आईआईटी-नीट की कोचिंग में लागू होगी केंद्र की गाइडलाइन
MP News – भोपाल। केंद्र की गाइड लाइन के अनुसार आईआईटी और नीट की कोचिंग अब 16 साल से कम उम्र के बच्चे नहीं ले सकेंगे। जबकि अधिकांश बच्चे 10 वीं पास होने के बाद दोनों परीक्षा की तैयारी करने के लिए कोचिंग करते हैं। एक नियम इसलिए लागू किया गया है क्योंकि कोचिंग संचालकों द्वारा एक हाल में 100 से 150 बच्चों को बैठा लिया जाता है।
1 हजार से अधिक कोचिंग संस्थान
मप्र में 1 हजार से ज्यादा कोचिंग संस्थान हैं जिनमें करीब 5 लाख बच्चे नीट और आईआईटी जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां करते हैं। इनमें 30 फीसदी ऐसे हैं जो आठवीं या नौवीं पास करने के बाद ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए कोचिंग संस्थानों में एडमिशन ले लेते हैं। अब केंद्र सरकार कोचिंग संस्थानों के लिए नई गाइडलाइन लेकर आई है। इसके मुताबिक 16 साल से कम उम्र के बच्चे कोचिंग संस्थानों में एडमिशन नहीं ले पाएंगे। मप्र के स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने कहा कि केंद्र की गाइडलाइन का मप्र में पूरी तरह से पालन किया जाएगा। राज्य सरकार ये गाइडलाइन लागू करती है तो प्रदेश की कोचिंग में पढ़ रहे 16 साल से कम उम्र के डेढ़ लाख बच्चे इन संस्थानों से बाहर हो जाएंगे। कोचिंग संचालक इस गाइडलाइन को अव्यवहारिक बता रहे हैं। वहीं कुछ पेरेंट्स इसके समर्थन में हैं तो कुछ विरोध में। हालांकि, एक्सपर्ट और साइकोलॉजिस्ट नई गाइडलाइन को सकारात्मक पहल के रूप में देख रहे हैं।
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केंद्र सरकार ने गाइडलाइन क्यों बनाई? | MP News
किसी निर्धारित नीति या रेगुलेशन के अभाव में देश में प्राइवेट कोचिंग सेंटर्स की संख्या बढ़ रही है। छात्रों से ज्यादा फीस वसूलने, कोचिंग संचालकों के गैरजरूरी तनाव देने के चलते छात्रों के खुदकुशी करने, आग और अन्य दुर्घटनाओं के कारण जान जाने की घटनाएं सामने आती रही हैं। इन मुद्दों पर कई बार संसद में बहस हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस मामले में दायर याचिका पर फैसला देते हुए याचिकाकर्ता से कहा था कि वे इस मुद्दे को संबंधित अधिकारियों के सामने उठाएं जो कानून के मुताबिक इस पर विचार कर सकते हैं। संसद में पेश अशोक मिश्रा समिति की रिपोर्ट ने भी प्राइवेट कोचिंग के रेगुलेशन की बात की थी। छात्रों की खुदकुशी के निराकरण के लिए न्यायमूर्ति रूपनवाल जांच आयोग की रिपोर्ट ने भी 12 सुझाव दिए थे। जिसमें कोचिंग सेंटर्स के रेगुलेशन का भी सुझाव था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी सुझाव देती है कि कोचिंग संस्कृति के बजाय सीखने के लिए नियमित रचनात्मक मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
कोचिंग संचालकों की दलील
गाइडलाइन का सबसे अहम पॉइंट है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों को एडमिशन नहीं दिया जाए। यही बात कोचिंग संचालकों के असंतोष की वजह है। ऐसे कोचिंग संस्थान जो दसवीं तक के बच्चों को पढ़ाते हैं उन पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। छोटे शहरों में बोर्ड परीक्षा की तैयारी करने के लिए दसवीं के छात्र कोचिंग संस्थानों पर सबसे ज्यादा निर्भर होते हैं। भोपाल के अशोका गार्डन में दसवीं तक के बच्चों को कोचिंग देने वाले अंकित इस गाइडलाइन को छात्र और शिक्षक दोनों के हित में नहीं मानते। उनका कहना है कि आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले राजस्थान के कोटा में आते हैं। ऐसी पॉलिसी भी कोटा के लिए बनाई जाना चाहिए।
