Betul Blood Bank : बदइंतजामी से पड़ा ब्लड बैंक मेें रक्त का टोटा

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रक्तदाताओं की लगातार की जा रही उपेक्षा से उपजी समस्या, प्रबंधन की उदासीनता से रक्तदाताओं में पनप रहा आक्रोश

Betul Blood Bankबैतूल – रक्तदान को लेकर मध्यप्रदेश में कभी टॉप लिस्ट में शुमार जिला चिकित्सालय का ब्लड बैंक इन दिनों रक्त की कमी से बुरी तरह से जूझ रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण यह सामने आया है कि यहां पर बदइंतजामी की वजह से लगातार हो रही रक्तदाताओं की उपेक्षा से उनमें आक्रोश व्याप्त होने लगा है और उनका रक्तदान करने के प्रति मोहभंग हो रहा है। ब्लड बैंक में रक्त की कमी से सबसे अधिक खामियाजा सिकलसेल और थैलेसिमिया पीडि़त लगभग 400 बच्चों को उठाना पड़ रहा है।

रक्तदाताओं की होती है उपेक्षा | Betul Blood Bank

हर तीन माह में रक्तदान करने वाले संदीप सोलंकी ने बताया कि सबसे अधिक रक्त की आवश्यकता सिकलसेल पीडि़त बच्चों को 1 माह में और थैलेसीमिया पीडि़त बच्चों 15 दिन में रक्त की आवश्यकता पड़ती है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को होती है। उनकी जान पर बन आने के कारण ही जिले के रक्तदाताओं द्वारा गर्मी, ठण्ड और बारिश को देखे बिना सीधे जान बचाने के लिए दौड़ पड़ते हैं और अपना बहुमूल्य रक्त दान करते हैं। लेकिन चार माह से ब्लड बैंक में लगातार रक्तदाताओं की उपेक्षा होने से यहां पर ब्लड का टोटा पड़ गया है।

पहले और अब की व्यवस्था में यह है अंतर

पहले जब कोई भी रक्तदाता रक्तदान करने के लिए ब्लड बैंक में पहुंचता था तो उसे सम्मान दिया जाता था। इतना ही नहीं उससे प्रेम पूर्वक बातचीत भी की जाती थी और रक्त लेने के बाद उसे शीतल पेय देते थे। लेकिन अब रक्तदाता यदि रक्तदान करने के लिए पहुंचता है तो उसे एक फार्म पकड़ा दिया जाता है जिस पर डॉक्टर की हस्ताक्षर करवाना होता है। डोनर फार्म लेकर डॉक्टर की रास्ता देखता है और यदि वह मिल गया तो ठीक है वरना उसका इंतजार करते रहता है जिससे डोनर का समय खराब होता है। इसके अलावा ब्लड बैंक में डोनर को दी जाने वाली सुविधाएं और सम्मान में भी काफी कमी आई है। इसी का नतीजा है कि आज ब्लड बैंक रक्त कमी से बुरी तरह से जूझ रहा है।

कैंपों के आयोजन भी हुए कम | Betul Blood Bank

इक्का-दुक्का रक्तदान शिविर को छोड़ दिया जाए तो जिला रक्तकोष से जिले भर में लगाए जाने वाले रक्तदान शिविर भी लगना लगभग कम हो गए हैं जिससे ब्लड बैंक में रक्त की आवक ही नहीं हो पा रही है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को भी सीजर के दौरान अधिकांशत: रक्त की आवश्यकता पड़ती है। चूंकि बैतूल आदिवासी बाहुल्य जिला है इसलिए ग्रामीण महिला को लाकर भर्ती तो करा देते हैं लेकिन रक्तदान करने से कतराते हैं। जान बचाने के लिए ब्लड बैंक में रखा रक्त दे दिया जाता है लेकिन इसकी पूर्ति नहीं हो पाती है जिससे ब्लड बैंक रक्त की कमी से जूझ रहा है।

ऐसे सुधर सकती है व्यवस्थाएं

एक समय था जब बैतूल जिला चिकित्सालय का ब्लड बैंक रक्त की उपलब्धता के मामले में प्रदेश में अव्वल स्थान पर था। यहां पर यदि बदइंतजामी को सुधारकर व्यवस्थाएं बनायी जाए और सबसे अधिक महत्वपूर्ण डोनरों का सम्मान करते हुए उन्हें फार्म पर डॉक्टर से हस्ताक्षर करवाने जैसी कई समस्याओं से निजात दिलाई जाए। जिले भर में रक्तदान कराने वाली समितियों की कार्यशाला का आयोजन किया जाए और रक्तदाताओं को प्रोत्साहित करते हुए शिविरों का आयोजन किया जाए तो निश्चित रूप से आने वाले कुछ दिनों में ब्लड बैंक में भरपूर रक्त की आवक हो सकती है। इसके लिए आवश्यकता है तो बस इच्छाशक्ति की।

इनका कहना…

बैंक में रक्त की कमी है। अभी दो शिविर रविवार और मंगलवार को लगने वाले हैं। समस्या का कारण डोनर नहीं मिलना है। मेटरनिटी, सिकलसेल और थैलेसिमिया के लिए बिना एक्सचेंज के रक्त देते हैं। व्यवस्था सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं।

डॉ. डब्ल्यूए नागले, रक्तकोष अधिकारी, बैतूल

पहले रक्तदाताओं और समितियों की कार्यशाला होती थी जो लंबे समय से नहीं हुई है। व्यवस्था सुधारने के लिए यह व्यवस्था पुन: चालू करनी पड़ेगी। जिन समितियों ने शिविर लगाना बंद कर दिए हैं उन्हें शिविर लगाने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा।

शैलेंद्र बिहारिया, रक्तदाता, बैतूल

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