारों की आयु सीमा पर भी विशेष ध्यान दे रही है। सूत्रों के मुताबिक, 70 वर्ष से अधिक उम्र वाले नेताओं को तभी टिकट मिलेगा जब उस क्षेत्र में कोई और विजयी विकल्प उपलब्ध न हो। पार्टी युवा और ऊर्जावान चेहरों को आगे लाने के पक्ष में है।
NDA सीट शेयरिंग के बाद BJP लड़ेगी 101 सीटों पर
एनडीए के बीच सीटों का बंटवारा तय हो चुका है। इस बार भाजपा को 101 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला है, जबकि पिछली बार वह 110 सीटों पर उतरी थी।भाजपा के पास फिलहाल 80 सीटों पर सिटिंग विधायक हैं। पार्टी इन विधायकों के पांच साल के प्रदर्शन, क्षेत्रीय सक्रियता और जीत की संभावना के आधार पर टिकट तय करेगी।ऐसा माना जा रहा है कि इस बार कम नेताओं के टिकट कटेंगे, यानी ज्यादातर पुराने चेहरे ही मैदान में दिखेंगे।
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पिछली बार क्या रहा था BJP का प्रदर्शन
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भाजपा ने 74 सीटों पर जीत हासिल की थी। बाद में उपचुनावों और अन्य दलों के विधायकों के शामिल होने से संख्या 80 तक पहुंच गई। 2015 में भाजपा ने अकेले 157 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उसे केवल 53 सीटें मिली थीं। इससे साफ है कि भाजपा को गठबंधन के साथ मिलकर ज्यादा सफलता मिलती रही है।