गाइडलाइन का किया विरोध | MP News
हमारे पास स्टूडेंट्स उन विषयों की पढ़ाई करने आते हैं, जिसमें वो या तो कमजोर होते हैं या फिर जिसे ज्यादा प्राथमिकता देते हैं। बड़े-बड़े कोचिंग संस्थान रिजल्ट देने के लिए पढ़ाई के नाम पर बच्चों को घंटों टॉर्चर करते हैं। हम तो 9वीं और दसवीं तक के बच्चों को उन विषयों को पढ़ाते हैं, जिस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। 16 साल से कम उम्र के बच्चों के कोचिंग पर पाबंदी होगी, तो हम तो पूरे बर्बाद हो जाएंगे। यह गाइडलाइन हमारे पेट पर लात मारने जैसी है।
तो नहीं कर पाएंगे तैयारी
ऐसे कोचिंग संस्थान जो 9 वीं और 10 वीं कक्षा से ही नीट और आईआईटी की तैयारियां करवाते हैं वे इस मामले में कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। भोपाल के एमपी नगर में नीट-आईआईटी की तैयारी करवाने वाले एक कोचिंग संचालक ने कहा कि इन परीक्षाओं की तैयारी करने वाले ज्यादातर छात्र 14 से 16 साल की उम्र के ही होते हैं। ऐसे में तो वो कोचिंग से इन परीक्षाओं की तैयारी ही नहीं कर पाएंगे। जहां तक बीच कोर्स में फीस लौटाने या घंटों की सीमा तय करने की बात है, उससे हमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन उम्र सीमा जैसे पॉइंट में संशोधन करना चाहिए।
एक्सपर्ट बोले- सकारात्मक बदलाव है | MP News
शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ इसे एक बड़ा सकारात्मक बदलाव मानते हैं। हालांकि, उनका कहना है कि गाइडलाइन जारी होने के बाद एक जेनरेशन का नुकसान हो सकता है। वहीं उनका ये भी कहना है कि किशोरावस्था में बच्चे जिस दबाव से गुजर रहे हैं। उन्हें इससे बाहर निकालना भी जरूरी है। स्कूल शिक्षा पर काम करने वाली संस्था सोहम के संस्थापक संजय कुमार कहते हैं कि कोचिंग संस्थान अपना बाजार बढ़ाने के लिए अभिभावकों को एक सपना दिखाते हैं। पेरेंट्स उन सपनों को अपने बच्चों पर थोपते हैं। बच्चों की चाहे उस विषय में रुचि हो या ना हो, उसे उससे जूझना पड़ता है। जो गाइडलाइन आई है, ये समय की मांग थी क्योंकि किशोरावस्था में ये मानसिक दबाव किसी टॉर्चर से कम नहीं होता। जहां तक कोचिंग संस्थानों का विरोध का सवाल है तो वे कहते हैं कि कोचिंग संचालक इसका विरोध करेंगे ही क्योंकि वे इसके एवज में मोटी फीस वसूल करते हैं।
स्कूल में नहीं होती अच्छी पढ़ाई
अभिभावक राधेश्याम गुप्ता भोपाल में एक किराना दुकान चलाते हैं। वे अपनी 14 साल की बेटी को कोचिंग से वापस लाने जा रहे थे। उनसे केंद्र की इस नई गाइडलाइन के बारे में पूछा तो उन्होंने पलट कर सवाल पूछा- फिर कौन पढ़ाएगा? वे बोले- स्कूल जाना तो इसलिए जरूरी है कि आगे की डिग्री का रास्ता वहीं से होकर जाता है। पढ़ाई में जो असल समस्याएं हैं, वह तो कोचिंग वाले ही दूर करते हैं। केंद्र की गाइडलाइन को लेकर बोले कि सरकार को इस पर विचार करना चाहिए। यदि स्कूल से ही अच्छी पढ़ाई हो जाती तो हम कोचिंग पर पैसा बर्बाद क्यों करते?
