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नानक जी द्वारा गुरुमुखी लिपि का हस्तलिखित ग्रंथ की दुर्लभ प्रति गंंजबासौदा में

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खबरवाणी

नानक जी द्वारा गुरुमुखी लिपि का हस्तलिखित ग्रंथ की दुर्लभ प्रति गंंजबासौदा में

विदिशा/गंजबासौदा नितीश श्रीवास्तव। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव द्वारा हस्तलिखित गुरुग्रंथ साहिब की एक दुर्लभ प्रति नगर में आज भी विद्यमान है। जिसके दर्शनों हेतु प्रकाश पर्व के अलावा वर्ष भर नगर में प्रदेश के अन्य शहरों सहित पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र आदि राज्यों से सिख समाज के लोग गंजबासौदा आते हैं। इस पवित्र ग्रंथ का ऐतिहासिक महत्व बताते हुए शिव कपूर ने बताया कि सिख धर्म की स्थापना और प्रारंभिक विस्तार के दौरान गुरुग्रंथ साहिब की हाथ से लिखी गई एक दुर्लभ प्रति आज भी हमारे निज निवास वार्ड क्रमांक 23 में मौजूद है। जिसे हमारे पूर्वज लगभग 350 वर्ष पूर्व नांदेड़ साहिब महाराष्ट्र से बैल गाड़ी में रखकर लाये थे। ग्रंथ की प्रमाणिकता की पुष्टि सिख समाज के कई वरिष्ठ धार्मिक गुरु भी कर चुके हैं। गुरु नानक देवजी द्वारा हस्तलिखित इस तरह की सिर्फ चार प्रतियां ही पूरे देश में उपलब्ध है। बताया कि गुरुमुखी लिपि से इस ग्रंथ को नानक देव जी ने लिखा है जिसका मुख्य पृष्ठ स्वर्ण जड़ित है। प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष इस स्थान पर कपूर परिवार द्वारा अरदास, भजन कीर्तन, ग्रंथ पाठ एवं लंगर का आयोजन किया जाता है।

गुरु नानक जी की चरणस्थली ग्राम उदयपुर

जनपद गंजबासौदा से 18 किलोमीटर दूर पुरातात्विक महत्व की नगरी ग्राम उदयपुर में गुरु नानक देव के चरण चिन्ह आज भी मौजूद हैं। बताया जाता है कि करीब 400 से 500 वर्ष पूर्व गुरु नानक देव देश भ्रमण के दौरान यहाँ आकर रुके थे। उस समय उदयपुर में गुरु नानक देव जी के चरण के चिन्ह यहां पर काले पत्थर पर दिखते थे। लेकिन समय के साथ चरण वाला काला पत्थर यहां से गायब हो गया। तब तत्कालीन स्थानीय निवासियों ने प्रतीकात्मक चरण की स्थापना कर वहां पर मंदिर और धर्मशाला की स्थापना की थी। इसी स्थान पर प्रतिवर्ष प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में सुबह प्रभात फेरी, गुरवाणी, अरदास एवं प्रसादी लंगर का आयोजन किया जाता। जिसकी पूरी व्यवस्था प्रेम कपूर परिवार द्वारा की जाती है। प्रेम कपूर ने बताया कि आज भी गुरु नानक देव जी के नाम का मंदिर और धर्मशाला उदयपुर में स्थित है, साथ ही गुरु नानक देव के नाम की 55 बीघा जमीन कागजों में दर्ज है लेकिन अन्य व्यक्ति के कब्जे में होने के कारण यहां स्थित धर्मशाला एवं गुरुद्वारे को कोई भी लाभ नहीं मिलता।

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