Search ई-पेपर ई-पेपर WhatsApp

वो ‘सुबह’ कब आएगी: रेखा सरकार के सामने ‘विकसित दिल्ली’ का सबसे बड़ा रोड़ा कौन?

By
On:

सन् 1958 में आई हिंदी की चर्चित फिल्म थी- फिर सुबह होगी. साहिर लुधियानवी का लिखा गीत था- वो सुबह कभी तो आएगी… जब अंबर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी… वो सुबह कभी तो आएगी… यकीनन बीजेपी के लिए दिल्ली में एक नई सुबह हो गई. करीब सत्ताईस साल बाद पार्टी के लिए वनवास के बादल छंटे हैं. दिल्ली के लोग नई सुबह की ताजगी का अहसास कर रहे होंगे. शपथ ग्रहण के बाद ही मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता फुल एक्शन में आ गईं. परवेश वर्मा समेत सभी मंत्री नये जोश में दिखे. गुरुवार देर शाम कैबिनेट की पहली बैठक हुई. यमुना में आरती भी हो गई. कुल मिलाकर दिल्ली को विकसित बनाने का अभियान शुरू हो गया. लेकिन विकसित दिल्ली बनेगी कैसे? यहां की गलियां और कॉलोनियां सुविधाओं से गुलज़ार कैसे होंगी? कूड़े के पहाड़, सर्दी के मौसम में जहरीली हवाएं, पराली का दमघोटूं धुआं, जगह-जगह बिखरे कचरे, ऐसे कई मोर्चे हैं, जहां दिल्ली की नई सरकार को बड़ी चुनौतियां मिलने वाली हैं.क्या जिस नई सुबह की खातिर दिल्ली की जनता ने सत्ता परिवर्तन किया, क्या वहां रात का आंचल ढलकेगा? पॉल्यूशन दूर होंगे? सड़कें दुरुस्त होंगी? यमुना के पानी के झाग दूर होंगे? क्या राजधानी स्लम मुक्त होगी? और क्या मास्टर प्लान 2041 पर काम तेजी से होगा? हालांकि पहले ही दिन रेखा सरकार ने बता दिया कि जो वादे किये हैं, वो इरादों के साथ पूरे होंगे. मसलन 300 यूनिट मुफ्त बिजली, 20 हजार लीटर मुफ्त पानी, झुग्गियों में 5 रुपये की थाली वाला अटल कैंटीन, गरीब महिलाओं को 2500 रुपये और बसों में महिलाओं की मुफ्त यात्रा वगैरह सब वादे पूरे किये जाएंगे.

राजधानी कैसे बनेगी कॉस्मोपॉलिटन सिटी?

दुनिया के ज्यादातर बड़े देशों की राजधानी कॉस्मोपॉलिटन सिटी कहलाती है. कॉस्मोपॉलिटन का मतलब है- एक ऐसा शहर, जिसका स्वरूप वैश्विक यानी ग्लोबल हो. लेकिन आज की तारीख में दिल्ली का आधारभूत विकास बताता है वह किसी पिछड़े प्रदेश की राजधानी के समान है. जाहिर है इसकी सूरत इरादों के साथ काम करने से ही बदलेगी. चुनावी रैलियों के दौरान बीजेपी नेताओं ने आम आदमी पार्टी की सरकार पर यह कहकर जोरदार हमला किया था कि आखिर क्या वजह है कि लाखों लोगों को दिल्ली छोड़नी पड़ी और एनसीआर की ऊंची-ऊंची इमारतों में सुकून की जिंदगी की तलाश करनी पड़ी. चुनावी मैदान में राजनीतिक दल ऐसे बयानों के जरिए एक-दूसरे पर वार पलटवार करते ही रहते हैं लेकिन इससे कैसे इनकार किया जा सकता है कि आधारभूत विकास में दिल्ली से कहीं आगे एनसीआर निकलता जा रहा है और राजधानी की तमाम कॉलोनियां अब भी अर्धविकसित हैं. इसे आखिर कॉस्मोपॉलिटन सिटी कहें तो कैसे कहें?

मध्यवर्ग की अवैध कॉलोनियां होंगी विकसित?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली को मिनी इंडिया कहते हैं. दिल्ली 1483 वर्ग किलोमीटर में फैली है. यहां की जनसंख्या करीब 1.75 करोड़ है. यहां देश भर से सभी समुदाय और प्रांत के लोग आए और रच बस गए. इनमें कामगार गरीब वर्ग है तो कॉरपोरेट घरानों का अमीर वर्ग भी लेकिन दिल्ली में मध्य वर्ग सबसे बड़ा तबका है जो आमतौर पर सरकारी और निजी कंपनियों में नौकरी करता है. यहां देश के कोने-कोने से पलायन हुआ है. प्राइस यानी पीपुल रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (PRICE) के एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली में साल 2022 में मध्यवर्ग की संख्या कुल आबादी का 67.16 फीसदी थी.