बहुत होगी दिक्कत | MP News
वहीं कोचिंग पढऩे वाले स्टूडेंट से इस बारे में पूछा तो कुछ छात्र इससे सहमत नजर आए लेकिन कुछ का कहना था कि गाइडलाइन में बदलाव होना चाहिए। दसवीं में पढऩे वाली सुहानी कहती है कि यदि गाइडलाइन लागू होती है तो बहुत दिक्कत आएगी। वह कहती है कि स्कूल में बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। टीचर सभी बच्चों के सवालों का जवाब नहीं देते। कोचिंग के जरिए वह कमजोर विषयों पर ध्यान दे पाती हैं। सुहानी कहती है कि स्कूल में तो केवल सिलेबस खत्म करने पर पूरा फोकस होता है। वहीं कोचिंग संस्थान बोर्ड एग्जाम में आने वाले सवालों को ध्यान में रखकर ही तैयारी करवाते हैं।
मनोचिकित्सक बोले- पेरेंट्स को भी समझना पड़ेगा
नई गाइडलाइन को लेकर पेरेंट्स और स्टूडेंट्स की अपनी राय है। इसे लेकर मनोचिकित्सक का कहना है कि स्टूडेंट्स को समस्याएं तो आएगी, लेकिन आने वाले दिनों में स्कूली शिक्षा बेहतर होने की संभावना है। मनोचिकित्सक डॉ. रचना कहती हैं कि बच्चों को कोचिंग भेजने और स्कूल पर दोष मढऩे की बजाय पेरेंट्स को आगे आकर स्कूली शिक्षा को बेहतर करने के लिए पहल करना चाहिए। अगर इस दिशा में वे प्रयास करेंगे तो कोचिंग की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। वे कहती हैं कि क्या कोचिंग से पहले लोग इंजीनियर और डॉक्टर नहीं बने हैं? कोचिंग पर जब इस तरह की पाबंंदियां होंगी और बच्चों की निर्भरता स्कूल पर बढ़ेगी, तो स्कूली शिक्षा भी बेहतर होगी। वे कहती हैं कि इसके कुछ सकारात्मक नतीजे आने वाले समय में दिखेंगे।
नई गाइडलाइन में 10 दिन में फीस लौटाने का प्रावधान | MP News
राष्ट्रीय सांख्यिकी सर्वे ऑफिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मध्यम वर्गीय परिवार अपनी मासिक कमाई का करीब 15 फीसदी कोचिंग फीस के रूप में खर्च करते हैं। कोचिंग संस्थान छात्रों से एकमुश्त फीस लेते हैं। बीच में कोई बच्चा कोर्स छोड़ कर जाता है तो उन्हें पैसे वापस नहीं किए जाते हैं। यदि पेरेंट्स का ट्रांसफर भी होता है तो फीस नहीं लौटाई जाती। आकाश इंस्टीट्यूट और फीटजी जैसे कोचिंग संस्थानों की शिकायतें उपभोक्ता फोरम में दर्ज हो चुकी है। कंज्यूमर कोर्ट ने इन संस्थानों को फीस वापस करने का फैसला भी सुनाया है। एक्सपर्ट कहते हैं कि पेरेंट्स भी बहुत कम शिकायतें करते हैं। नई गाइडलाइन के मुताबिक अब कोचिंग संस्थानों को दस दिनों में ही फीस लौटाना होगी। जो सही फैसला है। साथ ही कोई कोचिंग संस्थान गाइडलाइन का उल्लंघन करता है तो उसे जुर्माना भी देना पड़ेगा। साभार…
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