गुटबाजी और बाहरी नेताओं के दखल से गर्त में पहुंची कांग्रेस
बैतूल। 1952 से 1971 तक और फिर 1980 से 1991 के मध्य कांग्रेस के सभी बाहरी उम्मीदवारों को सफलता प्राप्त हुई थी और वे बैतूल संसदीय सीट से सांसद निर्वाचित हुए। लेकिन इनमें से कोई भी प्रत्याशी अपने विपक्षी उम्मीदवार को एक लाख से कम मतों के अंतर से ही चुनाव हरा पाया। वहीं 1996 से 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान इस सीट से पिछले सभी चुनाव भाजपा के उम्मीदवार चुनाव जीतते आए हैं जिनमें कांग्रेस के उम्मीदवार को पराजित करने का अंतर 1 लाख से लेकर 3 लाख 60 हजार मतों तक पहुंच गया है। राजनैतिक समीक्षकों का मानना है कि इस दौर में बैतूल संसदीय सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार के चयन में आसपास के नेताओं की तानाशाही, दादागिरी, मनोपल्ली, खोटे सिक्के चलाने की जिद और दखलंदाजी तथा कांग्रेस की बैतूल जिले में भयंकर गुटबाजी ने जिले में कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में ऐसी स्थिति में ला दिया है कि अब बैतूल-हरदा-हरसूद क्षेत्र में कई स्थानों पर तो कांग्रेस को पोलिंग तक का टोटा पड़ जाता है।
कांग्रेस उम्मीदवार जीते हजारों में
1952 में पहले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में नागपुर के भीकूलाल चांडक ने विपक्षी गोपाल देशमुख को चुनाव हराया था। वहीं 1957 के चुनाव में को विपक्षी नारायणराव वाडिवा को 15279 मतों से और 1952 के तीसरे चुनाव में चांडक ने संतकुमार नवगोपाल को 29715 वोटों से मात दी। इसके बाद 1967 में नागपुर के ही एनकेपी साल्वे ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सुंदरलाल राय को 13 हजार 899 और 1971 के चुनाव में डॉ. बसंत पंडित को 68011 मतों से शिकस्त दी। 1980 में भोपाल के गुफराने आजम ने कांग्रेस की टिकट प्राप्त कर ली और भाजपा के सुभाष आहूजा को 29322 वोटों से और 1984 के चुनाव में दिल्ली के असलम शेर खान ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में निर्दलीय एमएन बुच को 37950 तथा कांग्रेस के अंतिम जीते उम्मीदवार के रूप में 1991 में असलम शेर खान ने आरिफ बेग को 22733 वोटों पराजित किया था। इस तरह से सभी कांग्रेस उम्मीदवारों में एक उम्मीदवार अधिकतम 68 हजार की लीड तक पहुंचा था।
कांग्रेसी हारे लाखों में
एक तरफ जहां बैतूल संसदीय सीट से अभी तक चार नेता ही 8 बार सांसद निर्वाचित हुए हैं। इनमें सभी बाहरी रहे और यह सभी हजारों मतों से चुनाव जीते हैं। वहीं उसके बाद जनसंघ (जनता पार्टी और अब भाजपा) के 5 उम्मीदवार बैतूल सीट से 10 बार सांसद निर्वाचित हुए हैं। इनमें पहले विपक्षी नेता 1977 में सुभाष आहूजा ने एनकेपी साल्वे को 87 हजार 923, 1989 में भाजपा के आरिफ बेग ने असलम शेर खान 40 हजार 772 वोट से चुनाव हराया था। लेकिन 1996 में अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रहे विजय कुमार खण्डेलवाल ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में असलम शेर खान को 1 लाख 12 हजार 76 वोटों से हराया था और पहली बार किसी उम्मीदवार के जीत का अंतर 1 लाख ऊपर पहुंचा था। 2004 में विजय खण्डेलवाल की जीत का अंतर 1 लाख 57 हजार 540 पर पहुंच गया। 2009 में तो भाजपा की ज्योति धुर्वे ने कांग्रेस के सरपंच स्तर के प्रत्याशी ओझाराम इवने को 97 हजार 917 और 2014 के चुनाव में ही ज्योति धुर्वे ने कांग्रेस के प्रदेश स्तर के नेता अजय शाह को 3 लाख 28 हजार 614 वोटों से हराकर जीत का नया इतिहास बनाया। और इस इतिहास को तोड़ने का काम 2019 के लोकसभा चुनाव में वर्तमान सांसद डीडी उइके ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के भोपाल में राजनीति कर रहे रामू टेकाम को 3 लाख 60 हजार 241 वोटों से हराकर ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली। अब 2024 के चुनाव में 2019 की यही जोड़ी आमने-सामने है। राजनैतिक समीक्षकों का मानना है कि जिस तरह से देश में मोदी लहर चल रही है उसके चलते 2024 के इस चुनाव में चुनाव परिणाम ऐसा भी हो सकता है कि जो फिर एक बार नया इतिहास बनाए।
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