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VIDEO – प्रसव पीड़ा से कराहती महिला को 4 किमी डोली में डाल कर पैदल चले ग्रामीण

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VIDEO भीमपुर(श्याम आर्य)जिले के सबसे पिछड़ा इलाका माने जाने वाले भीमपुर से एक तस्वीर सामने आई है जो विकास की पोल खोल रही है । आजादी के बाद आज भी ये गांव सड़क के लिए मोहताज है । मजबूर ग्रामीणों की पीड़ा समझने वाला कोई नही है।

सिस्टम को शर्मसार कर देने वाली यह तस्वीर भीमपुर ब्लॉक की ग्राम पंचायत के ग्राम भवईपुर से सामने आई है ,जहां सड़क ना होने के कारण ग्रामीण एक गर्भवती महिला को डोली में डाल 4 किमी तक पैदल चल कर मुख्य मार्ग पर आए । इसके बाद निजी वाहन कर भीमपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया ।

बताया जा रहा है कि आदिवासी परिवार की महिला ललिता पति महेश उम्र 19 साल गर्भवती थी और शनिवार को उसे प्रसव पीड़ा हुई तो प्रसव के लिए अस्पताल ले जाना था । मुख्य मार्ग से भवईपुर गांव तक सड़क नही है और दुर्गम रास्ता है । ऐसे में ग्रामीणों ने देशी तरीके दो बल्ली में चादर बांध कर डोली बनाई और गर्भवती महिला को उसमें डाल कर तीन से चार किमी पैदल चल कर चिल्लोर देसली मुख्य मार्ग पर पहुँचे ।

यहां से निजी वाहन से लगभग 2 घंटे बाद गर्भवती महिला को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भीमपुर पहुंचाया गया जहां उसका प्रसव कराया गया । भीमपुर बीएमओ डॉक्टर बृजेश कुमार यादव ने बताया कि गर्भवती महिला ललिता का सुरक्षित प्रसव कराया गया है उसकी हालत भी ठीक है भवईपुर गांव तक सड़क नहीं होने के कारण एंबुलेंस नहीं भेज पा रहे हैं ।

ग्रामीणों की पीड़ा | VIDEO

आदिवासी बाहुल्य गांव भवईपुरजहां की आबादी लगभग 700 बताई जा रही है ।यह गांव ग्राम पंचायत चिल्लोर के अंतर्गत आता है । इस गांव के ग्रामीणों की पीड़ा यह है कि यहां विकास नहीं पहुंच पाया है ।।इस गांव के लोगों को मुख्य सड़क पर आने के लिए लगभग 4 किलोमीटर का दुर्गम रास्ता तय करना पड़ता है जो जंगलों के बीच से गुजरता है । मोबाइल नेटवर्क नहीं होने के कारण यहां के लोग मोबाइल पर मदद भी नहीं मांग सकते हैं । यही कारण है कि गर्भवती महिला के प्रसव के लिए एंबुलेंस नही बुला पाए ।

मूलभूत सुविधाओं को तरसता गांव | VIDEO

एक तरफ देखा जाए तो विकास की चकाचौंध तो दूसरे तरफ देखा जाए तो विकास के नाम पर अंधकार । सरकार अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को लाभ पहुंचाने की बात करती है ,लेकिन भीमपुर का यह गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है ।ऐसे में उन जनप्रतिनिधियों पर भी सवाल उठते हैं जो आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं । ग्रामीणों की आंखें देखने को तरस गई है की उनके गांव को सड़क से कब जोड़ा जाएगा ।

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