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क्यों हनुमान नहीं पहुंचा पाए गोवर्धन पर्वत को श्रीराम तक? जानिए वो रहस्य जो द्वापर में कृष्ण ने पूरा किया!

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मथुरा: भगवान के अवतारों और उनकी लीलाओं से जुड़ी कहानियों में ब्रजभूमि का विशेष स्थान रहा है. मथुरा, वृंदावन और गोवर्धन जैसे स्थानों पर ऐसी कई कथाएं मौजूद हैं जो भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों से जुड़ी हुई हैं. ऐसी ही एक कथा है गोवर्धन पर्वत की, जो सीधे सतयुग और द्वापर युग से जुड़ती है. लोकल18 की टीम पहुंची गोवर्धन, जहां उन्हें मिले पंडित हर्षवर्धन कौशिक, जिनसे उन्होंने सुनी भगवान हनुमान और गोवर्धन पर्वत की रहस्यमयी कहानी.

 

जब सेतु बनाने के लिए निकले हनुमान…
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सतयुग में रावण से युद्ध करने के लिए जब भगवान राम को लंका जाना था, तो समुद्र पार करने के लिए एक पुल (सेतु) बनाने का निर्णय लिया गया. इसके लिए श्रीराम ने अपनी वानर सेना को पत्थर, पर्वत और बड़े पेड़ लाने का आदेश दिया. इस आदेश पर हनुमान जी अन्य वानरों के साथ अलग-अलग दिशाओं में पर्वतों की तलाश में निकल पड़े.

हनुमान जी जब द्रोणगिरी पर्वत के पास पहुंचे, तो वहां उन्हें एक वृद्ध पर्वत मिले, जिन्होंने खुद को गोवर्धन और रत्नागिरी पर्वत का पिता बताया. उन्होंने हनुमान जी से आग्रह किया कि उनके दोनों पुत्रों को श्रीराम की सेवा में ले जाएं, लेकिन एक शर्त भी रखी जब श्रीराम से मुलाकात हो तो उन्हें भी दर्शन कराएं.

 

हनुमान ने गोवर्धन पर्वत को क्यों ब्रज में ही छोड़ दिया?
हनुमान जी गोवर्धन पर्वत को लेकर समुद्र तट की ओर चल पड़े. लेकिन तभी श्रीराम की ओर से संदेश आया कि पुल बनाने के लिए पर्याप्त सामग्री एकत्रित हो चुकी है, और अब जहां जो भी पत्थर है वहीं उसे छोड़ दिया जाए. इस आदेश के बाद हनुमान जी ने गोवर्धन पर्वत को ब्रजभूमि में स्थापित कर दिया.

यह सुनकर गोवर्धन पर्वत दुखी हो गए. उन्होंने हनुमान जी से कहा कि आपने मुझसे वादा किया था कि मुझे भगवान श्रीराम के दर्शन कराओगे, लेकिन अब आप बिना दर्शन कराए ही मुझे यहां छोड़कर जा रहे हो. यदि आपने अपना वादा पूरा नहीं किया तो आप पर झूठ बोलने का दोष लगेगा.

 

हनुमान की प्रार्थना और भगवान श्रीराम का वचन
हनुमान जी ने गोवर्धन पर्वत की बात सुनकर भगवान राम का ध्यान किया और उनसे इस संकट से मुक्ति की प्रार्थना की. तब श्रीराम ने हनुमान से कहा, “तुम चिंता मत करो. मैं द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लूंगा और तब स्वयं आकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करूंगा.”

और हुआ भी ऐसा ही. द्वापर युग में जब भगवान श्रीराम ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया, तो उन्होंने गोवर्धन लीला रचाई. उस समय जब इंद्रदेव ने बृजवासियों पर भारी वर्षा कर दी थी, तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर सभी को सुरक्षित किया. यह उसी वादे की पूर्ति थी जो हनुमान जी ने सतयुग में गोवर्धन पर्वत से किया था.

 

गोवर्धन दानघाटी मंदिर के पुजारी हर्षवर्धन कौशिक ने लोकल18 की टीम को यह पूरी कथा सुनाई. उन्होंने बताया कि यह सिर्फ पौराणिक मान्यता नहीं, बल्कि ब्रजभूमि की आस्था का प्रतीक है. यहां हर साल हजारों श्रद्धालु गोवर्धन परिक्रमा करते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के उस वादे को याद करते हैं जो उन्होंने अपने परम भक्त हनुमान के माध्यम से गोवर्धन से किया था.

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