भारत का पहला क्राफ्ट विलेज है टिगरिया
बैतूल – Germany Me Betul Ka Artwork – देश में क्राफ्ट विलेज के रूप में पहचान बनाने वाला बैतूल का टिगरिया गांव की पहचान भरेवा कला को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो गई है। यहां की कलाकृति विदेशों में भी खासी पसंद की जा रही है। यही कारण है कि भारत आने वाले विदेशी पर्यटक टिगरिया से स्मृति के रूप में भरेवा शिल्प की कलाकृतियां अपने साथ ले जाना नहीं भूलते हैं।

आज जर्मनी से भारत आए पर्यटक टिगरिया पहुंचे और यहां पर उन्होंने भरेवा शिल्प से तैयार पांच धातु की कलाकृति पसंद की और कुछ खरीदकर भी ले गए। उन्होंने यहां बांस की कारीगरी भी देखी और उसकी सराहना भी की।

दो कैंडल स्टैंड ले गए जर्मनी(Germany Me Betul Ka Artwork)
भरेवा शिल्प के शिल्पकार बलदेव बागमारे ने बताया कि आज जर्मनी से भारत भ्रमण पर आई मिस. मोयरी, हिरजा स्वैब और एक अन्य महिला पाढर की महिला डॉक्टर के साथ ग्राम टिगरिया पहुंची और उन्होंने भरेवा शिल्प से तैयार पांच धातु के दो कैंडल स्टैंड जो महिला के रूप में और एक ऊंट के रूप में बने हैं उन्हें खरीदकर अपने साथ जर्मनी ले गईं। इन विदेशी महिलाओं ने भरेवा शिल्प की मुक्तकण्ठ से सराहना की। साथ ही यहां बांस से बनने वाली कलाकृतियां भी पसंद की। एक झूले का आर्डर भी दिया गया है। श्री वाघमारे ने बताया कि यह तीनों महिलाएं पाढर आईं हुई थी और आज वापस जा रही थी उसके पहले वह टिगरिया पहुंची थीं।

ऐसे मिली क्राफ्ट विलेज की पहचान(Germany Me Betul Ka Artwork)
टिगरिया गांव भरेवा समाज का गांव माना जाता है। और यहां पारंपरिक रूप से भरेवा शिल्प का कार्य भी किया जाता है। बदलेव वाघमारे एक ऐसे शिल्पकार है जिन्हें यह कला विरासत में मिली है। पहले उनके दादा-परदादा और पिता यह कार्य करते थे। इसके बाद उन्होंने अपनी पुश्तैनी पहचान को बरकरार रखने के लिए 1998 से यह कार्य शुरू किया था। इसके बाद इनके द्वारा बनाई गई कलाकृति प्रदेश और देश स्तर पर आयोजित कई बड़े प्रर्दशनियों में शामिल की गईं। बलदेव वाघमारे और उनके साथियों को नेशनल और स्टेट अवार्ड भी मिले हैं। यही कारण है कि भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय ने टिगरिया गांव को भारत के पहले क्राफ्ट विलेज का दर्जा दिया है।

कई देशों में गई हैं कलाकृतियाँ
बलदेव वाघमारे ने सांध्य दैनिक खबरवाणी को बताया कि देश के कई स्थानों से लोग भरेवा शिल्प की कलाकृतियां लेने आते हैं। इसके साथ ही विदेशों में भी भरेवा शिल्प खूब पसंद की जाती है। श्री वाघमारे ने बताया कि अभी तक अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, दुबई, आस्ट्रेलिया और कई देशों में यहां की कलाकृतियां गईं हैं। इसके पहले मोर चिमनी को लोगों ने काफी पसंद किया था और इसकी काफी डिमांड थी।