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कई चाचा-भतीजे की जोड़ी उतरी चुनाव मैदान में
Political News – बैतूल – जिले की राजनीति में कुछ परिवारों की कई पीढ़ियां राजनीति में सक्रिय रही हैं और हैं। इनमें से कई परिवारों में उनके राजनैतिक दल ने पिता और पुत्र दोनों को चुनाव मैदान में उतारने का अवसर प्रदान किया है।
इसी तरह से इन राजनैतिक दलों ने कई चाचाओं को भी चुनाव लड़वाया। वहीं इनके भतीजों को भी चुनाव लड़ने का अवसर मिला और इनमें भी अधिकांश भतीजे चुनावी राजनीति में सफल हुए। ऐसी चाचा-भतीजों की जोड़ी को अलग-अलग समय में जनसंघ, जनता पार्टी और भाजपा तीनों ने ही इन्हें मौका दिया है। इसी तरह से कांगे्रस पार्टी ने भी तीन अवसरों पर चाचा-भतीजो को चुनाव लड़वाया है।
जीडी विस तो वीके लोस लड़े | Political News
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अपने समय में जनसंघ के धांसू नेता रहे जीडी खण्डेलवाल को जनसंघ ने तीन बार विधानसभा चुनाव लड़वाया जिसमें 1962 और 1972 के चुनाव में असफल रहे लेकिन 1967 में चुनाव जीते के बाद जिले को जीडी खण्डेलवाल के रूप में पहला मंत्री प्राप्त हुआ। जीडी खण्डेलवाल के बड़े भाई आरडी खण्डेलवाल के पुत्र विजय खण्डेलवाल ने भी भाजपा की टिकट पर चार बार लोकसभा चुनाव लड़ा और चारों चुनाव में जीत हासिल की थी।
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पटेल परिवार भी लड़ा चुनाव
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1962 और 1967 में मुलताई विधानसभा सीट से कांग्रेस के बालकृष्ण पटेल चुनाव लड़े और जीते। वहीं 1972 में चुनाव हार गए। 1972 के ही चुनाव में मासोद विधानसभा सीट से बालकृष्ण पटेल के भाई बिहारीलाल पटेल के पुत्र सुरेंद्र पटेल भी चुनाव मैदान में कांग्रेस की टिकट पर उतरे लेकिन वह भी चुनाव हार गए। आज तक यह पहला अवसर रहा जब चाचा-भतीजे एक साथ आजू-बाजू की विधानसभा सीट से एक ही दल से चुनाव लड़े।
देशमुख परिवार को मिला यह मौका | Political News
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1967 में मासोद विधानसभा सीट से कांग्रेस के बुधराव देशमुख चुनाव लड़े और जीत गए। लेकिन 1972 में उनकी टिकट काट दी गई और वो चुनावी राजनीति से दूर हो गए। 26 साल बाद उनके भाई के पुत्र चंद्रशेखर देशमुख को भाजपा ने इसी सीट से उम्मीदवार बनाया और वो चुनाव जीत गए लेकिन 2003 के चुनाव में मासोद सीट एवं 2008 में मुलताई सीट से चंद्रशेखर देशमुख हार गए। फिर 2013 में एक बार फिर मुलताई विधानसभा से भाजपा के चंद्रशेखर देशमुख विधायक निर्वाचित हो गए।
भैंसदेही में चौहान परिवार को मिला अवसर
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1968 के उपचुनाव में जनसंघ की टिकट पर भैंसदेही से निर्वाचित हुए काल्यासिंह चौहान को 1972 में कांग्रेस ने भैंसदेही से चुनाव मैदान में उतारा और वो फिर चुनाव जीत गए। लेकिन 1977 और 1980 में कांग्रेस की टिकट पर ही चुनाव हार गए। इसी सीट से उनके भतीजे केसर सिंह चौहान ने भाजपा के उम्मीदवार के रूप में अपने ही सगे चाचा कांग्रेस के काल्यासिंह चौहान को हराया। इसके बाद 1990 में केसरसिंह भाजपा की टिकट पर चुनाव जीते लेकिन 1993 में चुनाव हार गए।
पांसे परिवार से भी चाचा-भतीजे लड़े | Political News
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1972 में पहली बार बैतूल विधानसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े डॉ. मारोतीराव पांसे विधायक निर्वाचित हुए। लेकिन 1977 और 1980 में कांग्रेस की टिकट पर ही चुनाव लड़ने के बावजूद हार गए। 23 साल बाद उनके भाई वसंतराव पांसे के पुत्र सुखदेव पांसे को कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा। 2003 के चुनाव में मासोद से एवं 2008 में मुलताई विधानसभा से सुखदेव पांसे जीते। वहीं 2013 में मुलताई से चुनाव हारने के बाद 2018 में पुर्ननिर्वाचित हुए।
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