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Political Analysis – मुलताई से एक बार फिर चंद्रशेखर देशमुख

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भाजपा की पहली लिस्ट में आया नाम

Political Analysisबैतूल भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने के पूर्व 230 विधानसभा सीटों में से 39 सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित कर राजनीतिक हल्कों में आश्चर्य उत्पन्न कर दिया हैं। ये 39 सीट वह है जहां पिछले चुनाव में भाजपा को सफलता नहीं मिली थी इसीलिए उम्मीदवारों को अधिक समय मिल सके इस रणनीति के तहत यह लिस्ट जारी की गई है।

इन 39 सीटों में बैतूल जिले की 2 सीटें शामिल है जिनमें मुलताई से पूर्व विधायक एवं कुनबी समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले चंद्रशेखर देशमुख तथा अजजा वर्ग के लिए आरक्षित भैंसदेही विधानसभा सीट से पूर्व विधायक महेंद्र सिंह चौहान को उम्मीदवार घोषित किया गया है। हालांकि इन दोनों सीटों पर भाजपा के तीन से अधिक दावेदार थे लेकिन इन सब की परवाह न करते हुए भाजपा ने सर्वे के आधार पर यह उम्मीदवारी घोषित की है ऐसा भाजपा के सूत्रों का कहना है।

मुलताई में स्थिति हुई साफ | Political Analysis

जिले की राजनीति में बैतूल और मुलताई सीट का विशेष महत्व है क्योंकि यह दोनों ही अनारक्षित सीट है। और जैसे की संभावना व्यक्त की जा रही है कि इन दोनों ही सीट से कांग्रेस के वर्तमान विधायक निलय डागा और सुखदेव पांसे की उम्मीदवारी लगभग तय है। लेकिन कल की घोषित सूची में भाजपा ने सिर्फ मुलताई सीट पर उम्मीदवार घोषित किया है बैतूल पर नहीं, जबकि बैतूल भी भाजपा के लिए हारी हुई सीट थी।

हारने के बाद तय हो गया था कुंबी समाज का प्रत्याशी

आज हम मुलताई सीट की बात कर रहे हैं जहां एक बार मासोद विधानसभा से और एक बार मुलताई विधानसभा से चुनाव जीते चंद्रशेखर देशमुख पर एक बार फिर भाजपा ने विश्वास जताया है लेकिन चंद्रशेखर देशमुख को 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतने के बावजूद 2018 में टिकट नहीं दी गई थी और उनके स्थान पर पवार समाज के राजा पवार को चुनाव मैदान में उतारा था जो वर्तमान कांग्रेस विधायक सुखदेव पांसे से चुनाव हार गए थे।

उस समय भी राजनीतिक हलकों में यह चर्चा उठी थी कि यदि पवार समाज के उम्मीदवार की जगह कुनबी समाज के किसी उम्मीदवार को टिकट दी जाती तो सुखदेव पांसे को चुनाव जीतना इतना आसान नहीं होता, और यह गलती भाजपा के दिग्गजों को भी उसी समय समझ आ गई थी इसीलिए 2018 के बाद ही यह तय हो गया था कि भाजपा 2023 के विधानसभा चुनाव में कुनबी समाज के उम्मीदवार को ही चुनाव मैदान में उतारेगी। और ऐसा ही हुआ।

यह बात अलग है कि कुनबी समाज से ही 5 दावेदारों के दावे की अनदेखी करते हुए भाजपा ने इसी समाज के चंदशेखर देशमुख को टिकिट दिया। गौरतलब है कि इस बार भाजपा की टिकट के लिए इसी समाज से पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष नरेश फाटे, जिला भाजपा युवा मोर्चा अध्यक्ष भास्कर मगरदे, गायत्री परिवार से जुड़े उत्तम गायकवाड़, पूर्व कौशल विकास निगम अध्यक्ष हेमंत विजय राव देशमुख और सुभाष देशमुख भी दावेदारी कर रहे थे।

रामजी महाजन को किया था पराजित | Political Analysis

जिले सहित मुलताई के राजनीतिक हलकों में भी यह चर्चा आम थी कि कांग्रेस विधायक सुखदेव पांसे के सामने भाजपा की ओर से चंद्रशेखर देशमुख ही सबसे सशक्त उम्मीदवार हो सकते हैं और इन्हीं सब आधारों पर भाजपा ने चंद्रशेखर देशमुख को मैदान में उतारा है। चंद्रशेखर देशमुख पूर्व में 1998 मसोद विधानसभा से कांग्रेस के दिग्गज रहे तत्कालीन मंत्री रामजी महाजन को पराजित कर एवं वर्ष 2013 में मुलताई से सुखदेव पांसे को भारी मतों से पराजित कर विधायक निर्वाचित हुए थे। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने श्री देशमुख के स्थान पर राजा पवार को चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वे सफल नहीं हो पाए।

बैतूल-मुलताई में करना पड़ता है बैलेंस

2018 के विधानसभा चुनाव में लंबे समय बाद ऐसा हुआ था कि भाजपा ने बैतूल और मुलताई दोनों में से किसी भी सीट से कुनबी समाज के उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा और इसका खामियाजा उन दोनों सीटों पर भाजपा को भुगतना पड़ा और बैतूल तथा मुलताई दोनों ही विधानसभा सीट से कुनबी समाज के मतदाताओं ने भाजपा से मुंह मोड़ लिया। इसके विपरीत 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बैतूल और मुलताई दोनों ही विधानसभा सीटों से कुनबी समाज के उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था तब अन्य वर्ग के मतदाता कांग्रेस से नाराज हो गए थे इसीलिए जिले की राजनीति में बैलेंस करने के लिए 1 सीट से कुनबी समाज का और दूसरी सीट से अन्य समाज को चुनाव मैदान में उतारने का फायदा उस पार्टी को मिलता रहा है।

दो बार हारे, दो बार जीते | Political Analysis

1998 में चंद्रशेखर देशमुख मासोद विधानसभा से पहली बार चुनाव लड़े थे और उन्हें 29 हजार 56 वोट मिले थे। उनसे कांग्रेस प्रत्याशी रामजी महाजन चुनाव हार गए थे। उन्हें 27 हजार 575 वोट मिले थे। 2003 में इसी मासोद सीट पर सुखदेव पांसे से पहली बार चुनाव लड़े थे लेकिन लगभग 3720 मतों से हार गए। पांसे को 37463 वोट और चंद्रशेखर देशमुख को 33743 वोट मिले थे। परिसीमन के बाद मासोद सीट समाप्त हो गई और मुलताई में विलय हो गई। 2008 में सुखदेव पांसे ने मुलताई विधानसभा से चंद्रशेखर देशमुख को पराजित कर दिया था। 2013 में भाजपा ने चंद्रशेखर देशमुख पर फिर भरोसा जताया। श्री देशमुख ने कांग्रेस को सुखदेव पांसे को 31869 मतों के बड़े अंतर से चुनाव हरा दिया था।

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