न्यायालय ने प्रशासन की कार्यवाही को सही ठहराया
बैतूल{Nyayalay ne khaarij ki yachika} – चर्चित बूचड़खाना मामले में दायर की गई याचिका न्यायालय ने खारिज कर दी है । याचिकाकर्ता ने प्रशासन की कार्रवाई को गलत ठहराया था । याचिका खारिज होने से साफ हो गया है कि प्रशासन ने जो कार्रवाई की थी वह सही थी ।बैतूल के कोठीबाजार स्थित तिलक वार्ड में पिछले दिनों नगरपालिका और प्रशासन द्वारा अवैध बुचडख़ाने में की गई कार्रवाई को अदालत ने भी सही ठहराया है।
अब बूचड़खाने में अतिक्रमण हटाने का रास्ता हुआ साफ
अब बुचडख़ाने में किया गया अतिक्रमण हटाने का रास्ता भी साफ हो गया है। शेख नसरू पिता शेख याकुब निवासी तिलक वार्ड ने प्रथम व्यवहार न्यायधीश कनिष्ठ खंड माननीय पूजा सिंह मौर्य की अदालत में नगरपालिका अध्यक्ष, सीएमओ बैतूल, नजूल अधिकारी और कलेक्टर को पार्टी बनाकर परिवाद पेश किया था कि उसके तिलक वार्ड स्थित उसके निजी प्लॉट पर प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर मकान ढहा दिया गया था। और शेख नसरू के अपने सीट नंबर 1, प्लॉट नं 17 पर 3 हजार वर्गफीट की जमीन पर स्थित मकान को तोडऩे और उसके पुत्र के विरूद्ध अपराध दर्ज कराया गया। नसरू ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से अदालत को बताया था कि प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई एक तरफा और राजनैतिक दबाव में की है।
गौरतलब है कि उस समय पुलिस द्वारा छापा मारकर गौमांस, चमड़े और गौमाता जब्त की थी। इस आधार पर पुलिस ने उसके पुत्र को आरोपी बनाया था ।नसरू ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से अदालत को बताया था कि पुत्र के खिलाफ झूठी कार्रवाई की गई और नगरपालिका द्वारा नोटिस देकर मकान तोडऩे के लिए कहा गया। यह मकान उसके भाई, बहनों के नाम से है। 7 सितम्बर 2021 को प्रशासन द्वारा कार्रवाई करने और बाद की कार्रवाई को रोकने के लिए याचिका दायर की थी।
लेकिन नगरपालिका और प्रशासन की और से पैरवी कर रहे अधिवक्ता जयदीप रूनवाल ने नपा का पक्ष रखते हुए अदालत को बताया कि प्रशासन की कार्रवाई बिना द्वेष और नियम से की गई है। वादी अपने आधिपत्य के अलावा अन्य शासकीय जमीन पर कब्जा कर बुचडख़ाना संचालित कर रहा था।
विद्वान न्यायधीश माननीय पूजा सिंह ने इस मामले में वादी नसरू की याचिका खारिज करते हुए प्रशासन की कार्रवाई को ठीक बताया। उन्होंने अपने निर्णय में कहा की इस संबंध में स्वयं परिवादीगण द्वारा वादग्रस्त मकान के अतिरिक्त निर्माण को तोड़े जाने संबंधी कार्रवाई करना व्यक्त किया है।उक्त कार्रवाई संपादित भी की जा चुकी है। ऐसी दशा में वादी को अपूर्णीय क्षति होने की संभावना प्रकट नहीं होती और सुविधा का संतुलन भी वादी के पक्ष में होना भी प्रकट नहीं है। अत: प्रथम दृष्टया मामला सुविधा के संतुलन एवं अपूर्णीय क्षति का सिद्धांत वादी के पक्ष में नहीं पाए जाने से निरस्त किया जाता है।