मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रश्नकाल के दौरान बताया कि 1 अप्रैल 2022 से 31 जुलाई 2025 तक राज्य सरकार द्वारा विधायक प्राथमिकताओं की 627 डीपीआर नाबार्ड को स्वीकृति हेतु भेजी हैं। इनमें से 366 पीडब्ल्यूडी की और 261 जल शक्ति विभाग की हैं। लोक निर्माण विभाग की डीपीआर की लागत 3102 करोड़ है। इस दौरान विधायक प्राथमिकता की 2838 करोड़ की 430 योजनाएं स्वीकृत हुई हैं, जबकि 3732 करोड़ की 420 योजनाएं स्वीकृति हेतु नाबार्ड के पास विचाराधीन हैं। इस अवधि में नाबार्ड के अंतर्गत सडक़ों और पुलों की विधायक प्राथमिकताओं के लिए 1684 करोड़ की 245 डीपीआर मंजूर हुई हैं। मुख्यमंत्री भाजपा विधायकों रणधीर शर्मा, विनोद कुमार और सुखराम चौधरी के पूछे सवाल का जवाब दे रहे थे।
मुख्यमंत्री ने बताया कि श्रीनयना्रदेवी विधानसभा क्षेत्र की 13 सडक़ें 127 करोड़ की नाबार्ड को भेजी गई हैं, जबकि इस चुनाव क्षेत्र में नाबार्ड की सीलिंग में सिर्फ 23 करोड़ बैलेंस है। इसमें एक सडक़ स्वीकृत हो जाएगी। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से हाई कोर्ट के हस्तक्षेप से कुछ दिक्कत आई है, इसलिए प्राइवेट जमीन का अब हल्फनामा चाहिए। पांवटा साहिब के विधायक सुखराम चौधरी ने सालवाला से कंडेला सडक़ की डीपीआर को लेकर कहा कि यह 6 साल से नाबार्ड में पेंडिंग है। मुख्यमंत्री ने कहा कि पांवटा साहिब चुनाव क्षेत्र की 94 करोड़ की 8 सडक़ें नाबार्ड को गई हैं और दो स्वीकृत हुई है। इनकी लागत 38 करोड़ है। इस चुनाव क्षेत्र का करीब 15 करोड़ का बैलेंस बचा है।
भाजपा विधायक विनोद कुमार ने आरोप लगाया कि उनकी सडक़ों के बाद गई डीपीआर मंजूर हो गई जबकि देवी धार से शिकारी देवी जैसी जरूरी सडक़ की डीपीआर क्लियर नहीं हुई। मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि 45 करोड़ की तीन डीपीआर इस चुनाव क्षेत्र से गई हैं और दो मंजूर हुई हैं जबकि नाबार्ड में बैलेंस 37 करोड़ बचा है। भाजपा विधायक रणधीर शर्मा ने कहा कि एफसीए प्रक्रिया में डीपीआर फंस रही हैं। इसके लिए सरकार को कुछ करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए डीसी की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई है। जहां तक फॉरेस्ट लैंड पर पहले बन चुकी 2183 सडक़ों का मामला है तो राज्य सरकार कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर कर चुकी है। इसमें फॉरेस्ट राइट्स एक्ट के तहत अनुमति देने के लिए आग्रह किया गया है क्योंकि ये सडक़ें बहुत पहले बन चुकी हैं। अनुपूरक सवाल में कांग्रेस विधायक संजय रतन ने पूछा कि नाबार्ड को भेजी गई डीपीआर की सडक़ यदि किसी और फंड से बना दी जाए तो विधायक को क्या इस प्राथमिकता को रिप्लेस करने का विकल्प मौजूद है? तो मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि गाइडलाइन में इसका प्रावधान नहीं है, लेकिन आपने मामला ध्यान में लाया है, तो इस पर विचार करेंगे। सुखराम चौधरी ने पूछा कि शर्त यह लगाई जा रही है कि पहले स्कीम अप्रूव होगी। उसके बाद एफसीए केस बनेंगे। क्या ऐसा करना जरूरी है? मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि अप्रूवल के बिना एफसीए के केस संभव नहीं है, क्योंकि इससे और देरी हो जाएगी। चुराह से भाजपा विधायक डॉक्टर हंसराज ने तीसा डिवीजन में 87 करोड़ की पेयजल योजना नाबार्ड से प्राथमिकता से करवाने का आग्रह किया। जवाब में मुख्यमंत्री ने बताया कि इस चुनाव क्षेत्र में सिर्फ 24 करोड़ बैलेंस है इसलिए इसका 80 करोड़ की योजना नहीं हो सकती लेकिन इसकी और संभावना देखेंगे और आगे बढ़ेंगे। भाजपा विधायक सुधीर शर्मा ने पूछा कि नाबार्ड से इलेक्ट्रिक बस खरीदने के लिए प्राथमिकता देने का प्रावधान सरकार ने किया है तो क्या इसमें कोई प्रस्ताव आया है? मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि सिर्फ इलेक्ट्रिक बस ही नहीं, बल्कि चार्जिंग स्टेशन के लिए भी प्रावधान किया गया है। अब कोई विधायक प्राथमिकता देगा तो बैलेंस लिमिट के अनुसार इस पर फैसला होगा।
जयराम का आरोप, सिराज से भेदभाव हो रहा
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि आर्थिक संकट के दौर में नाबार्ड और पीएमसी और अन्य फंडिंग एजेंसियों का रोल महत्वपूर्ण हो जाता है लेकिन सिराज की सिर्फ एक डीपीआर गई है और 68 चुनाव क्षेत्र में यह न्यूनतम संख्या है। क्या आपदा प्रभावित इस चुनाव क्षेत्र के लिए भी कुछ काम होगा? मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि भारत सरकार जो पैसा राज्यों को देती है, उससे पहले टैक्स यहां से एकत्रित करती है। नाबार्ड का पैसा भी लोन की तरह है। जहां तक सिराज की बात है तो अब 2023 से अब तक 7 डीपीआर सिराज की बनाई गई हैं। इनका नाबार्ड बैलेंस भी 27 करोड़ है। हमारी सरकार में भेदभाव जैसी कोई चीज नहीं है। इन्हें बल्कि सरकार ने ही छतरी से चेलचौक सडक़ को सीआरएफ में राज्य सरकार की पहली प्राथमिकता के रूप में भेजा है।