भाजपा दो बार कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर रच चुकी है इतिहास
Political News – बैतूल – जिले के राजनैतिक इतिहास में मध्यप्रदेश के गठन के पूर्व और बाद में प्रमुख राजनैतिक दलों के रूप में कांग्रेस और भाजपा (जनसंघ और जनता पार्टी) के उम्मीदवारों के बीच ही विधानसभा चुनाव में सीधा संघर्ष होता आया है। बीच-बीच में इक्का-दुक्का निर्दलीय उम्मीदवार भी सफल हुए हैं। इन 71 वर्षों का चुनावी इतिहास देखे तो विधानसभा चुनावों के दौरान आज तक (परिसीमन के पहले और बाद में) जिले की सभी सीटों पर एक साथ कांग्रेस को सफलता नहीं मिली है।
वहीं 1990 में पहली बार जिले की 6 विधानसभा सीटों आमला, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, बैतूल, मासोद और मुलताई में भाजपा के उम्मीदवार विजयी हुए थे। इसी तरह से 2013 के विधानसभा चुनाव में जिले की सभी पांचों सीट बैतूल, मुलताई, घोड़ाडोंगरी, आमला और भैंसदेही सीटों पर भी भाजपा ने जीत का परचम लहराया था।
कांग्रेस को 1993 के चुनाव में जिले की 6 में से 5 विधानसभा सीटों आमला, घोड़ाडोंगरी, बैतूल, भैंसदेही और मासोद में तो मुलताई से निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीता था। इस तरह से कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव जीतने का रिकार्ड नहीं बनाई। यह बात अलग है कि मुलताई सीट से निर्दलीय चुनाव जीते डॉ. पीआर बोडख़े कांग्रेस से विद्रोह कर चुनाव लड़े थे और उन्हीं के कारण कांग्रेस उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा था। इसी तरह से पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस एक सीट से हारने के कारण फिर यह रिकार्ड बनाने से चूकी। इस चुनाव में बैतूल, मुलताई, घोड़ाडोंगरी और भैंसदेही से कांग्रेस तो आमला से भाजपा उम्मीदवार चुनाव जीता था।
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जिले में विभिन्न सीटों में अलग है जातिगत समीकरण | Political News
बैतूल विधानसभा क्षेत्र सामान्य श्रेणी का विधानसभा क्षेत्र है और यह मिश्रित आबादी का क्षेत्र है। यहां कुंबी, पंवार, किराड़ समाज की अधिक संख्या है लेकिन इसके अलावा मुस्लिम, ब्राम्हण, आदिवासी, दलित, वैश्य, ईसाई, सिक्ख समुदाय के मतदाता भी चुनाव प्रभावित करते हैं।
मुलताई विधानसभा क्षेत्र कुंबी बहुल्यता वाला इलाका है। इसके बाद पवार समाज और अन्य मिश्रित जातियां आती है। इस विधानसभा क्षेत्र में माना जाता है कि कुनबी समाज जिसके साथ भी अपना समर्थन जता देगा ।वह प्रत्याशी विजयश्री का वरण कर लेगा । दोनों प्रमुख प्रत्याशी कुनबी समाज से ही होने की स्थिति में इस समुदाय का वोट बैंक बंट जाता है । ऐसी स्थिति में जिस भी प्रत्याशी के साथ पवार समाज अपना समर्थन जता देता है। वह चुनाव जीत जाता है ।इस इलाके में कुनबी 25 प्रतिशत, पवार 20 फीसदी, रघुवंशी 10,साहू और किराड़ समाज पांच-पांच फीसदी और अन्य समुदाय 35 फीसदी है।
भैंसदेही विधानसभा क्षेत्र कोरकू और आदिवासी समुदाय में बंटा हुआ है। यहां कोरकू और आदिवासी समुदाय में 10 प्रतिशत काअंतर है । यहां कोरकू समाज की बहुलता है। इस बार यहां कोरकू समुदाय से भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। जबकि भाजपा से बगावत और इस्तीफा देकर दो उम्मीदवार चुनाव मैदान में है । तो वहीं दूसरी तरफ आदिवासी समुदाय से कांग्रेस और जयस समर्थित प्रत्याशी मैदान में है। इस इलाके में कोरकू समुदाय की बहुलता होने के कारण यह चुनाव परिणाम पर असर डालता ही है। जबकि किराड़ कुनबी साहू और राठौर समाज को भी निर्णायक भूमिका में माना जाता है।
घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है।उसके बाद यहां कोरकू समुदाय आता है। माना जाता है कि यहां 40 फीसदी आदिवासी जबकि 20 प्रतिशत कोरकू समुदाय की बहुलता है। उसके बाद अन्य समाज आता है। जिसमें मिश्रित जातियां शामिल है। इनमें यादव राठौर , कटिया, कुर्मी समाज के अलावा पुनर्वास कैंप भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह विधानसभा क्षेत्र तीन हिस्सों में बंट गया है ।जिसमें एक पुनर्वास कैंप जबकि दूसरा शाहपुर और तीसरा चिचोली क्षेत्र है। यहां जातिगत समीकरणों से ज्यादा भौगोलिक क्षेत्र चुनाव परिणाम पर असर डालता है।
आमला विधानसभा क्षेत्र में यूं तो जातिगत समीकरण बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डालता। लेकिन यहां आदिवासी और यादव समाज निर्णायक भूमिका में रहता है। इस विधानसभा क्षेत्र में बुद्धिस्ट, महाराष्ट्रीयन और स्थानीय दलित वर्ग की बहुलता है। मिश्रित जातियां भी यहां चुनाव में असर डालती है। विधानसभा क्षेत्र के आमला और सारणी दो हिस्सो मे बंट जाने का भी यहां असर है। सारणी के शहरी क्षेत्र का मतदाता भी यहां निर्णायक भूमिका अदा करता है।।
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