लेयर पोल्ट्री: अंडा देने वाली मुर्गियों का पालन करके कमाओ लाखो रूपये, जानिए इस व्यवसाय से कितना होगा लाभ।

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सरकार देश के साथ-साथ देशवासियों को आत्मनिर्भर बनाने पर भी फोकस कर रही है. सरकार का मुख्य फोकस कृषि क्षेत्र पर है, जिसमें रोजगार और व्यवसाय के लिए कई नए अवसर हैं. भारत में लेयर पोल्ट्री फार्मिंग का व्यवसाय काफी लाभकारी है, क्योंकि लोग साल भर अंडे खाते हैं और इसकी मांग साल भर बनी रहती है. इस व्यवसाय से बेहतर मुनाफा कमाया जा सकता है जो एक अच्छी और नियमित आय का स्रोत बना सकता है. मगर सही जानकारी और तकनीकों के साथ लेयर मुर्गी पालन करना सबसे जरूरी है. यहां जानकारी दे रहे हैं लेयर पोल्ट्री फार्मिग यानी अंडे देने वाली मुर्गियों के बारे में. 

अंडा देने वाली मुर्गी की नस्लें

कृषि विज्ञान केंद्र,आजमगढ़, उत्तर प्रदेश के हेड और पोल्ट्री विशेषज्ञ, डॉ एल.सी.वर्मा ने बताया कि व्यावासायिक रूप से लेयर पोल्ट्री का काम करना चाहते हैं, तो इसे केज पद्ति से कर सकते हैं. इसके अलावा विछावन विधि से छोटे स्तर पर मुर्गी पालन किया जाता है. लेयर मुर्गियां दो प्रकार की होती हैं. पहला व्हाइट लेइंग हेन ग्रुप मुर्गियां, जिनकी खासियत है कि दूसरी मुर्गियों की तुलना में आकार में सामान्य से छोटी और आहार कम खाती हैं. इनके अंडे खूबसूरत सफेद रंग के होते हैं. इस ग्रुप की मुर्गियों में ईसा व्हाइट, लेहमान व्हाइट, निकचिक, बाब कॉक प्रमुख नस्लें हैं.

दूसरा ग्रुप ब्राउन लेइंग हेन है, जिसमें लेयर मुर्गियों के अंडे भूरे रंग के होते हैं और वे बड़े होते हैं. ये सफेद अंडे देने वाली लेयर मुर्गियों की तुलना में अधिक भोजन खाती हैं. ब्राउन लेइंग हेन की मुख्य नस्लें ईसा ब्राउन, हाय  ब्राउन, लेहमैन ब्राउन, गोल्ड लाइन, हावर्ड ब्राउन होती हैं.

चूजा खरीदते समय रखें ध्यान

डॉ एल.सी.वर्मा का कहना है कि चूजों को खरीदते समय इस बात का ध्यान देना चाहिए कि हेल्दी चूजे का वजन 35-40 ग्राम से अधिक होना चाहिए. चूजे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त होने चाहिए. इसका टीकाकरण करना जरूरी  है क्योंकि समय पर टीकाकरण करने से चूजों के शरीर में रोग प्रतिरोध शक्ति बढ़ती है. हमेशा एक विश्वसनीय हेचरी से चूजा खरीदना चाहिए. इन चूजों को चार महीने पालने के बाद 16 हफ्ते के बाद यह अंडे देना शुरू कर देते हैं. चूजों के अच्छे विकास के लिए आपको जन्म से लेकर चार से पांच सप्ताह की आयु तक विशेष देखभाल करनी होती है, जिसे हम ब्रूडिंग स्टेज कहते हैं.

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इस अवस्था में खाने और पीने के अलावा उचित तापमान की जरूरत होती है. दो सप्ताह के बाद चूजों को कैल्शियम का दो फीसदी का घोल देना चाहिए. यह अवस्था छह सप्ताह तक रहती है, क्योंकि चूजे इस अवस्था तक अपने शरीर का तापमान खुद नियंत्रित नहीं कर सकते. इनके शरीर के विकास के लिए पर्याप्त प्रोटीन और ऊर्जा की जरूरत होती है.

कैसे करें पालन और कितना दें आहार?

लेयर मुर्गी पालन में छह सप्ताह आयु के बाद चूजे शरीर के तापमान को नियंत्रित कर सकते हैं, जिसे ग्रोवर अवस्था कहा जाता है. इससे पहले उन्हें ग्रोवर फीड दिया जाता है, जो कम खर्चीला होता है. इस समय अच्छे शारीरिक विकास के लिए उचित आहार प्रबंधन करना चाहिए, ताकि आने वाले समय में उनकी अंडा उत्पादन क्षमता प्रभावित नहीं हो सके.

इसी अवस्था में चोंच काटने का काम भी किया जाता है और चार महीने के बाद नब्बे फीसदी मुर्गियां अंडे देने के लिए लेयर स्थान पर स्थानांतरित कर दी जाती हैं. मुर्गियों की स्वास्थ्य स्थिति को नियमित रूप से चेक किया जाना चाहिए कि वे ठीक हैं या नहीं. आम तौर पर एक प्रति ब्राउन लेगहॉर्न मुर्गी प्रति दिन 120  ग्राम और एक व्हाइट लेग हेन मुर्गी, ब्राउन लेग हॉर्न मुर्गी प्रतिदिन 105 दाना खाती है और प्रतिदिन एक अंडा देती है.

लेयर मुर्गियों के बिजनेस का गणित

डॉ एल.सी.वर्मा वर्मा के अनुसार, एक चूजे से लेकर अंडे के उत्पादन तक की पूरी प्रक्रिया में 4 महीने लगते हैं. लेकिन एक मुर्गी 6 महीने के बाद अच्छी संख्या में अंडे देना शुरू कर देती है. एक मुर्गी साल भर 300 -310 अंडे देती है. इसके बाद लेयर मुर्गियों को फार्म से हटा देना चाहिए क्योंकि व्यवसायिक दृष्टिकोण से इन मुर्गियों से अंडा उत्पादन लेना फायदेमंद नही रहता हैं. डॉ  वर्मा के अनुसार एक अंडा तैयार करने में करीब 3.50 रुपये का खर्च आता है और यह बाजार में 4.50 रुपये तक बिकता है. यानी एक अंडे से सीधे 1.0 रुपये की बचत होती है. अगर आप केज तकनीक से 10,000 लेयर बर्ड फार्म शुरू करते हैं तो फार्म शुरू करने के 4 महीने बाद आपको रोजाना करीब 10,000 रुपये की आमदनी होगी. इस तरह आप एक महीने में तीन लाख रुपये तक कमा सकते हैं.

मुर्गी पालन में बैंक करते हैं सपोर्ट

डॉ एल.सी.वर्मा ने बताया कि केज सिस्टम से 10 हजार पोल्ट्री फार्मिंग के प्रोजक्ट के लिए एक एकड़ जमीन की जरूरत होती है. इसका लेयर फार्म बनाने के लिए लगभग 70 -80 लाख खर्च होता है. इस पर सरकार की तऱफ से लोन की सुविधा भी मिलती है जिसमें कम से कम 30 फीसदी स्वयं का योगदान देना होता है और बाकी बैंक से लोन मिलता है.