ये आंकड़ा बताता है दिल्ली अमीरों की नगरी नहीं है. केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के तमाम दफ्तर होने के नाते यहां ‘बाबू वर्ग’ सबसे अधिक है, जिनकी आमदनी के स्रोत सीमित होते हैं. ये छोटे शहरों से आए होते हैं और कम खर्च वाली जगहों की तलाश करते हैं, सामान्य घरों में जीवन बसर करते हैं. और ये सामान्य घर आमतौर पर अवैध कॉलोनियों में स्थित हैं. लग्जरी सोसायिटी या दो-तीन कमरों वाले डीडीए फ्लैट्स खरीदने की इनकी क्षमता नहीं होती. इस तरह दिल्ली की अवैध कॉलोनियां सघन होती गईं लेकिन जरूरत के हिसाब से सुविधाएं नहीं बढ़ीं.

वैसे तो दिल्ली में अवैध कॉलोनियों को नियमित करने को लेकर कई प्रयास किये गये हैं लेकिन ये गति कछुआ चाल ही साबित हुई. भारत सरकार ने 16 फरवरी 1977 को दिल्ली की अनाधिकृत कॉलोनियों को रेग्यूलराइजेशन की नीति जारी की थी. इसके तहत डीडीए और एमसीडी को मिलकर काम करना था. 1993 तक 567 कॉलोनियों को नियमित भी किया गया. एक आंकड़े के मुताबिक दिल्ली की करीब 30 फीसदी आबादी इन्हीं अवैध कॉलोनी में रहती है. सरकारी आंकड़ा कहता है दिल्ली में अब भी 1,797 अवैध कॉलोनियां हैं. इनमें से 66 इलाकों को छोड़कर 1,731 कॉलोनियों को रेगुलराइज करने के लिए चिह्नित किया गया है.

सड़क, सीवर, नल, बिजली और पानी की कहानी

पूर्व की अरविंद केजरीवाल सरकार ने दावा किया था कि इन कॉलोनियों में सड़क, सीवर और नल की बेहतर सुविधाएं दी गई हैं. आप सरकार के मुताबिक पिछले 9 साल में यहां के विकास कार्यों पर करीब ₹5,000 करोड़ खर्च किए गए. इनमें सड़कें, पानी की पाइप लाइनें और सीवर लाइनों का काम है. लेकिन जमीन पर वैसा सुधार नजर नहीं आता जैसा कि दावा किया जाता है. दिल्ली के तमाम पॉश इलाकों के ठीक बगल में निजी जमीनों पर सालों से बसी अवैध कॉलोनियां हैं, यहां की आबादी जिस गति में धीरे-धीरे बढ़ती गई, जनसंख्या घनत्व बढ़ता गया, उस गति से विकास कार्य नहीं हुए. कम जगहों में लोगों का गुजारा मुश्किल हो गया. लिहाजा यहां से भी लोगों को एनसीआर के इलाकों में पलायन करना पड़ा.

कई कानूनी अड़चनों के चलते बिल्डर्स और डेवेलपर्स ने दिल्ली की इन कॉलोनियों के बजाय एनसीआर क्षेत्र में किसानों के खेत-खालिहानों वाली जमीनों का अधिग्रहण कराकर बहुमंजिल आवासीय और व्यावसायिक परिसरों को विकसित करना शुरू कर दिया. जिसके बाद बड़े पैमाने पर दिल्ली के मध्यवर्ग के लोगों ने एनसीआर में जाकर बसना शुरू कर दिया. सन् 1993 में जब बीजेपी को पहली बार दिल्ली की सत्ता मिली, तब भी ये हाल थे और सन् 2025 में भी हालात में बड़े सुधार नहीं हुए हैं. रेखा गुप्ता सरकार के आगे विकसित दिल्ली बनाने में इन अवैध बस्तियों की सड़कें, पानी की पाइप लाइनें, सीवर और बिखरी हुई बिजली की तारों की समस्याओं को दूर करना सबसे बड़ी चुनौती होगी.

दिल्ली जल बोर्ड की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी में रोजाना 129 करोड़ गैलन की जरूरत है लेकिन 96.9 करोड़ गैलन की ही आपूर्ति हो पाती है. दिल्ली को हरियाणा, यूपी, हिमाचल प्रदेश और पंजाब से पानी मिलता है. रेखा गुप्ता का ताल्लुक खुद हरियाणा से है और दिल्ली-हरियाणा के बीच पानी को लेकर अक्सर विवाद होते रहे हैं. जल्द ही गर्मी के दिन आने वाले हैं. देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली की मुख्यमंत्री को बीजेपी शासित हरियाणा से पानी के मुद्दे पर कितना सहयोग मिल पाता है.

दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में बनेंगे पक्के मकान?

राजधानी में की अवैध कॉलोनियों में ज्यादातर मध्यवर्ग के परिवार रहते हैं तो दिल्ली के स्लम इलाके की झुग्गियों में यहां का निम्न वर्ग. अवैध कॉलोनियों की तरह ही ये झुग्गियां भी दिल्ली को कॉस्मोपॉलिटन सिटी का रुतवा प्रदान करने में सबसे बड़ी बाधा है. दिल्ली में छोटी-बड़ी झुग्गी बस्तियों की कुल संख्या करीब 1800 हैं. यहां ज्यादातर वैसे लोग रहते हैं जो अमीर वर्ग के घरों में नौकर, नौकरानी होते हैं या कंस्ट्रक्शन साइटों पर मजदूरी करते हैं. दिल्ली में समय-समय पर डीडीए लोअर इनकम ग्रुप के लिए फ्लैट्स की स्कीम निकालता रहा है, इसके बावजूद आज की तारीख में दिल्ली में मलिन बस्तियों की संख्या 675 हैं. ये इलाके स्लम कहलाते हैं. यहां स्लम को विकसित करने का कोई ठोस प्लान नहीं है. यहां करीब 3.5 लाख परिवारों के 20 लाख लोग रहते हैं.

मोदी सरकार ने दिल्ली के इन्हीं स्लमों को विकसित करने और यहां के लोगों को सम्मानपूर्वक जीने का अवसर देने के लिए जहां झुग्गी, वहां मकान योजना शुरू की थी. इस साल जनवरी के पहले हफ्ते में प्रधानमंत्री ने 1600 गरीबों को पक्के घरों की सौगात दी है. लेकिन ये आंकड़ा अभी अपने लक्ष्य से काफी बहुत दूर है. दिल्ली की नई सरकार के सामने एक चुनौती जहां झुग्गी, वहां मकान योजना में तेजी लाना और जरूरतमंदों को पक्के फ्लैट्स की चाबी प्रदान करना भी है. जब तक दिल्ली स्मल मुक्त नहीं होगी, विकसित नहीं कही जा सकती.

मास्टर प्लान 2041 से बनेगी विकसित दिल्ली?

साठ के दशक में दिल्ली में जब देश भर के कामकाजी लोगों का आगमन शुरू होने लगा तब बकायदा एक मास्टर प्लान की दरकार हुई. राजधानी का पहला मास्टर प्लान सन् 1962 में अल्बर्ट मेयर के नेतृत्व में बना. डीडीए के बैनर तले बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण की शुरुआत हुई और आवासीय परिसरों के निर्माण शुरू हुए. फिलहाल विकसित दिल्ली के लिए मास्टर प्लान 2041 तैयार किया गया है. इसका प्रारूप डीडीए ने तैयार किया है. अगले 20 साल के भीतर दिल्ली में पूर्ण विकास निर्धारित किया गया है. इस मास्टर प्लान के तहत ग्रीन एरिया का संरक्षण, जल संरक्षण, मिक्स लैंड यूज का सदुपयोग, बिजली उत्पादन की क्षमता में बढ़ोत्तरी, आवास और दफ्तर के बीच आवागमन को बेहतर बनाना, प्रदूषण पर नियंत्रण, पीने के पानी की कमी को दूर करना आदि शामिल है.

इसके उलट हालात को देखें तो दिल्ली में जरा सी भी बारिश के बाद सड़कों पर लंबे जाम के दृश्य आम हो जाते हैं. महज 50 एमएम बरसात से जगह-जगह जलजमाव हो जाता है. दिल्ली में जिस प्रकार से आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से बिजली और पानी की आपूर्ति नहीं हो पा रही. इनकी मांग लगातार बढ़ रही है. अब जबकि मास्टर प्लान 2041 अगले 20 साल तक के लिए निर्धारित है तो फौरी राहत की उम्मीद कैसे की जा सकती है.

विकसित दिल्ली बनाने की राह में अवैध तौर पर बने तमाम धार्मिक स्थल भी बड़ी बाधा हैं. भजनपुरा चौक, लोनी रोड, मौजपुर चौक, नजफगढ़, मायापुरी लाजवंती चौक, त्यागराज नगर, कस्तूरबा नगर, श्रीनिवासपुरी, नैरोजी नगर, सरोजनी नगर, नेताजी नगर, मोहम्मदपुर जैसे कई इलाके हैं जहां सड़क किनारे विभिन्न धर्मों के धार्मिक स्थल बने हैं, इनका स्थानांतरण ना केवल कानून पेंच में फंसा है बल्कि स्थानीय लोगों की आस्था से भी जुड़ा है.

For Feedback - feedback@example.com

Related News

Home Icon Home E-Paper Icon E-Paper Facebook Icon Facebook Google News Icon Google News