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Positive News – दिव्यांगता को परास्त कर गोल्ड जीतना है कनिष्का का सपना

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ना बोल सकती है और ना ही सुन सकती है नेशनल में जीत चुकी है सिल्वर

Positive Newsबैतूल यदि किसी चीज को सीखने की चाहत हो तो फिर दिव्यांगता भी आड़े नहीं आती है। गुरु द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य का अंगूठा मांग लेने के बावजूद भी उन्होंने धनुष विद्या में वो महारत हासिल की थी कि आज भी जब-जब गुरुदक्षिणा की बात आती है तो एकलव्य का नाम सहसा ही जुबान पर आ जाता है क्योंकि उन्होंने बिना अंगूठे के धनुर विद्या में ऐसे कीर्तिमान रचे थे जो आज तक कायम है।

जी-हां हम यहां पर एक ऐसी ही मेधावी बिटिया कनिष्का की बात कर रहे हैं जो कि भले ही जन्मजात दिव्यांग (मूक बधिर) है लेकिन उसने अपनी लगन, मेहनत और निरंतर अभ्यास से ताइक्वांडो में जहां पूर्व नेशनल चैम्पियनशिप में सिल्वर प्राप्त किया है। वहीं बैतूल में आयोजित नेशनल चैम्पियनशिप में उसका लक्ष्य ना सिर्फ गोल्ड मेडल जीतने का है बल्कि डेफ ओलंपिक खेलने का सपना भी वह देख रही है। कनिष्ठा की इस उपलब्धि पर उसके माता-पिता, कोच, गुरू सभी को गर्व है।

इशारों में सीखा ताइक्वांडो | Positive News

बैतूल में आयोजित राष्ट्रीय ताइक्वांडो प्रतियोगिता में भोपाल से आई कनिष्का शर्मा की उम्र 15 साल है और वह 17 वर्ष आयु वर्ग में वजन के अनुसार खेल रही है। कनिष्का ना बोल सकती है और ना ही सुन सकती है। उसने इशारों-इशारों में समझकर ताइक्वांडो सीखा है। दिव्यांगता होने के बावजूद कनिष्का ने अच्छे-अच्छे खिलाडिय़ों को पटकनी दी है।

2023 में बैंगलुरु में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उसने सिल्वर मेडल जीता था। इसके अलावा राज्य स्तर पर कई पुरस्कार भी जीत चुकी है। वर्तमान में कनिष्का मध्यप्रदेश की स्पोर्ट एकेडमी में है और वह वल्र्ड ताइक्वांडो और डेफ ओलंपिक की तैयारी कर रही है।

बेटी पर गर्व महसूस करते हैं माता-पिता

पेशे से फोटोग्राफर भोपाल के कपिल शर्मा और प्रियंका शर्मा को जन्म से ढाई से तीन साल बाद पता चला कि उनकी बेटी कनिष्का ना बोल सकती है और ना ही सुन सकती है तो उनके पैरो तले जमीन खिसक गई और बेटी को लेकर परेशान रहने लगे। उसके इलाज के लिए उन्होंने देश के कई विशेषज्ञ डॉक्टरों को दिखाया पर दिव्यांगता 91 प्रतिशत होने के कारण सबने असमर्थता जता दी।

इसके बाद उन्होंने बेटी को स्कूल में दाखिला दिलाया। लेकिन सामान्य बच्चों के साथ वो ठीक ढंग से पढ़ नहीं पा रही थी तो उसे आशा निकेतन स्कूल जो कि विशेष डेफ बच्चों के लिए है वहां पर दाखिला कराया। इसके बाद कनिष्का अभी सातवीं कक्षा में पढ़ रही है। उन्होंने कहा कि साइन लैंग्वेज सीखने के बाद अब बच्ची बातों को समझकर प्रतिक्रिया भी अच्छे से देती है। कनिष्का ने स्टेट में पांच चैम्पियनशिप खेली है और सभी में उसे गोल्ड मिला है।

दीपक सिंह है कनिष्का के कोच | Positive News

बच्ची को शुरूवात में ताइक्वांडो सिखाने में जरूर दिक्कत आती थी लेकिन अब वह सामान्य बच्चों की तरह ही रिस्पांस करती है। यह बात कनिष्का के कोच दीपक सिंह ने कही। दीपक ने कहा कि कनिष्का काफी मेहनती है और उसका प्रदर्शन भी अन्य बच्चों से अलग होता है।

इस चैम्पियनशिप में कनिष्का इकलौती दिव्यांग बच्ची है। कनिष्का की सहेली आयुषी सिंह ने बताया कि वह कनिष्का को पिछले एक साल से जानती है। उसने कहा कि हमने कई टूर्नामेंट साथ खेल हैं। कनिष्का को देखकर हमें भी मोटिवेशन मिलता है कि जब वह यह सब करती है तो फिर हम क्यों नहीं कर सकते हैं? आयुषी ने बताया कि हम आलस कर लेते हैं लेकिन कनिष्का कभी आलस नहीं करती वह बहुत मेहनती है।

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