कोरकू और गोंड मतदाता ही प्रभावित करते हैं चुनाव परिणाम
Political Analysis – बैतूल विधानसभा चुनाव में सबसे पहले प्रत्याशियों की सूची जारी करने वाली भाजपा ने बैतूल जिले की जिन 2 सीटों पर जो उम्मीदवार घोषित किए हैं वे दोनों ही वरिष्ठ एवं अनुभवी नेता है तथा कई बार विधायक भी रह चुके हैं। इनमें भैंसदेही विधानसभा क्षेत्र से महेंद्र सिंह चौहान को 2023 के चुनाव के लिए फिर प्रत्याशी बनाया गया है। पिछला चुनाव महेंद्र सिंह चौहान कांग्रेस के धरमूसिंह सिरसाम से हारे थे।
भाजपा प्रत्याशियों के नाम सामने आने के बाद राजनैतिक विश्लेषण भी आने लगे हैं। भैंसदेही विधानसभा में आदिवासी समाज के दो वर्ग प्रमुख हैं जिनमें एक गोंड है और दूसरा कोरकू है। महेंद्र सिंह चौहान कोरकू समाज से हैं। वहीं वर्तमान विधायक कांग्रेस के धरमूसिंह सिरसाम गोंड समाज से हैं।
इस चुनाव में एक नया नाम जयस से भी सामने आया है। जिला पंचायत सदस्य संदीप धुर्वे का ,जो जयस के जिलाध्यक्ष भी हैं और गोंड समाज से हैं। और संदीप धुर्वे का भी चुनाव लड़ना लगभग तय माना जा रहा है।
वैसे तो जातिगत गणना पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है लेकिन जानकारों के मुताबिक भैंसदेही विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं में लगभग 70 प्रतिशत मतदाता आदिवासी वर्ग से हैं।और इनमें गोंड समाज की संख्या ज्यादा बताई जा रही है वहीं कोरकू समाज भी इनसे थोड़ा ही कम है। लेकिन दोनों ही समाज निर्णायक भूमिका में हैं। जानकार बताते हैं कि 2 लाख 30 के लगभग मतदाता हैं। इनमें लगभग 1 लाख मतदाता गोंड समाज से और 60 हजार से अधिक कोरकू समाज से हैं।
भाजपा से लगातार 5 बार से विधानसभा चुनाव लड़े और तीन बार जीते और दो बार हारे महेंद्र सिंग चौहान पर छटवी बार भरोसा जताया है। वहीं कांग्रेस की सूची जारी नहीं हुई है। हालांकि कांग्रेस में ऐसा माना जा रहा है कि धरमूसिंह को प्रत्याशी बनाया जा सकता है। लेकिन कांग्रेस का ही एक वर्ग नही चाहता है कि धरमू सिंह को चौथी बार टिकिट मिले।चर्चा यह भी है कि जयस से अगर कांग्रेस का गठबंधन हुआ तो यह सीट जयस के लिए छोड़ी जाएगी। फिलहाल जयस ने मध्यप्रदेश में 40 विधानसभा में एक-एक नाम तय किया है। जयस के जिलाध्यक्ष संदीप धुर्वे ने बताया कि पार्टी उन्हें भैंसदेही से प्रत्याशी बना सकती है।
एक नजर भैंसदेही विधानसभा पर | Political Analysis
1957 में पहली बार भैंसदेही विधानसभा में चुनाव हुए थे जिसमें कांग्रेस के सोमदत्त चुनाव जीते थे। 1962 में यह सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हुई। इस पर महेंद्र सिंह चौहान के दादा दद्दू सिंह जनसंघ से चुनाव जीते थे। 1967 में दद्दू सिंह दुबारा चुनाव जीते। 1972 में जनसंघ ने प्रत्याशी बदल दिया और महेंद्र सिंह के पिता केशर सिंह को टिकट दिया था। तब कांग्रेस के काल्यासिंह चौहान चुनाव जीते थे। 1977 में जनता पार्टी से पतिराम चुनाव जीते।
1980 में केशर सिंह चौहान भाजपा से चुनाव लड़े और जीते। 1985 में कांग्रेस से सतीष सिंह चौहान चुनाव जीते। 1990 में भाजपा से केशर सिंह चुनाव जीते। 1993 से कांग्रेस से गंजनसिंह कुमरे चुनाव जीते। 1998 में भाजपा से महेंद्र सिंह चुनाव जीते। 2003 में महेंद्र सिंह दुबारा चुनाव जीते। 2008 में कांग्रेस से धरमूसिंह चुनाव जीते। 2013 में भाजपा से महेंद्र सिंह चुनाव जीते और 2018 में कांग्रेस से धरमूसिंह चुनाव जीते।इस प्रकार भाजपा के वर्तमान उम्मीदवार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस के धरमू सिंह भी दो बार विधायक निर्वाचित हो चुके हैं। राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि इस बार चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में जयस की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी
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