कैलेंडर से बदला विक्रम संवत खत्म करने का 69 साल पुराना फैसला
MP News – भोपाल – प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एतिहासिक फैसला लेते हुए मध्य प्रदेश के शासकीय कैलेंडर में विक्रम संवत को शामिल कर दिया है। 69 साल पहले भारत सरकार के एक फैसले में विक्रम संवत को हटाने का निर्णय हुआ था, और शक व ईशवी संवत को कैलेंडर में शामिल किया था। अब मध्यप्रदेश में नए शासकीय कैलेंडर में विक्रम संवत भी होगा।
डॉ. मोहन सरकार के इस फैसले के बाद एक जनवरी से लागू वर्ष 2024 के लिए जो शासकीय कैलेंडर प्रिंट हुए हैं। उसमें देश के सबसे पुराने विक्रम संवत का उल्लेख कर दिया है। सरकार द्वारा प्रिंट कराए गए कैलेंडर में ईशवी सन और शक संवत को हटाया नहीं गया है पर उसमें विक्रम संवत का उल्लेख किया है। मुख्यमंत्री बनने के बाद डॉ. यादव ने अपने संबोधनों में साफ कर दिया था कि उज्जैन और विक्रमादित्य से संबंध रखने वाली हर बात को जन-जन तक पहुंचाने का काम किया जाएगा और इसका ताजा रिजल्ट शासकीय कैलेंडर में दिखाई भी दिया है।
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विक्रमादित्य शोध संस्थान के निदेशक डॉ. श्रीराम तिवारी ने बताया कि देश की आजादी के पहले जो भी कैलेंडर हिन्दुस्तान में छपते रहे हैं उसमें विक्रम संवत का उल्लेख रहता आया है। विक्रम संवत का महत्व इतना है कि काल गणना, ज्योतिष समेत हिन्दुस्तान के प्राचीन धार्मिक महत्वों में इसका उल्लेख होता रहा है। देश का संविधान बनाने वाले संविधान सभा ने भी जब नवंबर 1949 में संविधान तैयार किया था तो उसमें भी ईशवी सन और शक संवत के साथ विक्रम संवत का जिक्र था।
1955-56 की कमेटी ने लिया था विक्रम संवत हटाने का निर्णय | MP News
निदेशक डॉ. श्रीराम तिवारी ने कहा कि वर्ष 1955-56 में केंद्र सरकार द्वारा गठित की गई कमेटी ने कैलेंडर से विक्रम संवत हटाने को कहा था। इसके बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने कैलेंडर से विक्रम संवत हटाने का फैसला किया और यह राज्यों में भी लागू हुआ।
यह चूंकि केंद्र सरकार का अधिकार है कि शक संवत और ईशवी सन को हटाया जाए या नहीं, इसलिए एमपी सरकार ने इस फैसले को स्वीकार करते हुए एमपी के कैलेंडर में विक्रम संवत छापने का फैसला किया है। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि प्राचीन गौरव की पुनर्स्थापना जरूरी है।
शक और ईशवी विदेशी आक्रामकों से संबंधित | MP News
तिवारी ने कहा कि कैलेंडरों में जो शक संवत और ईशवी सन का उल्लेख है वह विदेशी आक्रांताओं से संबंध रखने वाला है। अंग्रेजों, शूणों ने देश में आक्रमण कर अपना कैलेंडर लागू किया था। इसे बदलने की जरूरत सरकार ने महसूस की है, और इसलिए यह बदलाव किया है।
राजा विक्रमादित्य के प्रमाणों से संबंधित उन्हें पुख्ता करने के लिए समय-समय पर उज्जैन के पुराविद डॉ. श्याम सुंदर निगम, डॉ. भगवती लाल राजपुरोहित, डॉ. नारायण व्यास, डॉ. आरसी ठाकुर एवं डॉ. रमन सोलंकी द्वारा लगातार उज्जैन सहित अनेक स्थानों पर विक्रमादित्य से संबंधित कई प्रमाण खोजे गए और लगभग 18 पुस्तक राजा विक्रमादित्य के महान पराक्रम को लेकर पुस्तकें छापी गईं। बताया जाता है कि इन पुस्तकों को प्रकाशित करने में सीएम डॉ. मोहन यादव का पूरा सहयोग रहा है। (साभार)
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