Potato cultivation: उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में किसान बड़े पैमाने पर आलू की खेती करते हैं, जहाँ लगभग 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र में आलू का उत्पादन होता है। जिला कृषि अधिकारी आवेश कुमार का कहना है कि अगर किसान अपनी फसल का उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें डीएपी की जगह एनपीके का उपयोग करना चाहिए।डीएपी और एनपीके में मुख्य अंतर यह है कि डीएपी में केवल नाइट्रोजन और फॉस्फोरस होते हैं, जबकि एनपीके में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटैशियम तीनों तत्व होते हैं। डीएपी में 46% फॉस्फोरस और 18% नाइट्रोजन होता है, जबकि एनपीके में तीनों पोषक तत्व लगभग 20-20% मात्रा में होते हैं। एनपीके में पोटैशियम की उपस्थिति से पौधों का संपूर्ण स्वास्थ्य बेहतर होता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ता है।कृषि अधिकारी ने सुझाव दिया है कि डीएपी का उपयोग फसल बुवाई के समय किया जाना चाहिए, हालांकि कुछ किसान इसे पहली या दूसरी सिंचाई के समय भी डालते हैं। एक एकड़ में लगभग 50 किलो डीएपी का इस्तेमाल किया जा सकता है। दूसरी ओर, एनपीके का उपयोग फसल की पत्तियों, फूलों, कलियों, जड़ों और फल के विकास में सहायक होता है, जिससे पौधों में बेहतर पोषण और स्वस्थ वृद्धि होती है।आवेश कुमार का कहना है कि आलू की बुवाई का समय नजदीक है, और अगर किसान डीएपी की बजाय एनपीके का इस्तेमाल करते हैं, तो उनकी लागत कम हो सकती है और मुनाफा बढ़ सकता है। एनपीके के उपयोग से फसल में निखार आता है और उत्पादन बढ़ता है, जिससे किसानों को अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
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