Pandhurna Gotmar Mela:मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से अलग हुए पांढुर्णा जिले की पहचान हर साल एक अनोखी परंपरा से होती है। यहां सदियों पुराना गोटमार मेला विश्वभर में प्रसिद्ध है। यह मेला पोलास (पोला़) त्योहार के अगले दिन मनाया जाता है, जिसमें पांढुर्णा और सावरगांव के लोग आपस में पत्थरबाजी करते हैं। यह परंपरा 17वीं शताब्दी से चली आ रही है।
गोटमार मेले की शुरुआत
मेले की शुरुआत आज सुबह पलाश के पेड़ के ध्वज की पूजा से हुई। ध्वज को हर साल पहले से चुना जाता है और पोला़ के एक दिन पहले नदी में स्थापित किया जाता है। इसे नारियल, लाल कपड़ा और माला चढ़ाकर पूजा जाता है। पूजा के बाद दोनों गांवों के लोग पत्थरबाजी शुरू कर देते हैं। इसमें खिलाड़ी हाथ से पत्थर फेंकते हैं, जबकि कई लोग रस्सी से बनी फेंकनी (स्लिंग) का इस्तेमाल करते हैं।
प्रशासन की सख्ती और घायल लोग
इस बार प्रशासन ने 600 पुलिसकर्मी, 45 डॉक्टर और 16 एम्बुलेंस तैनात किए थे। इसके बावजूद अब तक 1000 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं। किसी की आंख फूट गई, तो किसी का हाथ-पैर टूट गया। दो गंभीर घायलों को नागपुर रेफर करना पड़ा। आंकड़ों के अनुसार, 1955 से 2023 तक इस मेले में करीब 13 लोगों की मौत हो चुकी है।
गोटमार मेले की कहानी
स्थानीय मान्यता के अनुसार, पांढुर्णा और सावरगांव के बीच यह परंपरा एक प्रेम कहानी से जुड़ी है। कहा जाता है कि सावरगांव की लड़की और पांढुर्णा का युवक प्रेम में पड़कर भाग गए थे। जब गांववालों को पता चला तो उन्होंने उन पर पत्थरों से हमला कर दिया। दोनों की मौत जाम नदी में हो गई। बाद में दोनों गांवों ने उनकी अंत्येष्टि मां चंडिका मंदिर में की और तब से यह परंपरा शुरू हो गई।
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परंपरा में बदलाव की कोशिश
साल 2001 में प्रशासन ने पत्थरों की जगह प्लास्टिक की गेंदों से खेल शुरू करने की कोशिश की थी, लेकिन ग्रामीणों ने इसे नदी में फेंक दिया और फिर से पत्थरबाजी शुरू कर दी।
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