NGO funding: मध्य प्रदेश में लगभग 200 से अधिक बाल गृह, बालिका गृह, ओपन शेल्टर, और शिशु गृह, जो वर्तमान में एनजीओ (निजी स्वयंसेवी संस्थाओं) द्वारा संचालित किए जा रहे हैं, अगले वित्तीय वर्ष से केंद्र सरकार की फंडिंग से वंचित हो सकते हैं। भारत सरकार के प्रोजेक्ट एप्रुवल बोर्ड (पीएबी) ने एक प्रस्ताव पेश किया है, जिसमें एनजीओ को मिलने वाली 60 प्रतिशत केंद्र सरकार की फंडिंग बंद करने की बात कही गई है। इसका मतलब यह है कि अब इन संस्थाओं को या तो राज्य सरकार द्वारा संचालित किया जाएगा, या फिर एनजीओ को अपने दम पर सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) फंड और दान के जरिए इनका संचालन करना होगा।
इस फैसले से मप्र के एनजीओ में चिंता की लहर दौड़ गई है, क्योंकि इसका सीधा असर आश्रय गृहों में रहने वाले बच्चों और महिलाओं पर पड़ सकता है। एनजीओ के अधिकारियों ने राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग से अपील की है कि फंडिंग बंद होने से बच्चों को आश्रय मिलने में कठिनाइयाँ आएंगी, जो समाज के कमजोर वर्गों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
राष्ट्रीय बाल आयोग ने भी मप्र के कई आश्रय गृहों में अनियमितताओं की शिकायतें प्राप्त करने के बाद एनजीओ के संचालन की जांच और कार्रवाई की मांग की थी। कई जिलों में अनियमित संचालन की शिकायतों के आधार पर यह प्रस्ताव बनाया गया है, ताकि बच्चों और महिलाओं को सुरक्षित और सुव्यवस्थित आश्रय मिल सके।
मप्र में वर्तमान स्थिति:
- राज्य में 80 सरकारी शिशु और बाल गृह हैं, जिन्हें सरकार स्वयं या अपनी निगरानी में चलाती है।
- इनमें 27 शिशु गृह, 30 चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट और 23 अन्य संस्थाएं शामिल हैं।
- 200 गैर-सरकारी संस्थाओं में से 133 का पंजीकरण सरकार के पास है, जबकि 67 गैर-पंजीकृत हैं।
- इन सभी संस्थाओं से करीब 28,000 बच्चे जुड़े हुए हैं।
- 14 जिलों में हिंसा पीड़ित महिलाओं के लिए शक्ति सदन यानी स्वाधार गृह संचालित किए जा रहे हैं।
- 44 चाइल्ड केयर होम हैं, जिनमें 6 से 18 वर्ष तक के बच्चों का संरक्षण और पुनर्वास होता है।
- 27 शिशु गृहों में 6 वर्ष तक के बच्चों को रखा जाता है, और 8 ओपन शेल्टर होम भी कार्यरत हैं।
- सरकार की इस नई नीति से यह आश्रय गृह अपने संचालन के लिए या तो राज्य सरकार की मदद पर निर्भर रहेंगे या फिर उन्हें अपनी वित्तीय आवश्यकताओं के लिए दान और सीएसआर के माध्यम से धन जुटाना होगा।
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