बहुत कम समय में हो जाता है तैयार
Goat Farming – दूध की मांग में बदलाव आ रहा है। पिछले कुछ दशकों में, बकरे-बकरी को सिर्फ मांस के लिए पाला जाता था। क्योंकि इससे कोई धार्मिक संबंध नहीं था, इसलिए उनका मांस अधिक खाया जाता था। बकरी पालकों के लिए सबसे बड़ी बात यह है कि उनको पालने के बाद छह महीने बाद बकरा मुनाफा देने के लिए तैयार हो जाता था। लेकिन अब बकरे-बकरी का यही सिस्टम दोहरा फायदा पहुंचा रहा है। अब उनका दूध भी महत्वपूर्ण हो रहा है। देश के साथ-साथ विदेशों में भी बकरे के मांस की मांग बढ़ रही है।
मीट उत्पादन में भारत का स्थान | Goat Farming
मीडिया रिपोर्ट्स के प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में सभी प्रकार के पशुओं का कुल मीट उत्पादन 9.77 मिलियन टन है, जो सरकारी आंकड़ों में दर्शाया गया है। घरेलू बाजार में मीट की बिक्री के अनुसार, यह आंकड़ा और भी अधिक हो सकता है। सबसे अधिक मीट उत्पादन यूपी, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में होता है। केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत मीट उत्पादन में नंबर 8 पर है।
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अपने क्षेत्र के अनुसार रखें नस्ल
अपने क्षेत्र के हिसाब से, उपलब्ध बकरे और बकरियों की नस्लों को पालना चाहिए। यही नस्ल सही रूप से विकसित होगी। मीट के लिए पसंदीदा और पाले जाने वाले बकरों की कुछ मुख्य नस्लें हैं, जैसे कि बरबरी, जमनापरी, जखराना, ब्लैक बंगाल, सुजोत। इन्हें पालने से दोहरी आय मिलती है, क्योंकि बरबरी, जमनापरी और जखराना नस्ल की बकरियां दूध भी अच्छे प्रमाण में देती हैं।
लौटकर आते थे कंसाइनमेंट | Goat Farming
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार निर्यात के दौरान, बकरे के मीट की केमिकल जांच की जाती थी। कई बार ऐसा होता था कि मीट कंसाइनमेंट लौटकर आते थे। इसका कारण था कि बकरों को जिन चाराग्रास को खिलाया जाता था, वहां पेस्टीसाइड का इस्तेमाल होता था। लेकिन अब सीआईआरजी ने ऑर्गेनिक चाराग्रास की खेती शुरू कर दी है। इस चारे को बकरे भी खाते हैं। जब उनके मीट की जांच की गई, तो उसमें वह केमिकल नहीं मिले जिनकी पहले शिकायतें थीं। हमारे संस्थान में इस पर विभिन्न प्रकार की रिसर्च जारी हैं।
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