हेलमेट मैन बना रघुवीर! 60 हजार से ज्यादा लोगों को फ्री में बांट चूका हेलमेट, वजह जानकर सल्यूट मारने का करेगा मन, हेलमेट की अहमियत को शायद ही कोई उस शख्स से बेहतर समझ सकता है जिसने सब कुछ बेचकर 60 हजार से ज्यादा लोगों को मुफ्त हेलमेट बांटे हैं. दरअसल, 10 साल पहले अपने दोस्त की मौत ने रघुवीर कुमार की जिंदगी पूरी तरह बदल दी थी. कॉरपोरेट जगत में काम कर परिवार का पालन करने वाले रघुवीर ने बिना सोचे समझे हेलमेट नहीं लगाने वाले बाइक सवारों को हेलमेट बांटने का काम शुरू कर दिया.
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फ्री में हेलमेट क्यों बांटते है रघुवीर, जानिए वजह…
रघुवीर उस दिन को याद करते हुए कहते हैं, “मेरे दोस्त कृष्णा कुमार बहुत गरीब परिवार से थे. वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए नोएडा आए थे. परिवार बहुत मुश्किल से खर्च चला पा रहा था. उसी दौरान कृष्णा बिना हेलमेट के बाइक लेकर नई बनी एक्सप्रेस-वे पर चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया. उसकी एक्सीडेंट हो गया और कुछ ही दिनों में इलाज पर परिवार वालों ने लाखों रुपये खर्च कर दिए. फिर भी निराशा ही हाथ लगी.”
रघुवीर भावुक होते हुए बताते हैं कि कृष्णा ही परिवार का चिराग था, आंखों में आंसू लिए परिवार के सदस्य बहुत ही खराब हालत में थे. कृष्णा और मैं साथ रहते थे, मैं उससे बहुत प्यार करता था. मैंने उसी वक्त फैसला किया कि मैं हेलमेट बांटूंगा, ताकि किसी और के घर का चिराग ऐसे ही न बुझ जाए.
भारत के हेलमेट मैन के नाम से पहचाने जाने वाले रघुवीर अब तक 22 राज्यों में 60,000 से ज्यादा लोगों को हेलमेट दे चुके हैं. उन्होंने नौकरी छोड़ने के बाद अपने बीवी-बच्चे को गांव ले गए, जहां खेती से परिवार का पालन होता है. शहर में अपना घर बेच दिया, गांव की पैतृक जमीन बेची और कुछ जेवर भी बेच डाले. फिर निकल पड़े अपने लक्ष्य की तरफ – लोगों को हेलमेट बांटना.
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हाईवे पर बिना हेलमेट वालों को ढूंढते हैं रघुवीर
रघुवीर सरकारी क्वालिटी चेक किए हुए हेलमेट 1000-1200 रुपये में खरीदते हैं क्योंकि वह थोक में खरीदते हैं. फिर चाहे हाईवे हो या कोई दूसरी सड़क, अगर उन्हें कोई बिना हेलमेट वाला दिख जाता है, तो वह गाड़ी में रखा हुआ हेलमेट निकालकर उसे देते हैं और साथ ही भविष्य में बिना हेलमेट बाइक न चलाने का आग्रह भी करते हैं. उनके इस काम की सराहना उत्तराखंड सरकार भी कर चुकी है.
बिहार के कैमूर जिले के रहने वाले रघुवीर का कहना है कि अब तक मेरी इस पहल से कई लोगों की जान बच चुकी है. वह अपना एक अनुभव भी हमारे साथ साझा करते हैं. नौकरी छोड़कर समाजसेवा में आने के बाद अपने परिवार की चिंताओं के बारे में पूछने पर वह तुरंत कहते हैं, “काश मैं पैसे देकर स्कूल में एडमिशन करा पाता. लेकिन उत्तराखंड के कई स्कूल मेरे बच्चे को मुफ्त में पढ़ाने के लिए कह रहे हैं. समाज यही तो होता है. आप किसी और के लिए काम करते हैं तो भगवान आपके लिए भी कोई और खड़ा कर देता है. शुरुआत में घरवालों को सवाल जरूर उठाते थे, लेकिन अब वह भी साथ आ गए हैं.”
हेलमेट बैंक बनाने की योजना
जागरुकता फैलाने के लिए कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में हेलमेट पहनने वाले रघुवीर की भविष्य में हेलमेट बैंक बनाने की भी योजना है. वह इसे यूनिवर्सिटी में शुरू करना चाहते हैं, जहां छात्र अपनी आईडी देकर हेलमेट ले सकें और फिर इस्तेमाल करने के बाद वापस कर दें