Worship : सप्तमी पर हुई शीतला माता मंदिर में पूजा

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बैतूल (सांध्य दैनिक खबरवाणी) – आज शीतला सप्तमी पर्व धूमधाम से मनाया गया। कोठीबाजार स्थित शीतला माता मंदिर में सुबह सेही पूजा अर्चना शुरू हो गई। महिलाओं ने शीतला सप्तमी का व्रत रखते हुए माता को ठण्डा भोग अर्पित किया। मान्यता है कि इस व्रत को करने से मन्नत पूरी होती हैं। महिलाओं के द्वारा पूरे विधि विधान से पूजा पाठ की गई।

इस मौके पर श्रीमती साधना गोठी, श्रीमती कल्पना गोठी, श्रीमती मंगला गोठी, श्रीमती अलका गोठी, श्रीमती भावना गोठी, श्रीमती प्रेरणा गोठी, श्रीमती संजुला गोठी, श्रीमती पन्ना गोठी, श्रीमती सीमा गोठी, श्रीमती भाविका गोठी, श्रीमती प्रफुल्ला गोठी, श्रीमती सरोज गोठी, श्रीमती वैजयंती गोठी, श्रीमती संगीता गोठी एवं बड़ी संख्या में महिलाएं उपस्थित थीं।

शीतला सप्तमी व्रत को लेकर बताया जाता है कि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि है। इन तिथियों पर शीतला माता की विशेष पूजा और व्रत किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में सप्तमी पर और कुछ क्षेत्रों में अष्टमी तिथि पर महिलाएं ये व्रत करती हैं। शीतला माता के नाम का अर्थ ही है शीतला यानी शीतलता देने वाली मां। शीतलता यानी ठंडक। इस व्रत में देवी मां को शीतल यानी ठंडे खाना खाने का भोग लगाते हैं और भक्त ठंडा खाना ही खाते हैं।

शीतला माता को क्यों लगाते हैं ठंडे खाने का भोग?

शीतला सप्तमी-अष्टमी दो ऋ तुओं के संधिकाल में आती है। अभी शीत ऋ तु के जाने का और ग्रीष्म ऋ तु के आने का समय है, इसे ही संधिकाल कहा जाता है। ऋतुओं के संधिकाल में स्वास्थ्य संबंधित सावधानी न रखी जाए तो मौसम बहुत जल्दी हमें बीमार कर सकता है। इस समय खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इन दो दिनों में शीतला माता के लिए व्रत किया जाता है।

ये व्रत करने वाले भक्त बासी यानी ठंडा खाना ही खाते हैं। शीतला माता को ठंडे खाने का ही भोग लगाते हैं। ये व्रत करने वाले लोग शीतला माता के प्रसाद के रूप में ठंडा खाना ग्रहण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस समय में ठंडा खाना खाने से उन्हें ऋतु परिवर्तन से होनी वाली मौसमी बीमारियां जैसे सर्दी-कफ, फोड़े-फूंसी, आंखों से संबंधित और त्वचा संबंधी बीमारियां होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं।

ये है शीतला माता से जुड़ी कथा

ऐसा माना जाता है कि पुराने समय में एक दिन किसी गांव के लोगों ने देवी मां को गर्म खाने का भोग लगा दिया था, जिससे देवी मां का मुंह जल गया और वह क्रोधित हो गई थीं। देवी के क्रोध से गांव में आग लग गई, लेकिन एक बूढ़ी औरत का घर आग से बच गया। अगले दिन गांव के लोगों को बूढ़ी औरत ने बताया कि उसने शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाया था। तभी से शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाने की परंपरा शुरू हुई है।

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