दोनों हो गए पूर्व मुख्यमंत्री और रह गए मात्र विधायक
MP News –भोपाल(ब्यूरो) – इसलिए कहते हैं कि राजनीति बहुत बुरी चीज है। समय अच्छा होता है तो नेता फर्श से अर्श पर और समय खराब हो जाते अर्श से फर्श पर आने में देर नहीं लगती है। ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश की राजनीति में देखने को मिल रहा है। जहां पिछले पांच सालों से भाजपा और कांग्रेस के सर्वसर्वा विधानसभा चुनाव संपन्न होते ही लूप लाइन में चले गए हैं। और इसे संयोग कहे कि सरकार बनने पर इन दोनों में से एक का मुख्यमंत्री बनना तय बताया जा रहा था। जबकि ये दोनों चर्चित चेहरे विधानसभा में तो पहुंच गए हैं लेकिन नेता विधायक दल बनने से वंचित हो गए।
18 साल के सीएम अब रह गए विधायक
2005 में बाबूलाल गौर के इस्तीफे के बाद नए चेहरे के रूप में विदिशा के सांसद शिवराज सिंह चौहान को भाजपा ने मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था। उसके बाद 2008 और 2013 के चुनाव में पार्टी को विजयश्री हासिल हुई और दोनों ही बार एकमात्र दावेदार के रूप में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में सरकार नहीं बन पाई और शिवराज सिंह चौहान को 15 महीने तक इंतजार करना पड़ा।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों के विद्रोह के बाद 23 मार्च 2020 को पुन: शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बनाए गए। 2023 के विधानसभा चुनाव में वैसे तो भाजपा ने किसी चेहरे को आगे नहीं लगाया था लेकिन यह भी लगभग तय था कि बहुमत आने पर शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री हो सकते हैं इसलिए अंतिम क्षणों में इनकी पारंपरिक सीट बुदनी विधानसभा से टिकट दी और यह विधायक निर्वाचित हो गए।
लेकिन 2023 के इस चुनाव में अप्रत्याशित रूप से बम्फर बहुमत आने के बावजूद जब विधायक दल का नेता चुनने की बारी आई तो भाजपा हाईकमान ने एक बार फिर चौंकाते हुए उज्जैन के दो बार के विधायक डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया।
और उसके बाद यह कयास लगाए गए कि शिवराज सिंह चौहान को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया जाएगा लेकिन अभी तक उन्हें ऐसा कोई पद नहीं दिया गया है और मीडिया की माने तो उन्हें दक्षिण भारत के राज्यों में लोकसभा चुनाव के दृष्टिगत पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई है। और इसे राजनैतिक समीक्षक शिवराज सिंह चौहान को मध्यप्रदेश की सक्रिय राजनीति से दूर करना बता रहे हैं। फिलहाल श्री चौहान अब सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री और विधायक रह गए हैं।
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शिवराज के बदले सुर | MP News
जैसे ही भाजपा को इस चुनाव में बहुमत मिला वैसे ही शिवराज सिंह चौहान ने इसका प्रमुख श्रेय उनके द्वारा लागू की गई लाडली बहना योजना को दिया था। इसके साथ ही उन्होंने भाजपा हाईकमान को एक तरह से चैलेंज करते हुए यह कह दिया था कि वे दिल्ली नहीं जाएंगे। और कुछ मांगने से बेहतर मरना पसंद करेंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि बहनों के प्यार के आगे इंद्र का सिंहासन भी छोटा है। इसके बाद गत दिवस भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बुलाने पर शिवराज सिंह चौहान दिल्ली पहुंचे और वहां से आने के बाद उनके सुर ही बदल गए। मीडिया से 56 सेकेंड की चर्चा में उन्होंने 5 बार कहा कि जो पार्टी कहेगी वही करेंगे।
कमलनाथ बन गए थे भावी सीएम
जिस तरह से कांग्रेस में चाटुकारिता की राजनीति का हमेशा बोलबाला रहा है उसी परिपेक्ष्य में विधानसभा चुनाव के 10 महीने पहले ही पूरे प्रदेश में कांग्रेस के विधायकों और नेताओं ने कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रचारित कर होर्डिंग्स लगवा दिए थे। जिससे यह बताने का प्रयास किया जा रहा था कि नए साल में नई सरकार आ रही है जिसके मुख्यमंत्री कमलनाथ होंगे।
यहां तक की मतगणना के एक दिन पहले भी 2 दिसम्बर को भोपाल में कमलनाथ को बधाईयों का होर्डिंग लग गया था और यह बताया गया था कि जनता का साथ फिर आ रहे कमलनाथ। वैसे भी पिछले 6 माह से मीडिया के सभी सर्वे यह बता रहे थे कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने की पूरी संभावना है। और सरकार बनती तो सिर्फ कमलनाथ ही मुख्यमंत्री निर्वाचित होते क्योंकि उन्हीं को सामने रखकर पूरा चुनाव लड़ा गया था। लेकिन 230 में से 63 विधायक निर्वाचित होने पर कांग्रेस के साथ-साथ कमलनाथ के अरमानों का भी चकनाचूर हो गया।
सीएम भी नहीं और अध्यक्ष पद भी छिना | MP News
जहां कमलनाथ अपने आप को मुख्यमंत्री मानकर चुनावी सभाओं में भी जिस तरह से अधिकारियों और विशेषकर पुलिसकर्मियों को धमकाते थे वहीं बैतूल जिले सहित मध्यप्रदेश के लगभग सभी जिलों के कांग्रेस के प्रमुख प्रत्याशी अपने आप को मंत्री मानकर विभागों के बंटवारे में लग गए थे। लेकिन चुनाव परिणाम के बाद सबकी हवा निकल गई और न तो कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष का पद मिला और नहीं वह मुख्यमंत्री बन पाए।
यहां तक की उनको बगैर बताए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से उनको हटाकर उनके किसी कट्टर समर्थक को अध्यक्ष ना बनाते हुए जित्तू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी गई। फिलहाल कमलनाथ अब सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री और विधायक रह गए हैं। वैसे चर्चा यह भी है कि कमलनाथ छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और राज्य की राजनीति से स्थायी रूप से दूरी बना लेंगे।
चलो-चलो में निकल गई थी सरकार
वर्ष 2018 में मध्यप्रदेश की जनता ने कांग्रेस को बहुमत देकर सत्ता नसीब कराई थी लेकिन इस सत्ता को कांग्रेस और उनके मुख्यमंत्री कमलनाथ संभाल ही नहीं पाए। कमलनाथ का परमानेंट जुमला चलो-चलो के चक्कर में जहां कांग्रेस सरकार प्रदेश से चली गई वहीं दुबारा चुनाव में कांग्रेस की और बुरी गत हो गई।
गौरतलब है कि एक मामले में उस समय के कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि मैं आप लोगों की समस्या के लिए सडक़ पर उतर जाऊंगा तो कमलनाथ ने मीडिया के पूछने पर जवाब दिया कि सडक़ पर उतर जाएं किसने रोका है, और वास्तव में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की तत्कालिन कमलनाथ सरकार को सडक़ पर ला दिया था।
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